प्यासा दरिंदा

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चैराहे के नुक्कड़ पर बैठे चार दोस्त अखबार के पन्नों को दीमक की तरह चाट रहे थे । अचानक शैलेश की निगाह अखबार के पन्ने पर छपी एक युवती की तस्वीर पर टिक गयी । वह अपने दोस्तों से बोला – ” इधर देखो ! कितनी खूबसूरत लड़की की तस्वीर छपी है । हाय ! क्या खूबसूरत बला है ? यह तो साक्षात मानो आकाश उतरी परी लग रही है । मैं तो इसकी तस्वीर देखकर ही इसका दीवाना हो गया । इसकी तस्वीर देखकर ही मैं इस पर मरने लगा हूं । अब इसे हासिल करना ही मेरा मकसद है । मैं इसे हासिल करके ही रहूंगा , चाहे जो हो जाय । “
उसके दोस्तों का ध्यान भंग हुआ और वे भी एकटक उस युवती की तस्वीर को देखने लगे। वे बोले – ” सचमुच यार ! यह तो साक्षात सौंदर्य की देवी है । “
तभी प्रकाश बोला – ” ये तस्वीरें केवल देखने के लिए हैं । आहें भरने के लिए नहीं हैं । ये किसी माॅडल की तस्वीर है । इन तस्वीरों पर ज्यादा ध्यान मत दो । वरना रातों की नींद और दिन का चैन गायब हो जाएगा । “
“ लेकिन , मैं तो इस लड़की का दीवाना बन गया हूं । इसे हासिल करके ही रहूंगा । “ शैलेश उŸोजित स्वर में बोला ।
विनीत शैलेश को समझाते हुए कहा – ” क्यों बेकार में इन झंझटों में पड़ रहे हो । यह कौन है ? कहां की रहने वाली है ? इसका क्या नाम है ? तुम्हें पता भी है ! तुम कहां इसे ढूंढ़ते फिरोगे ? अपने शहर में क्या खूबसूरत लड़कियों की कमी है , जो इसकी खोज में तू भटकता फिरेगा । और यदि तुमने इसे खोज भी लिया , तो यह तूझे पसंद करेगी ! आजकल की लड़कियां पहले से किसी न किसी को चाहती हैं । यह तो ग्लैमर की दुनिया की प्रतीत होती है । मेरा कहा मान ! तू इन झंझटों में फंसकर अपनी जिंदगी बरबाद मत कर । “
शैलेश मुस्कुराते हुए बोला – ” मुझे जो चीज पसंद आ जाती है । मैं उसे हासिल करके ही दम लेता हूं । यह मुझे पसंद आ गयी है । मैं इसके बगैर नहीं रह सकता । चाहे जो हो जाय , मैं इस ढंूढ़कर ही रहूंगा । इसे पाना ही मेरा एकमात्र लक्ष्य है । “
मित्रों के समझाने काफी समझाने के बाद भी शैलेश नहीं माना । मानो उस लड़की की तस्वरी ने उस पर जादू कर दिया हो । वैसे भी प्यार अंधा होता है । शैलेश भी उस युवती की तस्वीर देखकर ही उसके प्यार में अंधा हो गया । वह अपनी उस अनाम और अज्ञात प्रेमिका की खोज में निकल पड़ा ।
काफी भटकने और मुसीबतों को झेलने के बाद उसने उस युवती का नाम और पता हासिल कर ही लिया । वह साये की तरह उसके आगे – पीछे मंडराने लगा और एक दिन मौका मिलते ही उसके सामने अपने प्यार का इजहार कर दिया – ” निकिता ! मैं तुम्हारे हुस्न का दीवाना हूं और तुमसे बेइंतहां प्यार करता हूं । जबसे मैंने तुम्हारी तस्वीर अखबार में देखी है । मैं तुम पर मरने लगा हूं । तुम सौंदर्य की प्रतिमूर्ति हो । मैं तुम्हारे प्रेम का पुजारी हूं । तुम मेरी पूजा स्वीकार कर , मुझे अपने हृदय में बसा लो । मैं तुम्हारे लिए सारी दुनिया छोड़ सकता हूं । तुम मुझे ठुकराना मत , वरना मैं जीते – जी मर जाऊंगा । यदि तुम नहीं मिली तो मेरी आत्मा को मरने के बाद भी शांति नहीं मिलेगी । मेरी आशा को निराशा में मत बदलना अन्यथा मैं पागल हो जाऊंगा । “
निकिता इस अनजान युवक के मुंह से ये शब्द सुनकर अवाक रह गयी । वह एक अज्ञात भय से कांप गयी । वह सोचने लगी- ” आखिर यह सिरफिरा कहां से आ गया ? मैं तो इसे जानती भी नहीं ! फिर बहकी – बहकी बातें क्यों कर रहा है ? “
निकिता अपने मौन को तोड़ती हुई शैलेश से बोली – ” तुम कौन हो और क्या अनाप – शनाप बके जा रहे हो । कहां से आये हो ? मैं तो तुम्हें जानती भी नहीं । मेरा नाम और पता तुम्हें कैसे मालूम हो गया । “
शैलेश मुस्कुराता हुए बोला – ” निकिता ! तुम्हारी तस्वीर एक अखबार में छपी थी । उस तस्वीर को देखकर ही मैं तुम्हारा दीवाना हो गया । मैं तुमसे अगाध प्रेम करता हूं । मैंने उसी समय यह निश्चय कर लिया था कि मैं तुम्हारा नाम और पता मालूम करके ही रहूंगा । प्रेम अंधा होता है और प्रेम करने वाले समुद्र की गहराई नहीं मापा करते । उनका बस एक ही मकसद होता है समुद्र की गहराइयों को पारकर अपनी मंजिल तक पहुंचना । काफी मुसीबतों को झेलने के बाद आखिर तुम मिल ही गयी । तुम मुझे अपना बना लो निकिता ! यदि तुम नहीं मिली तो मैं मर जाऊंगा । “
यह सुनकर निकिता भौचक्की रह गयी । उसे समझते देर नहीं लगी कि यह कोई सनकी पागल दीवाना है । उसकी समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि इससे छुटकारा कैसे पाया जाय ! यह तो सिरफिरा तो मेरे पीछे ही पड़ गया । वह उसे समझाते हुए बोली – ” देखो ! तुम चाहे जो कोई भी हो । मैं तुम्हें नहीं जानती । तुमसे प्यार करने का सवाल ही नहीं उठता । मैं तुमसे प्यार नहीं करती । प्यार एकतरफा नहीं होता । प्यार तो दो दिलों का मिलन है । एक – दूसरे के दिल मिलने के बाद ही प्यार होता है । मैं तो तुम्हें जानती भी नहीं , फिर प्यार करने का सवाल ही नहीं उठता । तुम तो बस मेरी तस्वीर देखकर ही मेरे दीवाने हो गये । लेकिन तुमने यह कैसे सोच लिया कि मैं तुम से प्यार करने लंगूगी । मैं किसी और से प्यार करती हूं और हमारी जल्द ही हमारी शादी होने वाली है । तुम्हारा यह पागलपन ठीक नहीं है । तुम वापस अपने घर लौट जाओ । क्यों मेरे पीछे अपनी जिंदगी बर्बाद कर रहे हो । दुनिया में खूबसूरत लड़कियों की कमी नहीं है । मुझसे ज्यादा खूबसूरत लड़की तुम्हें मिल जायेगी । मैं किसी की अमानत हूं । मेरा पीछा छोड़ दो । मैं तुम्हारी नहीं हो सकती । “
” निकिता ! प्यार अंधा होता है । मैं तुम्हारे प्यार को पाने के लिए कुछ भी कर सकता हूं । तुम यही सोचो कि मैंने तुम्हारा नाम और पता कैसे मालूम कर लिया , तो तुम्हारे प्यार को पाने के लिए मैं क्या कुछ नहीं कर सकता ? उस छपी तस्वीर ने मेरे मन में प्रेम की एक लौ जला दी है , जो अब बुझने वाली नहीं है । मैं तुम्हें पाये बगैर इस शहर से जाने वाला नहीं हूं । यदि मेरी आशा पूर्ण नहीं हुई , तो तुम्हारी आशा भी पूर्ण नहीं होने दूंगा । जो मेरे रास्ते का बाधक बनेगा , मैं उसे रास्ते से हटा दूंगा । यदि तुमने मेरी खुशियां छीनी , तो मैं तुम्हारी भी खुशियां छीन लूंगा। “ शैलेश एक कुटिल मुस्कान के साथ कहा ।
” लेकिन मैं तुमसे प्यार नहीं करती । तुम कौन हो और क्या हो ? इसका भी अता – पता नहीं है । केवल तुम्हारे चाहने से यह साबित नहीं हो जाता कि मैं भी तुम्हें चाहती हूं । तुम मेरी जिंदगी में क्यों भूचाल लाना चाहते हो ? तुम पागल हो गये हो । यहां से चले जाओ । अपनी नयी दुनिया की शुरूआत करो । “ यह कहकर निकिता तेज कदमों से अपने घर की ओर चल पड़ी ।
लेकिन वह निकिता के प्यार में इतना पागल हो गया कि साये की तरह उसके आगे – पीछे मंडराने लगा ।
निकिता उसके इस हरकत से काफी परेशान थी । उसे भय सता रहा था कि कहीं यह पागल उसके साथ कोई गलत हरकत न कर दे। कहीं यह सिरफिरा पागल प्रेमी उसके प्यार भरे सपने में ग्रहण न लगा दें ! कहीं यह सिरफिरा उसके प्यार भरे सपने को चुरा न लें ! वह इस बात को लेकर काफी चिंतित रहने लगी । वह इस बात को न तो अपने परिवार वालों को बता सकती थी और अपने प्रेमी विमलेश को । क्योंकि इस बात से विमलेश कोई गलत अर्थ न लगा ले ? इस पागल प्रेमी से परेशान निकिता ने घर से बाहर निकलना ही बंद कर दिया । उसकी समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि इस सिरफिरे कैसे छुटकारा पाया जाय !
