बेटी है तो घर का आंगन…

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gunjan agewal

अधर हँसीं के पहरे धरकर,दर्द छुपाती सीने में।

नहीं शिकायत करती चाहे,हो कठिनाई जीने में।

जिस घर लेती जन्म सुता वो,बड़े नसीबों वाले हैं।
बेटी के घर आते ही,खुलते किस्मत के ताले हैं।
पारसमणि-सी प्यारी बेटी है अनमोल नगीने में।
अधर हँसी के पहरे धरकर,दर्द छुपाती सीने में……….l

बेटी है तो घर का आंगन खुशियों से भर जाता है, 
बनकर वो मधुमास हँसे,तब हर कोना मुस्काता है।
करे समर्पित सारा जीवन आतुर गम को पीने में।
अधर हँसी के पहरे धरकर,दर्द छुपाती सीने में……….l
बदल रहा परिवेश भले ही,मन अन्तस ही काला है।
नही सुरक्षित आज बेटियां,जब भक्षक रखवाला है।
जीवन में जो दंश मिले हैं,रहती उनको सीने में।
अधर हँसीं के पहरे धरकर,दर्द छुपाती सीने में……….l

        #गुंजन अग्रवाल

परिचय : गुंजन अग्रवाल लेखकीय क्षेत्र में अनहद गुंजन  गूंज के नाम से जानी जाती हैंl  आप हरियाणा राज्य के फरीदाबाद शहर से हैंl

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2 thoughts on “बेटी है तो घर का आंगन…

  1. अतिभावप्रणव सुन्दर कृति

  2. मेरी रचना को स्थान देने हेतु आ अजय जी का दिल से सादर आभार….

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