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हे सखी,गजरा ये कहाँ से लाई,
जो अपनी लटों में है तूने उलझाई।
कितना सुंदर,कितना प्यारा गजरा,
कितना सुंदर,डाला तुमने आंखों में कजरा।
ये महकता गजरा,ये बहकता कजरा,
बनाता है तुम्हारे रंग-रूप को सुनहरा।
ए सखी एक गजरा मुझे भी दिलाना,
मेरे भी रूप को यूँ ही गजरे व कजरे से सजाना।
अपने प्रियतम को दिखाऊंगी,
उनके मन को लुभाऊंगी।
आएंगे प्रियतम तो संग में खुशियां मनाऊँगी,
अमुआ की डारी पे डार के झूला,
सावन के गीत गाऊँगी॥
#अरविंद ताम्रकार ‘सपना’
परिचय : श्रीमति अरविंद ताम्रकार ‘सपना’ की शिक्षा एमए(हिन्दी साहित्य)है।आपकी रुचि लेखन और छोटे बच्चों को पढ़ाने के साथ ही जरुरतमंद की सामर्थ्यानुसार मदद करने में है।आप अपने रचित भजन खुद गाकर व लेखन द्वारा अपने मनोभावों को चित्रित करती हैं। सिवनी(म.प्र.)के समता नगर में आप रहती हैं।
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