शैलेश किसी भी कीमत पर निकिता को हासिल करना चाहता था । वह निकिता के प्रेमी विमलेश को रास्ते का बाधक मानकर उसे मारने का निश्चय कर लिया । वह विमलेश के हर गतिविधि पर नजर रखने लगा । उसके पीछे भी साये की तरह मंडराने लगा । लेकिन उसे मौका नहीं मिल रहा था कि किसी एकांत स्थान पर उसकी हत्या कर दें । जब भी वह उसे मारने का प्रयास करता , कोई न कोई उस समय उसके रास्ते का बाधक बन जाता । वही विमलेश इस बात से अनभिज्ञ था कि कोई उसे मारने का षडयंत्र रच रहा था।
एक दिन निकिता विमलेश से मिलकर पैदल ही घर की ओर चली जा रही थी कि रास्ते में उसके सामने शैलेश खड़ा हो गया और बोला – ” आज मैं तुम्हें अपना बनाकर ही रहूंगा । चलो मेरेे साथ । “ वह निकिता को जबरदस्ती खींचकर अपने साथ ले जाने लगा ।
उसके हाथ पकड़ते ही वह उससे अपना हाथ छुड़ाने का भरपूर प्रयास करने लगी और बोली – ” इस प्रकार तुम मुझे जबरदस्ती अपना नहीं बना सकते । मैं तुम्हें पसंद नहीं करती हूं । इस प्रकार जबरदस्ती प्यार नहीं किया जाता । मैं तुम्हारी कभी हो ही नहीं सकती । मुझे छोड़ो ! वरना मैं चिल्लाऊंगी । “
शैलेश जोर से हंसा और बोला – ” मुझे जो चीज पसंद आ जाती है , उसे मैं हासिल करके ही रहता हूं । मर्जी से नहीं , तो जबरदस्ती ही सही । जितना चिल्लाना है , चिल्लाओ ! आज तुम्हें बचाने कोई नहीं आयेगा । आज मैं तुम्हें हासिल करके ही रहूंगा । “
विवश निकिता जोर – जोर से चिल्लाने लगी – ” कोई है ! बचाओ ! बचाओ ! इस दरिंदे से मुझे ……“
उसकी चीख दूर – दूर तक गूंज गयी । अभी कुछ दूर ही आगे गये विमलेश के कानों में निकिता की यह चीख सुनाई पड़ी । वह दौड़ता हुआ चीख की दिशा में भागा । सामने देखता है कि एक युवक निकिता को जबरदस्ती घसीटते हुए ले जा रहा था । वह फौरन उस पर टूट पड़ा । निकिता उसके शिकंजे से आजाद हो गयी । दोनों के बीच मार – पीट शुरू हो गयी । विमलेश ने शैलेश की काफी पिटायी की । वह अपनी जान बचाकर भागते हुए विमलेश से बोला – ” आखिर कब तक इसे बचा पाओगे ! मैं इससे प्यार करता हूं और इसे हासिल करके ही रहूंगा । जो भी मेरे रास्ते में आएगा , उसे मैं इस दुनिया से विदा कर दूंगा । “
विमलेश फिर उसे पकड़ने के लिए दौड़ा , लेकिन वह घने जंगल में कहीं गुम हो गया। निकिता आंसू बहाते हुए विमलेश की बांहों से लिपट गयी। विमलेश उसे शांत करते हुए बोला – ” यह कौन था ? क्या बोले जा रहा था ? क्या तुम इसे जानती हो ? “
निकिता रोते हुई बोली – ” मैं इसे नहीं जानती हूं । यह कौन है ? कहां से आया है ? मुझे कुछ पता नहीं । लेकिन उसने बताया था कि उसने मेरी तस्वीर अखबार में देखी थी । तब से यह मुझे पर फिदा हो गया । मुझे खोजते – खोजते यहां तक आ गया । मेरा नाम और घर का पता कहां से मालूम कर लिया मैं नहीं जानती । यह बात मैंने तुम्हें और अपने घर वालों को भी नहीं बताया । वह साये की तरह मेरे पीछे पड़ा है । मेरी समझ में यह बात नहीं आ रही कि मैं इससे अपना पीछा कैसे छुड़ाऊ ! यह सिरफिरा पागल है , तुम सावधान रहना । यह मुझे पाने के लिए कुछ भी कर सकता है ।“
यह सुनकर विमलेश आश्चर्यचकित होकर बोला – ” इतना सब कुछ होने के बाद भी तुमने यह बात मुझसे छुपाई । खैर ! जो हो सो हुआ । तुम अकेली घर से बाहर मत निकला करो । मैं इस सनकी दीवाने का होश ठिकाने लगा दूंगा । बस ! तुम अपना ध्यान रखो । “
” लेकिन , विमलेश तुम इससे उलझना मत । मुझे तो यह खतरनाक आदमी लगता है । यह तुम्हारे पीछे भी पड़ा है । वह मुझे पाने के लिए तुम्हें भी मारने की चेष्टा कर सकता है । मैं तुम्हें खोना नहीं चाहती , विमलेश । आखिर हमारी खुशियों में ग्रहण लगाने वाला कहां से आ गया ! कहीं यह हमारी खुशियों की बगियां में पतझड़ न फैला दें । मुझे बहुत डर लग रहा है । “ निकिता विमलेश की बांहों में समाती हुई बोली ।
विमलेश बोला – ” तुम घबराओ मत । मैं इसका पता लगाकर रहूंगा कि यह कौन है और कहां से आया है ? मैं इस समस्या का समाधान निकालता हूं । तुम बेकार की बातों पर ध्यान मत दो । “
उस दिन के बाद से शैलेश उन दोनों के निगाह से न जाने कहां गायब हो गया । निकिता को यह विश्वास हो गया कि वह सिरफिरा प्रेमी उसकी दुनिया से दूर चला गया । वह राहत की सांस ली ।
निकिता और विमलेश की शादी की तिथि तय कर दी गयी । दोनों शादी के बंधन में बंध गये । विमलेश अनाथ था । उसके मां – बाप बचपन में ही गुजर गये थे । इसलिए निकिता के परिवार वालों ने शादी के बाद विमलेश को यहीं रहने के लिए राजी कर लिया था । निकिता का घर भरा – पूरा था । निकिता के अतिरिक्त उसकी दो बहनें । माता – पिता और उसके दो भाई – भाभी । इस प्रकार पूरा परिवार सुखी संपन्न था ।
शादी की पहली रात ही एक अजीब घटना घट गयी। वह पागल प्रेमी शैलेश न जाने कहां से निकिता के कमरे में पहंुच गया और बोला – ” निकिता , तुमने मुझे धोखा दिया है । इस प्रकार तुम मेरी जिंदगी तबाह नहीं कर सकती । मैं तुम्हारे और तुम्हारे परिवार की खुशियों में ग्रहण लगा दूंगा । मैं तुम्हें विमलेश का नहीं होने दूंगा । शादी की पहली रात तुम मेरे साथ ही बिताओगी । आओ ! मेरी बांहों में समा जाओ , निकीता । मेरी अतृप्त प्यास को बुझा दो । तुम अपनी नशीली और झील – सी नीली आंखों में मुझे समा जाने दो । तुम्हारे ये गुलाबी होंठ मुझे और अधिक मदहोश किये जा रहे हंै । आओ , निकिता और मेरी बांहों में समा जाओ । “ और वह निकीता को अपनी बांहों में समेटने लगा ।
निकिता चीखती हुई उसे जोर से धक्का दी और कमरे से बाहर निकल गयी । उसकी चीख सुनकर विमलेश भागता हुआ निकीता के कमरे की ओर बढ़ा । निकीता विमलेश की बांहों से लिपटते हुए बोली – ” विमलेश , मुझे बचाओ उस दरिंदे से । न जाने कहां से वह बेडरूम में घुस आया और मुझसे …….“
यह सुनकर विमलेश का खून खौल गया । वह निकिता को सोफे पर बैठाते हुए बोला – ” तुम शांत हो जाओ , मैं देखता हूं । कहां है वह दरिंदा ! आज उसका अंत ही कर दूंगा । “ और वह उसके पीछे भागा । शैलेश भागता हुआ घनघोर जंगल में घुस गया । विमलेश भी उसका पीछा करते हुए उस घनघोर जंगल में प्रवेश में प्रवेश कर गया । तभी विमलेश को जंगल के घनघोर अंधकार में दूर एक प्रकाश की किरण दिखायी पड़ी । वह उस ओर भागा । शायद वह भी उस ओर ही भागा हो । विमलेश उस बियावान जंगल के सन्नाटे को चीरता हुआ उस रोशनी के निकट पहुंच गया । देखा सामने एक खंडहरनुमा वीरान हवेली है । जहां सैकड़ों चमगादड़ों और मकड़ी के जालों का अंबार लगा हुआ था । तभी शैलेश भीतर की ओर भागता हुआ नजर आया । विमलेश उसके पीछे भागा और उसे दौड़कर पकड़ लिया । दोनों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया । दोनों एक – दूसरे के खून के प्यासे हो गये । तभी शैलेश विमलेश को मारने के लिए एक बड़ा – सा पत्थर उठा लिया। वह पत्थर विमलेश के ऊपर फेंकने लगा , लेकिन वह पत्थर पिसलकर स्वयं उसके सिर पर गिर गया । वह पत्थर उसके सिर को कुचलते हुए विमलेश को भी घायल कर दिया । विमलेश अर्ध बेहोशी की अवस्था में आ गया । इस बीच शैलेश की भयंकर चीख उस खंडहरनुमा हवेली में गूंज गयी । भागती हुई एक औरत आयी , जो देखने में बहुत क्रूर और डरावनी लग रही थी । उसने चीखते हुए कहा – ” हाय रे ! मेरे बेटे को मार डाला ……“
वह दौड़ती हुई अंतिम सांसे गिन रहे शैलेश के सिर को अपने गोद में उठाकर विलाप करने लगी। वह बड़े कष्ट से बोला – ” मां , मैं उसे हासिल नहीं कर पाया । मेरी इच्छा अतृप्त रह गयी । वो किसी और की हो गयी । वो रहा उसका प्रेमी ,जो अब उसका पति हो चुका है । मैं अतृप्त रह गया । मैं मर रहा हूं , मां । मेरी अतृप्त आत्मा को शांति नहीं मिलेगी । “
वह डरावनी और क्रूर – सी दिखने वाली औरत उसकी मां थी , जो तंत्र विद्या में निपुण थी । वह शैलेश को आश्वस्त करते हुए बोली – ” बेटा , मैं तेरे मरने के बाद भी तेरी इच्छा पूर्ण करूंगी । तुझे यूं ही अतृप्त भटकने नहीं दूंगी । तेरी इच्छा अवश्य पूरी करूंगी । जिसने मेरे बेटे की हत्या की है , मैं उसकी जिंदगी तबाह कर दूंगी । वो तेरी है और तेरी रहेगी , इसके लिए मुझे जो भी करना पड़ेगा ; मैं करूंगी । तेरी अतृप्त आत्मा को भटकने नहीं दूंगी । “ शैलेश उस औरत की गोद में ही दम तोड़ दिया । वह औरत भयानक रूप से चीख उठी।
वह औरत शैलेश के सिर को जमीन पर रखकर धीमे कदमों से अजीब निगाहों से घूरती हुई विमलेश के पास गयी और बोली – ” तो , तू मेरे बेटे के मार्ग का बाधक था । तेरे कारण ही मेरा बेटा मौत के आगोश में समा गया । मेरा बेटा अतृप्त ही मर गया । मैं तुझे उस लड़की के जीवन से दूर कर दूंगी । तू जीवत रहकर भी उसका नहीं हो पायेगा । तेरे शरीर में ही मेरे बेटे की आत्मा प्रवेश कर अपनी इच्छा की पूर्ति करेगा । आज से अभी से मैं तेरी आत्मा को गुलाम बना लूंगी । शरीर तो तेरा ही रहेगा , पर आत्मा मेरे बेटे की । “
और वह तंत्र विद्या के द्वारा अपने बेटे की आत्मा का आह्वान की । अट्टहास करते हुए उसकी आत्मा प्रकट हुई । वह औरत मुस्कुराते हुए बोली – ” बेटा ! अब तू इसके शरीर में प्रवेश कर अपनी अतृप्त इच्छा की पूर्ति कर । तेरी मां कदम – कदम पर तेरा साथ देगी । “
इधर विमलेश अर्धबेहोशी की अवस्था से लौटने ही वाला था कि शैलेश की अशरीरी आत्मा ने उसके शरीर के भीतर प्रवेश करने का प्रयास किया , लेकिन विमलेश की आत्मा ने उसका प्रतिकार किया । तभी तंत्र विद्या के द्वारा उस औरत ने विमलेश की आत्मा को उसके शरीर से बाहर खींच लिया और शैलेश की अशरीरी आत्मा उसके शरीर के भीतर प्रवेश कर गयी । अपने शरीर पर शैलेश के अशरीरी आत्मा के कब्जा करते ही विमलेश की आत्मा भयानक रूप से चीख उठी । इधर उस औरत ने विमलेश की आत्मा को एक मूर्ति में कैद कर दिया ।
शैलेश की अशरीरी आत्मा विमलेश के शरीर में प्रवेश करते ही उठ बैठा और अपने शरीर , चेहरे पर हाथ फेरते हुए बोला – ” मां , अब मैं आसानी से निकीता को पा सकता हूं । वह मेरे असली रूप को पहचान नहीं पाएगी । मैं अपने वास्तविक रूप में न सही विमलेश के शरीर का उपयोग कर अपनी दमित इच्छा की पूर्ति करूंगा । “
” हां , बेटा , आज से तुम अपनी दमित इच्छाओं की पूर्ति करो । शरीर वही है और आत्मा तुम्हारी। अब तुम उस लड़की को आसानी से पा सकते हो । तुम्हारा सच उसे पता भी नहीं चलेगा । तुम अब नरपिशाच बन गये हो । तुम काफी शक्तिशाली बन गये हो । “ वह तांत्रिक औरत मुस्कुराते हुए बोली ।
शैलेश आज अपने आपको बहुत खुशनसीब समझ रहा था । वह सोच रहा था कि निकिता को अपने वास्तविक रूप में न पा सका , तो क्या हुआ ? उसके प्रेमी के शरीर में प्रवेश कर तो पा लूंगा । वह तेज कदमों से निकीता के घर की ओर बढ़ा।
