पतंग…

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आसमां  में,
उड़ती हुई पतंग.. 
यूँ लगता है,
सरसर ध्वनि-सी
किलकारी करते हुए, 
बाबुल के आँगन में.. 
खेल रही वो स्वतंत्र।
 
कई बार प्रयास  के बाद भी,
डोर न काट सके उसकी..
कई तागे,क्योंकि वो बंधी है, 
विश्वास की अटूट  डोर से.. 
जो मजबूत हाथों में है।
 
पलटकर निहारती,
खिलखिलाती,इतराती..
पुनः चल पड़ती  है वो, 
हौंसलों की नई  उड़ान पर।
 
पर हल्की-सी ढील,बड़ी-सी भूल, 
एक गलत इरादे के तागे से..
नवजीवन  के  नए वादे  से,
दोस्ती  हो  गई  उसकी..
चल  पड़ी  वो  बेपरवाह, 
पुराने बंधन तोड़,सबसे मुँह मोड़..
अब कुछ पल आसमां में तैरती है,
दो पतंगें एक साथ..
यौवन की मदहोशी में,
साथ चलना चाहती थी निरंतर..
पर नाता तोड़  गया वो,
बीच अम्बर अकेला छोड़ गया वो..
अब  जीवन  स्वतंत्र  है उसका, 
भय से परे एक सुंदर-सा अनुभवl 
 
कितना आनंद  है न,
इस एकाकी जीवन में..
पर दूजे ही पल अनेक हाथ, 
दौड़ पड़े उसे पाने को.. 
उसका अस्तित्व मिटाने को,
उसके सौंदर्य के चीथड़े करने को..
वो बची,कई बार बची, 
पर उसका पकड़ा जाना तय था..
जकड़ा जाना तय था,
और ये जकड़न ऐसी जो.. 
मकड़जाल से परे  है, 
यहाँ  बाजार की रौनकें तो हैं.. 
पर घर-सा सुकूं नहीं, 
आज भी जब वो घुंघरुओं
की ध्वनि के बीच कोठे की छत से,
देखती है किसी कटी पतंग को..
तो दबे पाँव आँखें मूँदे, 
लौट जाती है अपने कमरे को..
क्योंकि,उसे यह उजाले, 
स्याह से लगते हैं.. 
स्याह से लगते हैं, 
स्याह से लगते  हैं…ll 
                                                                           #वन्दना श्रीवास्तव

परिचय : वन्दना श्रीवास्तव का उपनाम -वान्या है। उत्तर प्रदेश राज्य के जिला लखनऊ की डिलाइट होम कालोनी में आपका निवास है।जन्मतिथि २७ जुलाई १९८१ है। लिखना आपकी पसंद का कार्य है।

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3 thoughts on “पतंग…

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति दीदी ।।

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