Read Time1 Minute, 49 Second
जीवन सरिता में,
डोले मेरी नैया क्यूं ?
तुमको है सुख का सागर,
मुझे खुशियों से किनारा क्यूं ?
घनी धूप से लड़कर,
रज कण बहाता हूँ।
तन चंदन घिसकर अपना,
अस्तित्व तिलक लगता हूँ।
देता सबको उजाला मैं,
मेरे जीवन में अंधेरा क्यूं ?
जीवन सरिता में,
डोले मेरी……..?
मेरी तन्हाई की धरती पर,
कभी सुख की बरखा हो।
कहते हो हम साथ हैं तुम्हारे,
क्यों फिर तुम घबराते हो ?
जब तुम थे साथ हमारे तो,
जिंदगी यूं मैंने ठुकराई क्यूं ?
जीवन सरिता में ,
डोले मेरी……..?
आँखों की बेटी से,
हुई दुःख की सगाई है।
सूख चले हैं आँसू सारे,
आँखों में बसी अब तन्हाई है।
तन्हाई की दुनिया में,
मालिक ये बस्ती बसाई क्यूं ?
जीवन सरिता में,
डोले मेरी नैया क्यूं ?
तुमको है सुख का सागर,
मुझे खुशियों से किनारा क्यूं ?
#जी.एस.परमार
परिचय: जी.एस.परमार का निवास मध्यप्रदेश के नीमच में है। शिक्षा-एम.ए. (अंग्रेजी साहित्य) तथा ४२ वर्ष के हैं। पेशे से आप शिक्षक होकर पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं लिखते हैं। ब्लॉग पर भी कई रचनाएं दे चुके हैं। रविन्द्रनाथ ठाकुर जी की छोटी उम्र में ही लेखन की बात से प्रेरित होकर आपने लिखना शुरू किया,पर संकोची स्वभाव होने से लिखकर फाड़ देते थे। अब रचनाएँ प्रकाशन में भेजते रहते हैं।
Post Views:
443