जहां निकिता बड़ी बेसब्री से विमलेश का इंतजार कर रही थी । विमलेश को आते देख वह उसकी बांहों से लिपट गयी और बोली – ” इतनी देर कहां लगा दी ? क्यों उस सनकी के पीछे भाग रहे थे । आपको कहीं चोट तो नहीं लगी । “
पर यह क्या ? निकिता का स्पर्श मानो उसे आनंद देने के बजाय उसके शरीर को भीषण अग्नि की ज्वाला में जला रहा था । एक भीषण अग्नि की ज्वाला उसके तन – बदन को जला रही थी । वह फौरन निकिता की बांहों से अपने आपको आजाद कर लिया । उससे दूरी बनाते हुए बोला – ” नहीं ! निकिता , मैंने उस वहशी दरिंदे का अंत कर दिया है । अब वह तुम्हें कभी परेशान नहीं करेगा । “ लेकिन उसकी समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि आखिर निकिता के शरीर में ऐसी कौन – सी शक्ति है जो उसके स्पर्श मात्र से उसके शरीर को भीषण की अग्नि की ज्वाला में जला रहा है । कहीं उसकी चाहत फिर अधूरी न रह जाय । आखिर ऐसी कौन – सी शक्ति है जो उसके मार्ग में बाधक बन रही है ।
निकिता फिर उसके करीब आने लगी । वह उससे दूर होने लगा । निकिता दौड़कर उसके हाथ को पकड़ ली । फिर उसका शरीर भीषण अग्नि की ज्वाला में धधकने लगा । वह तेजी से अपना हाथ छुड़ा लिया । निकिता को विमलेश का यह बदला हुआ व्यवहार विचलित कर रहा था । वह बोली – ” विमलेश ! आज हमारी सुहाग रात है और तुम मुझसे दूर भाग रहे हो । आज तो हमारी मिलन की रात है , जिसकी प्रतीक्षा हम दोनों न जाने कब से कर रहे थे । फिर ये दूरी क्यों ? “
उसकी समझ मे यह बात नही आ रही थी कि निकिता के प्रश्न का उŸार क्या दें ? निकिता के शरीर से तो आग की लपटें निकलती है , जो उसे जलाकर भस्म कर देगी । वह कैसे निकिता को अपनी बांहो ं में भर पायेगा। उसका मिलन तो असंभव है । वह निकिता से दूरी बनाते हुए बोला – ” निकिता ! आज मेरी तबियत ठीक नहीं । अभी हमारा मिलन संभव नहीं है । कुछ दिन और इंतजार करो । वैसे भी तो कहा गया है कि सब्र का फल मीठा होता है । “
वह निकीता के साथ कमरे में तो गया अवश्य , पर वह उससे दूरी बनाकर बिस्तर पर एक ओर मुंह फेरकर सोने का प्रयास करने लगा । लेकिन उसे नींद नहीं आती , क्योंकि वह नर पिशाच था और पिशाच तो निशाचर होते हैं ।
इधर निकिता विमलेश को लेकर काफी परेशान थी । वह विमलेश के इस बदले व्यवहार से काफी खिन्न थी । यह बात उसकी समझ से परे थी कि आखिर विमलेश में इतना बदलाव कैसे आ गया । यह वही विमलेश था , जो शादी के पहले उसे अपनी बांहों में भर लिया करता था । आज शादी की पहली रात ही विमलेश स्वभाव में इतना बदलाव कैसे आ गया ! कहीं सचमुच तो विमलेश किसी गंभीर बीमारी का शिकार तो नहीं हो गया । शायद ! डाॅक्टर ने उसे कुछ दिन अलग रहने की सलाह दी हो ।
सुबह होते ही उसकी बहनें और भाभी उसे घेर ली और पहली रात की सुहावनी बातें पूछने लगी । लेकिन निकिता शर्माने का बहना बनाकर बात को टाल दी । वह मुस्कुराते हुए अपने काम में लग गयी ।
निकिता जब भी विमलेश के निकट जाने का प्रयास करती , तो वह अजीबों – गरीब हरकतें करने लगता । निकिता को यह देखकर पूर्ण विश्वास हो गया था कि विमलेश की तबियत सचमुच ठीक नहीं है , क्योंकि वह रात में भी ठीक से सो नहीं पाता है । वह बेचैन और आशांत रहता है । जब भी वह उसे अपनी बांहों में भरने का प्रयास करती है , वह उससे दूरी बना लेता है । निकीता कई बार उससे उसकी बीमारी के बारे में जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की , लेकिन वह एक ही बात दोहराता है कि समय आने पर सब बता दूंगा ।
दिन बीतते रहे । एक दिन निकिता के सब्र का बांध टूट गया और उसने विमलेश से पूछा ही लिया – ” विमलेश , हमारी शादी के कितने दिन हो गये और तुम हमेशा अपनी बीमारी का बहाना बनाकर मुझसे दूरी बना लेते हो । आखिर ऐसी कौन – सी बीमारी है , जो हम दोनों के बीच की दूरियों को बढ़ा रहा है । तुम तो शादी के पहले मेरे बगैर एक पल भी नहीं रहते थे । मुझे छेड़ते रहते थे । आज जब हमारी शादी हो चुकी है , तो तुम मुझसे दूर भागते हो । जब भी मैं तुम्हारे पास आने का प्रयास करती हूं , तो तुम दूर चले जाते हो । आखिर हमारे मिलन में बाधा कौन उत्पन्न कर रहा है । ! “
विमलेश ( जो वास्तविक रूप में शैलेश था ) , इस रहस्य पर से पर्दा उठाते हुए बोला – ” निकिता , मैं स्वयं तुम्हारे पास आना चाहता हूं । तुम्हारे इस गुलाबी होंठ का रसास्वादन करना चाहता हूं । तुम्हारी इस संगमरमरी बदन को चूमना चाहता हूं । तुम्हारी इस झील सी नशीली आंखों में गोते लगाना चाहता हूं , पर न जाने कौन – सी अदृश्य शक्ति मुझे यह सब करने से रोक देती है । मैं भी इस रहस्य को समझ नहीं पा रहा हूं । आखिर हमारी मिलन कौन बाधा उत्पन्न कर रहा है । “ निकिता और विमलेश के शरीर में प्रवेश कर चुके शैलेश की इच्छा अब तक अधूरी ही थी ।
रात्रि की गहन नीरवता में जब निकिता गहरी नींद सो रही होती , तो पिशाच विमलेश अचानक कहीं गायब हो जाता । सुबह निकीता के जागने के पूर्व ही बिस्तर पर मौजूद हो जाता । एक दिन रात्रि के घनघोर अंधकार में निकीता की मंा की नींद किसी आहट से खुल गयी। जिज्ञासावश वह उस घनघोर अंधकार में आवाज की दिशा की ओर अपना कदम बढ़ाई । तभी उनकी निगाह वीरान पड़े एक कमरे की ओर गयी। वह आवाज यही से आ रही थी । वो कमरे के भीतर झांकी। उनकी निगाह उस अंधकारमय कमरे में मद्धिम रोशनी के बीच बैठी एक छाया पर गयी । उस छाया को देखकर वह एक अज्ञात भय से कांप गयी । वे सोचने लगी कि आधी रात गये इस वीरान कमरे में कौन बैठा है ! वह उत्सुकतावश उस छाया की ओर बढ़ी । पर यह क्या ? वहां का दृश्य देखकर उनका रोम – रोम कांप गया । सामने विमलेश बैठा था । उसके समीप ही उनके पालतू खरगोश की लाश पड़ी थी । साथ ही खून से भरा एक प्याला रखा था । वह अजीब तरीके से उस खरगोश को नोच – नोच कर खा रहा था । उसका मुंह खून से सना हुआ था। विमलेश नर पिशाच का रूप धारण कर चुका था और खून का प्याला अपने मंुह से लगा लिया। यह देखकर वह चीखना चाहती थी , लेकिन उनके मुख से चीख नहीं निकल पा रही थी। उनकी चीख उनके मुख में ही घुटकर रह गयी । वह वहां से धीमे कदमों से बाहर की ओर भागने लगी , लेकिन तभी वह किसी भारी वस्तु से टकरा गयी । तभी उस नर पिशाच का ध्यान भंग हुआ । वह पीछे मुड़कर देखा । वह फिर भागने का प्रयास करने लगी , लेकिन कमरे का दरवाजा अपने आप बंद हो गया ।
वह मारे भय के पसीने से तर – बतर हो गयी । वह कांपती हुई आवाज में बोली – ” तुम विमलेश नहीं हो सकते ? आखिर तुम कौन हो ? तुम विमलेश के रूप में नर पिशाच प्रतीत होते हो । तुम खून के प्यासे दरिंदे हो । मेरे घर में क्या कर रहे हो ? तुम्हारा मेरे घर में आने का इरादा क्या है और क्या चाहते हो ? मैं तुम्हारे सच को जान गयी हूं । मैं अपनी बेटी की जिंदगी बरबाद नहीं होने दूंगी । मैं अभी जाकर यह सच सबको बताती हूं । “
तभी वह प्यासा दरिंदा अपने हाथ को बढ़ाते हुए उनकी गर्दन को दबोच लिया और बोला – ” तुमने सही पहचाना । मैं विमलेश नहीं हूं । शरीर तो विमलेश का जरूर है , पर आत्मा किसी और का । मैं एक अतृप्त आत्मा हूं , जो तुम्हारी बेटी के प्यार में पागल था । उसने मुझे ठुकरा कर विमलेश से शादी कर ली । उसके कारण ही मेरी मौत हुई है । मैं जीवित अवस्था में तो उसे प्राप्त नहीं कर सका , लेकिन अब मरने के बाद भी उसे हासिल करके ही रहूंगा । जो भी मेरे रास्ते का बाधक बनेगा , उसे मैं मौत की नींद सुला दूंगा । अब जब तुम यह सच जान ही गयी हो , तो तुम्हें भी मरना होगा । आज मैं तुम्हारे खून को पीकर अपनी प्यास बुझाऊंगा । “
यह सुनते ही निकीता की मां साधना उसके सामने गिड़गिड़ाने लगी – ” मुझे और मेरे परिवार को छोड़ दो ! मेरी बेटी ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ? क्यों उसकी जिंदगी बर्बाद करने पर तुले हुए हो ? मैं तुम्हें नहीं जानती कि तुम कौन हो ? मेरे परिवार पर रहम खाओ । मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूं । तुम इस घर से चले जाओ । “
वह प्यासा दरिंदा जोर से अट्टहास करते हुए बोला – ” जिसने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी , उसे मैं छोड़ दो । मैं तुम्हारे पूरे परिवार को अपना शिकार बनाऊंगा । मैं अपनी अतृप्त प्यास बुझाये बिना ही यहां से चला जाऊं ! मैं निकीता को पाकर ही रहूंगा । “ और वह प्यासा दरिंदा भयंकर रूप से अट्टहास करते हुए अपना नुकीला दांत निकीता की मां के शरीर में गड़ा दिया । और वह प्यासा दरिंदा निकीता की मां को अपना पहला शिकार बना लिया।
सुबह सुरेश प्रसाद अपनी पत्नी साधना को बिस्तर पर न पाकर चकित थे । वह इधर – उधर देखने के बाद – ” साधना ! साधना ! “ की आवाज लगाने लगे ।
उनकी आवाज सुनकर घर के सभी सदस्य उस ओर दौड़े । निकिता पूछी – ” क्या हुआ पापा ? “
सुरेश प्रसाद बिस्तर की ओर इशारा करते हुए बोले – ” जब उठा , तब से ही तुम्हारी मां बिस्तर पर से गायब है । न जाने कहां चली गयी ! “
निकिता उन्हें समझाते हुए बोली – ” इसमें इतना घबराने की क्या बात है , पापा ? मां आपसे पहले ही उठ गयी होगी और घर में ही कहीं कुछ कर रही होगी । “
दिन बीत गया पर निकिता की मां का कुछ अता – पता नहीं था । परिवार के सदस्य घर का कोना – कोना छान मार लिया , लेकिन निकिता की मां साधना का कहीं अता – पता नहीं चला । तभी निकिता की निगाह उस बंद पड़े कमरे की जमीन पर पड़े खून के धब्बे पर गयी। वह चीखकर लोगों को बुलायी । परिवार के सभी सदस्य उस ओर भागे । निकीता खून के छींटे की ओर इशारा की। खून के पड़े धब्बे को देख परिवार के सदस्य एक अनजाने भय से कांप गये। किसी अनहोनी की आशांका से उनका मन घबराने लगा। तभी घर का नौकर रघु चीखता हुआ आया – ” साहब ! साहब ! …..“ उसके मुंह से आवाज भी नहीं निकल पा रही थी । वह बदहवास – सा हांफ रहा था ।
सुरेश प्रसाद उसे शांत करते हुए बोले – ” रघु ! तुम इतना घबराये हुए क्यों हो ? क्या बात है ? जो भी कहना हो स्पष्ट कहो। “ और वह उसे पानी पिलाकर शांत किया ।
रघु आंसू बहाता हुआ बोला – ” चलिये साहब ! आप खुद देख लीजिये । “
निकिता का पूरा परिवार उसके साथ चल पड़ा । रघु घर के पिछवाड़े की ओर ले गया । घने झाड़ियों के बीच एक पेड़ की ओर इशारा किया । उस ओर देखते ही लोगों के मुंह से बरबस चीख निकल गयी । पेड़ की डाली पर निकीता की मां की लाश झूल रही थी । लाश इस प्रकार छिन्न – भिन्न अवस्था में टंगी थी कि देखने वाले की रूहें कांप गयी। चारों ओर चीख – पुकार मच गयी । इस अप्रत्याशित घटना को देखकर निकिता का पूरा परिवार सदमें में आ गया । उनकी समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि आखिर इस वीभत्स घटना को अंजाम किसने और क्यों दिया ?
