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शिव की कृपा अपार…महीना सावन का।
खुले मोक्ष का द्वार…महीना सावन का॥
सजे शिवालय शोभित शशिधर…,
भस्म रमी, मृग चर्म अंग पर…..।
शीश गंग की धार…महीना सावन का॥
शिव की कृपा अपार…महीना सावन का।
खुले मोक्ष का द्वार…महीना…॥
भांग धतूरा अक्षत चंदन…,
बेलपत्र को करिके अर्पन…।
माला पुष्प मदार…महीना सावन का॥
शिव की कृपा अपार…महीना…।
खुले मोक्ष का द्वार…महीना…॥
भक्ति भाव की गंगा बहती…,
काँवरियों की भीड़ उमड़ती…।
करके जय जयकार…महीना सावन का।
शिव की कृपा अपार…महीना…।
खुले मोक्ष का द्वार…महीना ॥
हर-हर..बम-बम के जयकारे…,
गूँज रहे नित मंदिर सारे…।
चढ़े दूध की धार…महीना सावन का॥
शिव की कृपा अपार…महीना…।
खुले मोक्ष का द्वार…महीना…॥
अनुपम अधम खड़ा शिवशंकर…,
भाव लेखनी में निति भरकर…।
करे शब्द श्रंगार…महीना सावन का॥
शिव की कृपा अपार…महीना सावन का।
खुले मोक्ष का द्वार…महीना सावन का॥
#अनुपम कुमार सिंह ‘अनुपम आलोक’
परिचय : साहित्य सृजन व पत्रकारिता में बेहद रुचि रखने वाले अनुपम कुमार सिंह यानि ‘अनुपम आलोक’ इस धरती पर १९६१ में आए हैं। जनपद उन्नाव (उ.प्र.)के मो0 चौधराना निवासी श्री सिंह ने रेफ्रीजेशन टेक्नालाजी में डिप्लोमा की शिक्षा ली है।
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