
बरस बीत गया,
समय ठहर–सा गया,
तेरे साथ बीतीं कई यादें दे गया।।
सुनहरे सपने पनप रहे थे तभी ममता की छाँव ले गया,
तेरे आँचल की महकी–सी बहार दे गया।।
न कोई संशय था, फिर भी आँखें नम कर गया,
यकायक ही तेरे जाने का संदेश दे गया।।
आँगन की तुलसी को बेदम कर गया,
हरियाली भरी मिट्टी को सूखा कर गया।।
सींचा था बाग़ आज सूना कर गया,
झूलों पर बच्चों की फूलवारी को रीता कर गया।।
रसोई के स्वाद को फीका कर गया,
सौंधी तीखी मीठी–सी महक को नदारद कर गया।।
तेरी छाया से पल रहा मन तन्हा कर गया,
तेरा साया ज़िम्मेदारी का कलश भर गया।।
हमेशा के लिए यादों का गुलदान दे गया,
तेरा जाना तेरी ममता का मोल कर गया।।
सूनी दहलीज़, सूना आँगन कर गया,
मेरी रुदन करती हुईं आँखों को सम्बल से भर गया।
कई पहरे, कई मर्यादाएँ सौंप गया,
मेरी पहचान मेरे सब्र को चुनौती दे गया।।
बीता बरस माँ की जुदाई दे गया,
बदलते रिश्तों को निभाने की दुहाई दे गया।।
#आरती सोलंकी
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