मौके पुलिस भी आ गयी , लेकिन पुलिस को कोई सुराग हाथ नहीं लगा । पुलिस पूछ – ताछ कर चली गयी । परिवार और पुलिस के बीच यह घटना रहस्य बनकर रह गयी । इस घटना के कुछ दिन बाद ही घर से पालतू जानवरों के गायब होने का सिलसिला शुरू हो गया। रात के सन्नाटे में घर में अजीब – अजीब तरह की आवाजें आने लगी। लेकिन ये आवाजें कहां से आती थी । किसी को कुछ पता नहीं चलता । लोगों के बीच दहशत का माहौल कायम हो गया । सारा घर एक अज्ञात भय के गिरफ्त में आ गया । रात में किसी की हिम्मत कमरे से बाहर निकलने की नहीं होती । आखिर इस सब के पीछे कौन है ! किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था ।
इधर विमलेश के शरीर में प्रवेश किया शैलेश पूर्ण रूप से नर पिशाच बन चुका था ।यह सारा खेल तो वही खेल रहा था । वह निकिता को पाने का भरसक प्रयास कर रहा था । वह जैसे ही निकिता के समीप जाता , वैसे ही कोई अदृश्य शक्ति उसे जलाने लगती । वह फौरन निकिता से दूर हो जाता । वह निकिता के प्यार पाने में असफल हो रहा था । निकिता भी इस रहस्य से अनभिज्ञ थी । वह विमलेश के अजीबों – गरीब हरकत को देखकर काफी परेशान थी । जब भी वह विमलेश की बांहों में लिपटने का प्रयास करती , वह छिटक कर दूर हो जाता । दूसरी ओर उसके घर में हो रही अजीबों – गरीब घटना से भी वह अलग ही परेशान थी । उसकी समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि आखिर यह सब घटनाएं क्यों घट रही है ?
जब वह नरपिशाच निकीता को पाने में असफल रहा , तो उसने उसकी बहन रश्मि को अपनी हवस का शिकार बनाने का निश्चय किया । उसने सुबह ही रश्मि को बाथरूम से स्नान कर बाहर निकलते हुए देखा था । रश्मि के खुले बालों से टपकती पानी की बूंदे और उसकी गुलाबी होंठ उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे । उसके बदन मानो संगमरमर की भांति चमक रहे थे । जैसे हाथ रखते ही फिसल जाय । उसका यह खिला हुआ सौंदर्य विमलेश के शरीर में प्रवेश किये शैलेश को अपनी ओर आकर्षित कर रहा था । वह अपने आपको संभाल नहीं पा नहीं रहा था । उसका मन बरबस उसकी ओर खिंचा चला जा रहा था । वह अपनी अतृप्त प्यास को बुझाने के लिए रश्मि को अपना अगला शिकार बनाने का निश्चय कर लिया ।
मध्य रात्रि की गहन नीरवता में जब सभी लोग गहरी निद्रा में सो रहे थे , तो वह नर पिशाच बिस्तर से उठा और एक भरपूर निगाह निकिता पर डाला । निकीता बेखबर सो रही थी । वह सोचने लगा – ” निकिता , मैं तुम्हें अपनी हवस का शिकार तो नहीं बना पा रहा हूं । मैं तुम्हारे करीब रहकर भी बहुत दूर हूं । आखिर क्या कारण है कि मैं तुम्हें पाने में असफल हो रहा हूं ? यह पता लगा ही लूंगा और अपनी अतृप्त प्यास को तुम्हारे तन से अवश्य बुझाऊंगा । पहले तो मैं अपनी अतृप्त प्यास को तुम्हारी बहन रश्मि के तन से बुझाऊंगा । इसके बाद न जाने कौन – कौन मेरे दरिंदगी का शिकार बनेगा । बस ! तुम देखती जाना । “ और वह एक कुटिल मुस्कान के साथ कमरे से बाहर निकल गया ।
रात के सन्नाटे को चीरता हुआ वह रश्मि के कमरे की ओर बढ़ा । उसके हाथ के स्पर्श मात्र से कमरे का दरवाजा स्वयं अपने आप खुल गया । वह कमरे के भीतर प्रवेश कर गया और उसके कमरे में प्रवेश करते ही दरवाजा अपने आप बंद हो गया । कमरे में रश्मि अपने बिस्तर पर बेसुध पड़ी थी । उसके कपड़े अस्त – व्यस्त अवस्था में थे । इस अवस्था में वह और अधिक खूबसूरत लगी रही थी और उसका खिलता सौंदर्य उसे अपनी ओर आकर्षित कर रहा था । वह उसके करीब गया और उसके बालों पर अपना हाथ फेरने लगा । उसके गुलाबी होंठों पर हाथों से स्पर्श करने लगा । उसके स्पर्श से उसकी निद्रा भंग हो गयी । वह हड़बड़ाकर उठ बैठी। उसने कमरे की लाइट जला दी। सामने विमलेश को देखते ही अपने कपड़े को ठीक करने लगी । वह घबराकर बोली – ” आप इस समय मेरे कमरे में क्या कर रहे हैं ? आपको तो दीदी के कमरे में होना चाहिए । “
वह फिर रश्मि के बालों और गालों को सहलाने लगा । यह देखकर रश्मि पीछे हटती हुए बोली – ” यह आप क्या कर रहे हैं? आज आपको क्या हो गया है ? आप मेरे कमरे से जाते हैं या नहीं । आप अपनी सीमा से बाहर मत जाइये , अन्यथा मैं चिल्लाऊंगी । “
वह मुस्कुराते हुए बोला – ” आज मुझे क्या हो गया है , यह मैं भी नहीं जानता ! चिल्लाओ , तुम्हें चिल्लाने से कौन रोकता है । कौन तुम्हारी चीख सुनेगा कौन । आज मैं अपनी हवस की भूख मिटाकर ही रहूंगा । मैं खून का प्यासा हूं , मुझे खून चाहिए । वह खून की प्यास तुम मिटाओगी । “
रश्मि यह सुनकर एकदम से भयभीत हो गयी और बोली – ” आज आपको सचमुच क्या हो गया है ? आप क्या अनाप – शनाप बके जा रहे हैं । “
वह अट्टहास करते हुए बोला – ” तुम जो समझ रही हो ,वह मैं नहीं हूं । सच तो यह है कि मैं एक अतृप्त आत्मा हूं । मैं खून का प्यासा हूं । मेरी खून की प्यास मिटती ही नहीं । मेरी मौत हो चुकी हूं और मेरी मौत का कारण तुम्हारी बहन निकीता है । मैं उसके प्यार में पागल था । लेकिन मुझे ठुकराकर विमलेश से शादी कर ली । यह शरीर तो विमलेश का जरूर है , पर आत्मा उसी दीवाने का । मैं उसके शरीर में प्रवेश करने के बाद भी निकीता के प्यार को पाने में असफल हूं । जब तक मैं उसे अपना नहीं बना लेता मेरी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी । मैं अतृप्त आत्मा बनकर यूं ही भटकता रहूंगा । लेकिन आज सुबह जब मैंने तुम्हें बाथरूम से निकलते देखा , तो लगा कि निकीता को बाद मैं अपनी हवस का शिकार बनाऊंगा । पहले क्यों न तुम्हारी संगमरमरी बदन से अपनी अतृप्त प्यास को बुझाऊं । आओ , मेरी बांहों समा जाओ । “ और वह नर पिशाच का रूप धारण कर लिया । रश्मि यह देखकर हतप्रभ रह गयी ।
रश्मि कांपते स्वर में बोली – ” तुम कौन हो और क्या हो ? यह सब तो मैं नहीं जानती ! मैंने और मेरे परिवार ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है , जो तुम खून के प्यासे बने हुए हो । शायद मेरी मां की हत्या तुमने ही की होगी । “
वह कुटिल हंसते हुए बोला – ” हां , हां ! मैं नर पिशाच बन गया हूं । तुम्हारी बहन ने मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी । मैं एक अतृप्त आत्मा बनकर भटक रहा हूं । जब तक मैं उसे पा नहीं लेता , मेरी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी । मेरे रास्ते में जो भी आयेगा , मैं उसे मौत की नींद सुला दूंगा । मैंने ही तुम्हारी मां को मारा है , क्योंकि वह मेरा सच जान गयी थी । अब तुम्हारी बारी है। “
रश्मि जोर से जोर चीखने लगी। लेकिन उसकी चीख कमरे में ही कैद हो गयी । उसकी चीख – पुकार सुनने वाला कोई नहीं था । वह नर पिशाच के आगे गिड़गिड़ाने लगी , लेकिन नर पिशाच उसे अपनी बांहों में समेट लिया । एक भयानक चीख के साथ रश्मि उस प्यासे दरिंदे का शिकार हो गयी। वह जोर से अट्टहास करते हुए उसके खून से अपने आपको सराबोर कर लिया और पुन: विमलेश के रूप में आ गया । और वह रश्मि कमरे से निकल अपने बिस्तर पर निकीता के समीप ही सो गया। इस प्रकार वह अपनी अतृप्त प्यास को बुझा रहा था ।
सुबह जब सभी लोग नाश्ते की टेबल पर आये , तो वहां रश्मि को न पाकर सुरेश प्रसाद निकिता से बोले – ” निकीता , क्या रश्मि अभी तक सो रही है ? जाओ जाकर उसे उठाओ । “
निकिता रश्मि के कमरे की ओर बढ़ी। कमरे का दरवाजा बंद था। निकिता बाहर से ही आवाज देने लगी – ” रश्मि , उठ जाओ ; सभी तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं । “ लेकिन निकिता के बार – बार आवाज देने के बाद भी जब भीतर कमरे से कोई उŸार नहीं मिला , तो निकिता कमरे का दरवाजा खोलकर भीतर झांकी । भीतर का दृश्य देखकर वह चीख उठी । उसकी चीख सुनकर सभी लोग उस ओर भागे । निकिता मानो पत्थर की बुत बनी खड़ी थी और उसकी आंखों से झर -झर आंसू बह रहे थे। लोगों की निगाह बिस्तर पर पड़ी रश्मि की लाश पर टिक गयी । उसके सारे कपड़े अस्त – व्यस्त अवस्था में थे । सारा बिस्तर खून से सना था । उसकी हत्या भी वीभत्स तरीके से की गयी थी । यह देखकर उसके परिवार वालों की रूहें कांप गयी। घर में कोहराम मच गयी। निकिता अपने पापा के सीने से लिपट गयी और बोली – ” पापा , यह क्या हो गया ? किसी वहशी दरिंदे ने मेरी बहन को अपनी हवस का शिकार बना लिया । आखिर हमारे ही घर में ऐसी घटनाएं क्यों घट रही है ? इन सबके पीछे आखिर कौन है और क्या चाहता है ? “
सुरेश प्रसाद मौन खड़े अपने बच्चों को एकटक निहार रहे थे । पुलिस फिर आयी , लेकिन इस बार भी पुलिस को कोई सुराग हाथ नहीं लगा । एक रहस्य की चादर उस घर के इर्द – गिर्द लिपट गयी । इन सबके बीच विमलेश लोगों से दूरी बनाये हुए था ।
निकिता का भाई रमेश आवेशित स्वर में बोला – ” चाहे जो भी इन घटनाओं को अंजाम दे रहा हो , मैं उसे रंगों हाथ पकड़कर ही रहूंगा । आज से ही मैं सारी रात जागकर इस रहस्य पर से परदा उठाऊंगा कि आखिर वह कौन वहशी दरिंदा है , जो रात के अंधेरे में आता है । “
निकिता विमलेश की ओर बढ़ी । विमलेश पीछे हटने लगा । निकिता उसके करीब जाकर बोली – ” विमलेश , यह क्या हो रहा है ? आखिर वह कौन है , जो मेरे परिवार को मौत की नींद सुला रहा है ? मेरे परिवार को अपने वहशीपन का शिकार क्यों बना रहा है ? आखिर हमारे घर को किस की नजर लग गयी ! “
विमलेश कुछ क्षण मौन रहा , फिर बनावटी दिखावपन दिखाते हुए बोला – ” निकिता , यह रहस्य तो मेरी समझ में भी नहीं आ रही है कि आखिर वह वहशी शैतान कौन है और क्यों दरिंदगी की सारी हदें पार कर रहा है ? आखिर वह चाहता क्या है ? मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा । “
कुछ समय तो घर का माहौल शांत रहा । फिर घर में अजीबों – गरीब घटनाएं घटने लगी । । घर के लोगों के बीच दहशत का माहौल कायम हो गया । रात के अंधेरे में अजीब – अजीब तरह की चीखें सुनायी देने लगी। रमेश चैंकना होकर इस रहस्य का पता लगाने में लगा हुआ था । लेकिन ये अजीब – अजीब आवाजें कहां से आ रही थी , कुछ पता नहीं चल पा रहा था। इस खोज के दौरान एक रात रमेश को किसी की अजीब आवाज सुनायी पड़ी । वह उस आवाज की ओर बढ़ा । रात के सन्नाटे में यह अजीब आवाज घर के पिछवाड़े से आ रही थी । वह तेज कदमों से उस ओर भागा। उसे रात के अंधेरे में झाड़ी के ओट में एक छाया नजर आयी। वह धीरे – धीरे उस छाया की ओर बढ़ा । सामने देखते ही वह चैंक पड़ा। वहां कोई नहीं विमलेश था , जो उसकी पालतू बिल्ली को मार उसके खून को पी रहा था । यह सब देखकर उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था । वह एक अज्ञात भय से कांप गया । फिर साहसकर टार्च की रोशनी उसके ऊपर फेंका । वह विमलेश जो नर पिशाच बन चुका था , देखकर रमेश बोला – ” विमलेश , तो यह सारा खेल तुम खेल रहे थे । तुम नरपिशाच कब बन गये ? और मेरे परिवारवालों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था , जो अपने वहशीपन का शिकार बना रहे हो ! “
वह रमेश को देखकर जोर – जोर से हंसने लगा और बोला – ” हां , हां , मैं ही वह वहशी दरिंदा हूं । जिसने पहले तुम्हारी मां को मारा । उसके बाद तुम्हारी बहन रश्मि को अपनी हवस का शिकार बनाया । अभी न जाने कौन – कौन मेरी हवस का शिकार बनेगा । मैं भी एक इंसान था , लेकिन तुम्हारी बहन के कारण नर पिशाच बन गया । अब मैं खून का प्यासा हो गया हूं । मेरी खून की प्यास मिटती ही नहीं । इसलिए लोगों के खून पीकर मैं अपनी प्यास मिटाता हूं । “
” लेकिन तुम यह सब क्यों कर रहे हो ? मेरे परिवारवालों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ? “ रमेश बोला ।
” क्या बिगाड़ा ? तुम्हारी बहन निकिता ने तो मेरी जिंदगी ही बर्बाद कर दी । उसके कारण ही मेरी मौत हुई है । मैं तुम्हारी बहन निकिता से बहुत प्यार करता था । मैं उसके प्यार में अंधा हो गया था । लेकिन वह विमलेश से प्यार करती थी । इस प्रेम के कारण मेरी मौत हो गयी और मैं नर पिशाच बन गया । आज भी मेरी आत्मा अतृप्त है । जब तक मैं निकीता को हासिल नहीं कर लेता मेरी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी । “ वह नर पिशाच एक कुटिल हंसी हंसते हुए कहा ।
रमेश यह सुनकर दंग रह गया और बोला – ” विमलेश , तुम्हें निकिता तो मिल गयी । तुम्हारा शरीर भी तो सही सलामत है । तुम मरे कहां हो , तुम तो जिंदा हो । आखिर सच क्या है ? “
नर पिशाच आवेश में आकर कहा – ” जो तुम देख रहे हो वह सच नहीं है । सच तो यह है कि यह शरीर विमलेश का अवश्य है , लेकिन आत्मा एक अभागे प्रेमी की है , जो विमलेश के शरीर को पाकर भी अपने प्यार को हासिल नहीं कर पाया है । मैंने सोचा था कि विमलेश के शरीर को पाकर मैं निकीता को आसानी से पा लूंगा । लेकिन मेरी यह इच्छा अभी भी अधूरी है । मैं एक अतृप्त आत्मा हूं , जब तक निकीता को पा नहीं लूंगा ; मेरी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी । “
यह सुनकर रमेश एक अज्ञात भय से कांपने लगा। उसका सारा शरीर पसीने से लथपथ हो गया। न जाने रमेश में कहां से इतनी शक्ति आ गयी कि वह तेजी से उस नर पिशाच की ओर लपका । उसने उसके गर्दन को दबोच लिया । तभी एक झटके में वह नर पिशाच उसे हवा में उछालकर जमीन पर पटक दिया ।
फिर रमेश उठने का प्रयास करते हुए बोला – ” पापी , नीच आज मैं तेरा अंत करके ही रहूंगा । “
वह नर पिशाच अपने लंबे पैरों को उसकी छाती पर रखते हुए बोला – ” तू मुझे मारेगा ! तू मेरा अंत करेगा ! भला मरे की भी मौत होती है । मैं तो पहले ही मर चुका हूं । अब तुम्हें मरना ही होगा , क्योंकि तू मेरे सच को जान गया है । अब मैं तेरे खून पीकर अपनी अतृप्त प्यास को बुझाऊंगा । “
वह रमेश को घसीटते हुए झाड़ी की ओर ले गया और रमेश के मुंह से भयावह चीख निकली । यह चीख सन्नाटे को चीरते हुए घर में सोये सभी लोगों की निद्रा को भंग कर दी । परिवार के सदस्य इस भयावह चीख से जाग गये । किसी अनहोनी की आशंका से पूरा परिवार कांप गया। परिवार के लोग ‘ रमेश ! रमेश ! ’ कहकर पुकारने लगे। लेकिन सारा वातावरण मानो एकदम शांत हो चुका था । उनकी आवाजें चारों दिशाओं में गूंज गयी । परिवार के लोग घर का कोना – कोना छान मारने लगे , लेकिन रमेश का कहीं अता – पता नहीं था । चीख की आवाज किस दिशा से आ रही थी , यह भी पता नहीं चल पाया । लेकिन हां , परिवार के सभी सदस्य मौजूद थे , लेकिन विमलेश का कहीं अता – पता नहीं था । जिस पर किसी का ध्यान ही नहीं गया । घर के लोगों की नींद उड़ चुकी थी । लोग यह सोचने पर विवश थे कि आखिर चीख की आवाज किस दिशा से आ रही थी । आखिर इस चीख के साथ रमेश कहां गायब हो गया ? कहीं रमेश भी तो उस वहशी दरिंदा का शिकार तो नहीं हो गया । तभी विमलेश अपने कमरे से बाहर निकला । निकिता उसके करीब जाकर बोली – ” विमलेश , तुम कहां चले गये थे ! देखो न एक भयानक चीख के साथ रमेश भइया न जाने कहां गायब हो गये । आखिर कहां चले गये मेरे भइया ! कहीं वह भी तो …..“
विमलेश चकित होकर बोला – ” क्या रमेश भइया …. ? मैं तो बाथरूम में था । तुम लोगों की आवाज सुनकर भागा – भागा आ रहा हूं । चलो बाहर का चप्पा – चप्पा देखते हैं । “ लेकिन बाहर भी कहीं कुछ पता नहीं चला । हां , एक स्थान पर खून के धब्बे जरूर नजर आये। खून की बूंदें देखकर निकीता की बहन सुषमा चीख पड़ी। लोग उस ओर दौड़ें । खून के धब्बे को देखते हुए निकिता बोली – ” कहीं वह वहशी दरिंदे ने मेरे भाई रमेश को भी तो अपने दरिंदगी का शिकार तो नहीं बना लिया ! “
विमलेश निकिता को समझाते हुए बोला- ” मात्र खून के धब्बे से यह अनुमान लगाना कि रमेश भइया भी …! जब तक उनकी लाश नहीं मिल जाती । कुछ भी नहीं कहा जा सकता ! “
” तो आखिर कहां चले गये मेरे पति ! “ रमेश की पत्नी मनोहरा ने कहा ।
विमलेश बोला – “ यह बात तो मेरी भी समझ में नहीं आ रही कि आखिर रमेश भइया को जमीन निगल गया या आसमान । यह रहस्य तो गहराता ही जा रहा है । “
रमेश की पत्नी मनोहरा का रो – रोकर बुरा हाल था । विमलेश मनोहरा को सांत्वना देते हुए बोला – ” भाभी ! चुप हो जाइये । रोने से क्या फायदा ? अभी शांत हो जाइए । मैं उन्हें खोजने का प्रयास करूंगा । “
निकिता अपनी भाभी को कमरे ले जाते हुए बोली – ” न जाने उसे वहशी दरिंदे का अगला शिकार कौन होगा ? भाभी आप सावधान ही रहना । न जाने कौन है , वह वहशी दरिंदा जो हमारे परिवार के खून का प्यासा हो गया है ! “
रमेश के इस प्रकार गायब होने से पूरे परिवार में दहशत का माहौल कायम हो गया था। आखिर इन घटनाओं के पीछे कौन था ? यह बात हर किसी की समझ से बाहर थी । पूरा परिवार दहशत के माहौल में जीने को मजबूर था ।
आनंद चिंतित स्वर में बोला – ” पिताजी ! मुझे तो लगता है कि इस खेल में घर का ही कोई आदमी शामिल है । वह दरिंदा हमारे घर में ही मौजूद है । क्योंकि बाहर से किसी के आने का सवाल ही नहीं उठता । वह जो भी है बड़ा शातिर खिलाड़ी है । “
सुषमा आनंद की बातों का समर्थन करते हुए बोली – ” भाइया ! सही कह रहे हैं । वह हत्यारा हमारे ही घर में मौजूद है । लेकिन वह कौन हो सकता है ! “
विमलेश चिंतित स्वर में बोला – ” हमारे घर में तो एक ही बाहर का आदमी है और वह है घर का नौकर रघु । कहीं वही तो नहीं यह खेल खेल रहा हो । मुझे तो उस पर पूरा शक है । उसकी हर गतिविधि पर बारीकी से नजर रखनी होगी । “
सुरेश प्रसाद नितांत उदास स्वर में बोले – ” रघु तो हमारे घर में वर्षों से काम कर रहा है । वह ऐसा घृणित काम नहीं कर सकता । “
बड़ी बहू दिव्या बोली – ” पिता जी ! आज के जमाने में किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता । वह लगता भी है बड़ा रहस्यमय प्रवृŸिा का । वह अजीब निगाहों से देखता है । मुझे भी लगता है कि कहीं वही तो नहीं यह खतरनाक खेल खेल रहा है । इस खेल का नायक वही तो नहीं है । “
निकिता गंभीर स्वर में बोली – ” आखिर हम लोग कब तक इस दहशत भरे साये में जीवन व्यतीत करते रहेंगे ! उसका अगला शिकार तो कोई न कोई अवश्य बनेगा । चाहे वह कोई भी हो इस रहस्य पर से परदा उठाना ही होगा । हम लोगों को सचेत रहकर इस समस्या का समाधान निकालना ही होगा । यदि रघु पर शक है , तो आनंद भइया आप रघु की हर गतिविधि ध्यान रखिये । कुछ न कुछ तो करना ही होगा । हिम्मत हारने से काम नहीं चलेगा । हम सब मिलकर उस वहशी दरिंदे का पता लगायेंगे । “
इन खोजों के बीच कुछ समय तक घर का माहौल शांत रहा । किंतु फिर घर में डरावनी आवाजें और अजीबों – गरीब घटनाएं घटने लगी । फिर पूरा परिवार दहशत में जीने लगा। आनंद रघु के हर गतिविधि पर नजर रख रहा था। लेकिन रघु के गतिविधियों पर काफी बारीकी से ध्यान के बाद आनंद इस नतीजे पर पहुंचा कि उस पर शक करने का प्रश्न ही नहीं उठता । वह कोई ऐसा कार्य ही नहीं करता , जिससे उस शक किया जा सके । हां , इतना जरूर था कि वह तंत्र – मंत्र का थोड़ा जानकार जरूर था । वह अमावस्या की काली रात में तंत्र साधना में जरूर लीन रहता था ।
इसी बीच उस दरिंदे को खून की प्यास लगी । वह अपने खून की प्यास बुझाने के लिए अगले शिकार की खोज करने लगा। उसकी निगाह रमेश की पत्नी मनोहरा पर टिक गयी । वह भी तो काफी खूबसूरत थी और वह खूबसूरती का दिवाना । वह मनोहरा को अपना अगला शिकार बनाने का निश्चय कर लिया।
रात्रि के घने अंधकार में उसका सोया हुआ शैतान जाग उठा । वह बिस्तर पर से उठा । एक भरपूर निगाह निकिता पर डाला । निकिता बेखबर सो रही थी । वह एक अजीब मुस्कान के साथ अपने शिकार की खोज में निकल पड़ा।
मनोहरा जो अभी अपने पति के गम को भुला भी नहीं पायी थी । आंसुओं के समंदर में गोते लगा रही थी । उसकी आंखों से रातों की नींद और दिन का चैन गायब हो चुका था । वह दर्द के सैलाब में डूबी बिस्तर पर आंखें खोले एक टक कमरे की छत को निहार रही थी । अचानक हवा का एक तेज झोंका आया और उसके कमरे दरवाजा अपने आप खुल गया। वह चैंक कर उठ कर बैठी। सामने विमलेश खड़ा था । इतनी रात गये विमलेश को अपने कमरे में देखकर आश्चर्यचकित रह गयी । फिर दरवाजा अपने आप स्वत: बंद हो गया । यह देखकर वह और भी भयभीत हो गयी । वह बोली – ” आप इतनी रात गये मेरे कमरे में क्या कर रहे हैं ? “
विमलेश मुस्कुराते हुए बोला – ” भाभी जी ! आपका यह हाल मुझसे देखा नहीं जाता । आपने ये क्या हाल बना रखा है ? इतना खूबसूरत चेहरा इस प्रकार आंसुओं में डूबा अच्छा नहीं लगता । जो होना था सो हो गया । अब बीती बातों को याद करने से क्या फायदा ? अब अपनी जिंदगी को गमों में यूं डूबो कर बाकी बचे खुशनुमा लम्हों को क्यों बर्बाद कर रही हैं । आपकी यह झील – सी आंखें हर किसी को दीवाना बना देती है । आपकी ये बिखरी हुई जुल्फें किसी घनघोर बादल के स्वरूप प्रतीत होते हैं । आपकी ये अदा हर किसी को आपकी ओर आकर्षित करता है । मुझे भी इन झील – सी आंखों में डूब जाने दीजिए , मनोहरा भाभी ! “ और वह मनोहरा के करीब आने लगा ।
उसके करीब आते ही मनोहरा पीछे हटते हुए बोली – ” यह आप क्या कह रहे हैं ? अभी – अभी तो मेरे पति गायब हुए हैं । मैं उनकी यादों से अभी उबर भी नहीं पायी हूं । मैं उनके यादों के सहारे तो ही जी रही हूं और आप बहकी – बहकी बातें कर रहे हैं । यह सब कहते आपको शर्म नहीं आती । आज आपको क्या हो गया है ? आप मेरे कमरे से जाइये , अन्यथा मैं आपकी यह काली करतूत सब को बता दूंगी । “
वह जोर से हंसा और बोला – ” जो इस दुनिया से चला गया , उसके पीछे आप अपना जीवन क्यों बर्बाद कर रही हैं ? आपके रोने – धोने से क्या रमेश वापस आ जायेगा ? इन बेकार की बातों को भूलकर , बाकी बची जिंदगी का मजा लीजिये । आपको देखकर तो हर कोई बहक जाएगा । आप हैं ही इतनी खूबसूरत । मैं भी आपकी खूबसूरती को देखकर बहक गया हूं । आप मेरी काली करतूत को किसी से कहेगी , जब आप जिंदा रहेगी तब न मेरी काली करतूत को बतायेगी । आज मैं तुम्हारी झील – सी इन आंखों में डूब जाऊंगा । मैं अपनी अतृप्त प्यास को मिटाऊंगा । “
यह सुनते ही मनोहरा सन्न रह गयी । उसे प्रतीत होता है कि कहीं यह वही दरिंदा तो नहीं , जिसने उसके पति की हत्या की है । वह बोली- ” कहीं तुम ही तो नहीं इन हत्याओं में शामिल हो । मुझे शक ही नहीं अब विश्वास हो गया है कि घर के वही तुम इंसान हो जो हत्याओं को अंजाम दे रहे हो । आज तुम्हारा यह खेल मैं खत्म कर दूंगी । मैं अभी सब को जाकर तुम्हारा सच बताती हूं । “ वह तेज कदमों दरवाजे की ओर बढ़ी ।
लेकिन वह एक झटके में उसकी साड़ी के पल्लू को पकड़ उसे बांहों में भर लिया। वह मुस्कुराते हुए बोला – ” तुम्हारा शक सही है । मैं ही वह घर का आदमी हूं , जो इन हत्याओं को अंजाम दे रहा हूं । मैं ही वह प्यासा दरिंदा हूं , जो खूनी खेल खेल रहा हूं । मैं खून का प्यासा हूं । मुझे खून चाहिए । मैंने ही तुम्हारे पति को मौत के घाट उतारा है । और तुम्हें भी रमेश के पास भेज दूंगा । मैं तुम्हारे दु: ख को दूर कर दूंगा । जब तुम यह सच जान ही गयी हो ,तो एक सच मैं तुम्हें बताता हूं । मैं विमलेश नहीं हूं । उसके शरीर में प्रवेश किया , एक अतृप्त आत्मा हूं। जो खून का प्यासा है । मैं अपनी अतृप्त प्यास को बुझाने ही इस घर में आया हूं । “
यह सुनकर मनोहरा थर- थर कांपने लगी । वह उसकी बांहों से अपने आप को छुड़ाने का प्रयास करने लगी – ” मुझे छोड़ दो , वरना मैं चिल्लाऊंगी । “
वह मनोहरा को अपनी बांहों के जकड़न में जकड़ते हुए बोला – ” जितना चिल्लाना है , चिल्लाओ ! तुम्हारी चीख सुनने वाला कोई नहीं है । चीखो और जोर से चीखो । “
मनोहरा जोर – जोर से चिल्लाने लगी , लेकिन उसकी चीख मानो उसी कमरे में कैद हो गयी। वह दरिंदा अपने वास्तविक स्वरूप में आ गया । एक भयानक चीख के साथ मनोहरा शांत हो गयी। उसकी यह भयानक चीख कमरे में गूंज गयी । दरिंदा उसके खून से अपनी प्यास बुझाने लगा । मनोहरा उस प्यासे दरिंदे का शिकार हो गयी ।
अगले दिन सुबह जब सुषमा मनोहरा के कमरे में गयी , तो देखती है कि मनोहरा मृत अवस्था में पड़ी थी। सुषमा के मंुह से चीख निकल गयी । उसकी चीख सुनकर परिवार वालों को यह अहसास हो गया कि फिर कोई उस दरिंदे का शिकार हो गया । परिवार के सदस्य चीख की दिशा में भागते हुए आये। सामने का दृश्य देखकर दंग रह गये। सामने मनोहरा की लाश पड़ी थी। उसका पूरा शरीर पीला पड़ हुआ था मानो उसके शरीर से रक्त के एक – एक बूंद को चूस लिया गया हो ।
निकिता और सुषमा उसकी लाश से लिपटकर रोने लगी । दिव्या आंसू बहाते हुए उसे चुप कराने का प्रयास करने लगी । दिव्या निकिता के आंसू पोंछते हुए बोली- ” यह सब हमारे घर में ही क्यों हो रहा है ? आखिर हम लोगों ने किसी का क्या बिगाड़ा है , आखिर वह कौन है , जो हमारे घर को अभिशप्त कर रखा है ? आखिर वह क्या चाहता है ? वह सामने क्यों नहीं आता ? क्यों पीठ पीछे वार करता है ? “
निकिता दिव्या से लिपट बोली – ” मनोहरा भाभी ने आखिर किसी का क्या बिगाड़ा था , जो उन्हें भी अपनी दरिंदगी का शिकार बना लिया । आखिर वह सामने क्यों नहीं आता ? वह यह खूनी खेल क्यों खेल रहा है ? हमारे परिवार के लोगों को मारने के पीछे उसका आखिर मकसद क्या है ? वह क्या चाहता है ? “
तभी विमलेश बोल पड़ा – ” आनंद भइया ! आप तो घर की हर गतिविधि पर बारीकी से नजर रखे हुए थे । क्या रघु की गतिविधियों का कुछ पता चला ? आपकी इतनी बारीक नजर रखने के बाद वह दरिंदा कैसे आ गया ! यह सब कैसे हो गया ! “
आनंद अपने सिर पर हाथ रखते हुए बोला – ” मैं तो सारी रात जाग कर घर का कोना – कोना छान मार रहा था । रघु तो मेरे साथ ही था । फिर वह दरिंदा कैसे और कहां से घर में घुस गया ? रघु पर तो शक करने का सवाल ही नहीं उठता । आखिर वह वहशी दरिंदा घटना को अंजाम देकर कहां गायब हो जाता है ? मेरी तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा कि आखिर यह रहस्य क्या है ? लेकिन हां , इन घटनाओं को ध्यान से देखने से यह प्रतीत जरूर होता है कि वह चाहे जो कोई भी हो अपनी हवस के शिकार बनाने के बाद उसका सारा खून चूस लेता है । यह काम किसी इंसान का हो ही नहीं सकता । यह काम किसी नरपिशाच का है , जो हमारे ही घर में कहीं ठिकाना बनाये हुए है । “
नरपिशाच का नाम सुनते ही विमलेश का चेहरा एकदम उतार गया। उसे लगा कि कहीं लोगों को उस पर शक तो नहीं हो गया । लेकिन अगले ही पल वह अपने आपको संयमित करते हुए दिखावटी सोच में डूब गया । नरपिशाच का नाम सुनते ही परिवार के सदस्य एक अज्ञात भय से कांप गये। सारे परिवार में दहशत का माहौल कायम हो गया। यह सुनकर सुरेश प्रसाद आक्रोशित स्वर में बोले – ” आनंद ! सही कह रहा है । यह किसी इंसान का काम हो ही नहीं सकता । हो न हो कोई नरपिशाच ने हमारे घर में अपना ठिकाना बना लिया है । वह लोगों की हत्या कर अपनी खून की प्यास बुझा रहा है । इसके पहले की कोई और इस नरपिशाच का शिकार बने । हमें सजग रहकर उस नरपिशाच की खोज करनी ही होगी । आज नही ंतो कल वह हमारे हाथ आयेगा ही । उसका अंत करना ही होगा । अन्यथा वह हमारे पूरे परिवार को अपना शिकार बना लेगा । विमलेश , आनंद , मैं और रघु आज से ही नरपिशाच की खोज करेंगे । “
” लेकिन , पापा ! वह तो नरपिशाच है । हम इंसान उसका मुकाबला कैसे करेंगे ! वह तो हम लोगों से अधिक शक्तिशाली है । वह बहुत मायवी है । पलक झपकते ही गायब हो जाता है । उसका अंत हम लोग कैसे कर पायेंगे ! “ निकिता उदास स्वर में बोली ।
आनंद उत्साहित स्वर में बोला – ” चाहे वह पापी कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो , हर पापी का अंत एक न एक दिन होता ही है? अब उस पापी का भी अंत समय आ गया है । समय आने पर एक चींटी भी हाथी से मुकाबला करता है और उसका अंत कर ही देता है ।
और हम तो इंसान है । यदि हम में आत्मविश्वास हो तो पत्थर को भी चीरकर रास्ता बना देते हैं । बस ! हमें सचेत रहकर , उससे मुकाबला करना होगा । एक बार तो वह हाथ आ जाय । “
लेकिन उसकी सारी खोज विफल हो गयी । घर में अप्रत्याशित घटनाएं घटने लगी । घर का दरवाजा का अपने आप खुलने और बंद होने लगता , तो कभी घर के सारे लाइट अपने जलन – बुझने लगते । यह सब कौन कर रहा था , कुछ पता ही नहीं चल पा रहा था। रात के घनघोर अंधकार में तरह – तरह की डरावनी आवाजें और चीखों के आने का सिलसिला शुरू हो गया । घर में रखे बर्तन अपने आप इधर – उधर हवा में तैरने लगे । यह सब देखकर पूरा परिवार दहशत में आ गया था । इन सबके पीछे कौन था ! इस पर से परदा उठा ही नहीं रहा था । इधर पूरा परिवार इस रहस्य पर से परदा उठाने में जी – जान से जुटा था ।
एक रात गहरी निद्रा में सो रही निकिता एक आवाज से चैंक कर उठ बैठी । सामने एक क्रूर – सी स्त्री खड़ी थी । जिसके बिखरे – बिखरे बाल थे और वह काफी भयावह लग रही थी । वह एक कुटिल मुस्कान के साथ निकिता को अजीब निगाहों से घूर रही थी । निकिता उस क्रूर और भयावह स्त्री को देखकर चीख पड़ी । उसकी आवाज सुनकर सभी उस ओर दौड़े । निकिता बदहवास – सी चीख रही थी – ” विमलेश ! बचाओ। “ और वह सामने की ओर इशारा की । तभी विमलेश कमरे का लाइट जला दिया ।
सुषमा बोली – ” क्या हुआ दीदी ! तुम इतनी डरी हुई क्यों हो ? “
निकिता अपनी आंखें बंद किये केवल इतना ही बोली – ” वह सामने क्रूर – सी डरावनी स्त्री है , जो मुझे अजीब निगाहों से घूर रही है । मुझे उससे बचाओ । “
विमलेश चकित होकर बोला – ” निकीता ! तुम अपनी आंखें खोलो । सामने तो कोई भी नहीं है । “
निकिता अपनी आंखें खोली । सामने सचमुच कोई नहीं था। बदहवास – सी वह इधर – उधर देखती हुए बोली – ” वह अभी – अभी तो यही पर खड़ी थी । वह भयानक चेहरा । बिखरे बाल । क्रूर – सी दिखने वाली वह औरत तो सामने ही खड़ी थी । आखिर वह कहां चली गयी ! “
दिव्या बोली – ” तुमने जरूर कोई बुरा सपना देखा होगा । देखो , तो यहां पर कहां कोई है । घर में अजीबों – गरीब घटनाएं घट रही हैं न , इसीलिए तुम्हें भ्रम हो गया होगा । “
निकिता बोली – ” मैं सच कह रही हूं भाभी ! वह औरत यहीं पर खड़ी मुझे घूर रही थी । मैंने कोई बुरा सपना नहीं बल्कि उसे प्रत्यक्ष रूप से देखा है । “
आनंद उसे समझाते हुए बोला – ” पिछले कई दिनों से तुम ठीक से सो नहीं पायी हो न इसलिए तुम्हें भ्रम हो गया है । हम लोग हैं न तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं है । वह चाहे जो भी हो हम उस दरिंदे को ढूंढ़ कर ही रहेंगे । उसे उसके अंजाम तक पहंुचाकर ही रहेंगे । काफी रात हो गयी है । तुम आराम से सो जाओ । विमलेश तुम निकिता का ख्याल रखना । यह बहुत घबरायी हुई है । “ यह कहकर सभी लोग कमरे से चले गये।
डरी – सहमी निकिता बिस्तर पर बैठ गयी । विमलेश उसे समझाते हुए बोला – ” निकिता ! तुमने जरूर कोई बुरा सपना देखा होगा । देखो यहां पर कोई नहीं है । “
निकिता उसे आज काफी खूबसूरत लगी रही थी और आज उसके सब्र का बांध टूट गया । वह सोचा – ” आज चाहे जो हो जाए मैं अपनी अतृप्त प्यास बुझा कर ही रहूंगा । “
और वह निकिता के करीब आया । वह उसके बिखरे बालों पर अपना हाथ फेरने लगा । वह निकिता को प्यार भरी निगाहों से देखते हुए बोला – ” निकिता ! इन बेकार की बातों में इतनी उलझी हुई क्यों हो ? छोड़ो न इन बातों को ! आज तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो । तुम्हारे ये बिखरे बाल और तुम्हारी ये झील – सी नीली आंखें मुझे मदहोश कर रही है । मुझे अपने बांहों समा जाने दो । “ और वह निकिता को अपनी बांहों में भर लिया । वही निकीता उन बातों को भूलकर प्यार के सागर में गोते लगाने लगी। वह निकीता के ऊपर गिर गया । तभी अग्नि की भीषण ज्वाला उसकी आत्मा को जलाने लगी। वह असहनीय पीड़ा से तड़पने लगा । निकिता को हासिल करने के जुनून में उसे इस बात का ध्यान ही नहीं रहा कि भीषण अग्नि की ज्वाला उसे निकिता के करीब जाने से रोकती है । वह फौरन निकीता के शरीर से अलग हो गया ।
निकिता आश्चर्यचकित होकर बोली – ” क्या हुआ विमलेश ! तुम पास होकर भी मुझसे इतना दूर क्यों हो गये ? मैं तुम्हारी विरह की अग्नि में तड़प रही हूं । मेरी इस विरह की अग्नि को शांत कर दो न ! क्या मैं यूं ही तड़पती रहूंगी ? प्यार तो दो दिलों का मिलन है , फिर हमारी यह मिलन क्यों नहीं हो पा रही है ? “
विमलेश से कुछ कहते नहीं बन रहा था । वह बोला – ” निकिता ! तुम ठीक कहती हो , प्यार तो दो दिलों का मिलन है । लेकिन हमारी मिलन कोई बाधक बना हुआ है , जो नहीं चाहता कि हमारा मिलन हो । जब भी मैं तुम्हारे शरीर को स्पर्श करता हूं , न जाने कौन – सी शक्ति मुझे तुमसे दूरी बनाने पर विवश कर देती है । “
निकिता विमलेश की बात सुनकर दंग रह गयी । उसकी समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि एक ओर उसके परिवार के लोगों की हत्या हो रही है , तो दूसरी ओर उसके प्यार मे ंकोई बाधा उत्पन्न कर रहा है । आखिर उसके प्यार को किसी की नजर लग गयी !
वह विमलेश को प्यार भरी से निगाहों से देखते हुए बोली – ” देखो ! न हमारी जिंदगी एक अबूझ पहेली बनकर रह गयी ? एक ओर पूरा परिवार दहशत में जीने को मजबूर है , तो दूसरी ओर हमारे प्यार की इस मधुर मिलन में कोई बाधा उत्पन्न कर रहा है । फिर उस क्रूर – सी स्त्री का बार – बार दिखना । आखिर यह कैसी पहेली है , विमलेश । “
विमलेश अंजान बनते हुए बोला – ” मैं भी इन अप्रत्याशित घटनाओं से अचंभित हूं । आखिर यह सब कौन कर रहा है ! आखिर वह कौन है , जो हमारी जिंदगी को अभिशप्त कर रखा है ! आखिर कब तक यह सिलसिला चलता रहेगा ! इस अबूझ पहेली का हल तो ढूंढ़ना ही होगा । खैर छोड़ों इन बातों । रात बहुत हो गयी है , तुम सो जाओ । मैं इस समस्या का समाधान करने में ही लगा हूं। कोई न कोई रास्ता अवश्य निकलेगा ही । “
पूरा परिवार इस अबूझ पहेली का हल ढूंढ़ना में लगा था । लेकिन इस पहेली का उŸार किसी के पास मौजूद नहीं था । बार – बार उस क्रूर – सी स्त्री का निकिता के आंखों के आगे आना और उसे अजीब निगाहों से घूरना ! निकिता के दिमाग में उथल – पुथल मचाये हुए था । वह यह सोचने पर विवश था कि आखिर वह उस स्त्री उसे ही क्यों दिखायी देती है ? वह कौन है और उससे क्या चाहती है ? अब कौन उस दरिंदे का शिकार बनेगा ! यह सोचकर वह एकदम से परेशान हो गयी ।
इधर विमलेश का सोया हुआ शैतान फिर जाग गया । निकिता न सही उसका अगला शिकार कौन होगा ? वह अपने अगले शिकार की खोज में लग गया । सुबह – सुबह दिव्या भाभी कहीं जाने की तैयारी कर रही थी । अचानक विमलेश की निगाह दिव्या पर टिक गयी । दिव्या सजी – संवरी मानो साक्षात सौंदर्य की प्रतिमूर्ति प्रतीत हो रही थी । विमलेश उसे ललचायी निगाहों से घूरने लगा । उसके दिलों – दिमाग में दिव्या को पाने की चाहत हिलोरें मारने लगी । वह दिव्या को ललचाई निगाहों से देखते हुए बोला – ” भाभी जी ! आज आप इतनी सज – संवर कर कहा जा रही हैं । भइया तो घर पर ही हैं , फिर किस पर बिजली गिराने का इरादा है । आज तो आप इतनी अधिक खूबसूरत लग रही है कि किसी का भी दिल आप पर फिसल जाय । आप हुस्न की परी लग रही हैं । “
दिव्या मुस्कुराते हुए बोली – ” इतना मक्खन मत लगाइए ! मुझसे भी अधिक खूबसूरत तो निकिता है । मैं इतनी खूबसूरत होती , आनंद मेरे आगे – पीछे मंडराया न करते । वह तो मुझे भाव ही नहीं देते ! बस ! यूं ही कुछ खरीददारी करने बाजार जा रही हूं। ” इतना कहकर दिव्या बाहर निकल गयी । विमलेश उसे एकटक निहारता रह गया।
आधी रात गये विमलेश का शैतान जाग उठा। वह अपने कमरे से निकल अपने शिकार की खोज करने लगा । तभी अचानक उसकी निगाह एक खुले कमरे की ओर गयी । वह उस ओर मुड़ा। वह कमरे के भीतर प्रवेश कर गया। सामने सुषमा अपने बिस्तर पर बेखबर सो रही थी । उसके अस्त – व्यस्त कपड़े और उसका सौंदर्य उसे अपनी ओर आकर्षित कर रहा था । वह सोचने लगा कि आज सुषमा को ही अपना शिकार बनाऊंगा । दिव्या भाभी को बाद में अपना शिकार बनाऊंगा । पहले जो सामने है , उससे अपनी अतृप्त प्यास को बुझाऊंगा । मुझे खून चाहिए । कई दिनों से प्यासा हूं । आज जी भरकर रक्त पान करूंगा ।
एक जोर का हवा आया और कमरे का दरवाजा अपने आप बंद हो गया । हवा का वह झोंका सुषमा के कपड़े के और अस्त – व्यस्त कर दिया । वह ललायित निगाहों से सुषमा को निहारने लगा । वह आगे बढ़ा और सुषमा के ऊपर जा गिरा । उसके गिरते ही सुषमा की नींद टूट गयी। कमरे की मद्धिम रोशनी में अपने ऊपर गिरे इंसान को उसने जोर से धक्का दिया । वह इंसान जमीन पर जा गिरा । वह अपने कपड़े को ठीक करते हुए कमरे की लाइट को जला दी। सामने निगाह पड़ते ही वह चैंक गयी। सामने विमलेश उसे ललायित निगाहों से देख रहा था , मानो उस पर एक जूनून सवार हो । वह सुषमा की ओर बढ़ा । सुषमा घबराये स्वर में बोली – ” आप यह क्या कर रहे हैं ? आप मेरे कमरे में कैसे आ गये ! आप इतनी ओछी हरकत कैसे करने लगे ! आप बहुत नीच किस्म के इंसान हैं । आज मैंने आपका असली रूप देख लिया । आपने मेरे साथ यह नीच हरकत करने हिम्मत कैसे की ! आपकी सोच इतनी गंदी होगी , मैंने कल्पना भी नहीं की थी । आप मेरे कमरे से जाते हैं या मैं चिल्लाऊं । “
विमलेश उसे जबरदस्ती अपनी बांहों की गिरफ्त में कैद कर लिया और बोला – ” तुमने मुझे सही पहचान लिया । मैं तुम्हारी खूबसूरती का दीवाना हो गया हूं , सुषमा ! आज मैं तुम्हारी इस खूबसूरती के अथाह सागर में गोते लगाऊंगा ! तुम्हारी इन झील – सी आंखों और संगमरमरी बदन से अपनी अतृप्त प्यास को बुझाऊंगा । इतने दिनों तक तुम जैसी खूबसूरत हसीना मेरे निगाहों से कैसे बची रही ! तुम निकिता से भी अधिक खूबसूरत हो । आज इन घनी जुल्फों मे ंखो जाने दो । “
सुषमा उसकी बांहों की गिरफ्त से छुटने का प्रयास करती हुई बोली – ” नीच , कमीने ! मुझे छोड़ दो ! वरना मैं तुम्हारा सच दीदी को बता दूंगी । “
वह जोर से अट्टहास करते हुए बोला – ” जब तुम मेरा सच जान ही गयी हो ,तो अब चीखने – चिल्लाने से कोई फायदा नहीं । आज मैं तुम्हारी खूबसूरती का रसास्वादन करके ही रहूंगा । मेरा सच जानकर तुम मेरा कुछ बिगाड़ नहीं सकती । जिंदा रहोगी , तो न मेरा सच बताओगी । आज मैं तुम्हें अपना शिकार बनाऊंगा और अपनी अतृप्त प्यास को बुझाऊंगा । “
यह सुनकर सुषमा का रोम – रोम कांप गया । उसे समझते जरा – भी देर नहीं लगी कि यह विमलेश के रूप में कोई शैतान है , जो उसके घर के लोगों की हत्या कर उनके खून से अपनी प्यास बुझा रहा है । वह साहस जुटाकर बोली – ” तो तुम ही वह दरिंदा हो , जो विमलेश के शरीर का लाभ उठाकर यह खूनी खेल रहो हो । इस घर में जितनी भी हत्याएं हुई है , वह तुमने ही की है । आखिर तुम चाहते हो क्या ? क्यों यह खूनी खेल – खेल रहे हो ? आखिर हमारे परिवार ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ? “
विमलेश कुटिल मुस्कान के साथ बोला – ” हां , हां , मैं ही वह प्यासा दरिंदा हूं , जिसे तुम्हारा परिवार खोज रहा है । लेकिन मुझे कोई पकड़ नहीं सकता है और न कोई मुझे मार सकता है । भला मरा हुआ इंसान भी कभी मरता है । सब मेरे शिकार बनेंगे । कोई भी नहीं बचेगा । निकिता के कारण ही मेरी मौत हुई है । उसने ही मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी । निकिता ही तुम्हारे परिवार के बर्बादी का कारण है । यदि उसने मुझे अपना लिया होता , तो न मेरी मौत होती और न मैं यह खूनी खेल खेलता । अब तुम्हें भी मैं अपना शिकार बनाऊंगा । “
सुषमा उसकी बांहों की गिरफ्त में ही गिड़गिड़ाते हुए बोली- ” मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ? मुझे छोड़ दो । मुझ पर रहम करो । “
वह जोर से अट्टहास करते हुए बोला – ” हाथ में आयी इस हुस्न की परी को यूं ही छोड़ दूं । नहीं ! मैं तुमसे ही अपनी अतृप्त प्यास को बुझाऊंगा । मैं बहुत दिनों से प्यासा हूं । तुम्हारे खून को पीकर ही अपनी प्यास बुझाऊंगा । “
वह उसके बालों पर अपना हाथ फेरने लगा , तो कभी वह उसके कोमल गालों को स्पर्श करने लगा । सुषमा जोर – जोर से चिल्लाने लगी। वह मुस्कुराते हुए बोला – ” आज तुम्हें बचाने कोई नहीं आयेगा । तुम्हारी चीख सुनने वाला कोई नहीं है । आज तुम ही मेरी अतृप्त प्यास को बुझाऊंगी । “ और वह नर पिशाच का रूप धारण कर लिया। वह सुषमा को अपनी बांहों की गिरफ्त से आजाद करते हुए बिस्तर पर पटक दिया । सुषमा बदहवास चीखने लगी , और वह उस वहशी दरिंदा का शिकार हो गयी ।
सुषमा की यह चीख पूरे घर में गूंज गयी । आनंद चीख की दिशा में दौड़ा । आनंद जो उस नरपिशाच की खोज में दिन – रात एक किये हुए था । आनंद के पीछे ही रघु और सुरेश प्रसाद भी दौड़े आये। वे हर कमरे की तलाशी लेने लगे । तभी रघु चीखा – ” मालिक ! मेम साहब के कमरे से किसी छाया को अभी – अभी निकलते देखा है । “
वह बदहवास सुषमा के कमरे की ओर इशारा किया और वह उस छाया के पीछे के भागने लगा । उसके पीछे आनंद और सुरेश प्रसाद भी भागे । लेकिन वह छाया घर के पिछवाड़े की ओर भागते हुए अंधेरे में कहीं अदृश्य हो गया । वे सभी घर के पिछवाड़े का एक – एक स्थान को अच्छी प्रकार से देखने लगे , लेकिन वहां किसी का कोई नामों – निशान तक नहीं मिला । तभी आनंद बोल पड़ा – ” लगता है भाग गया । चलिये पहले अब सुषमा के कमरे में । कहीं वह वहशी ….. “ वह वाक्य को अधूरा छोड़कर उस ओर तेज से भागा। उसके पीछे वे दोनों भी भागे आये।
कमरे में घुप्प अंधेरा छाया हुआ था। आनंद पुकारते हुए कमरे के भीतर प्रवेश किया – ‘ सुषमा ! सुषमा ! ’ लेकिन कोई आवाज नहीं मिली । वह फौरन कमरे का लाइट जला दिया । सामने निगाह पड़ते ही वह चीख उठा – ” उस कमीने ने सुषमा को भी अपनी दरिंदगी का शिकार बना लिया ।“ वह आंसू बहता हुआ जमीन पर बैठ अपने सिर को पकड़ लिया ।
आनंद की चीख सुनकर दिव्या , निकिता और विमलेश भी दौड़ते हुए सुषमा के कमरे में आये। सामने बिस्तर पर सुषमा की क्षत – विक्षत लाश पड़ी थी । ऐसी वीभत्स हत्या मानो किसी जंगली जानवर ने उसे नोच खाया हो । यह वीभत्स दृश्य देखकर परिवार के सदस्यों की रूहें कांप गयी । सभी एकसाथ चीत्कार कर उठे।
निकिता की आंखों से आंसुओं की धार बह निकली – ” आखिर उस दरिंदे का शिकार सुषमा भी हो गयी । अभी न जाने और कौन – कौन उसकी दरिंदगी का शिकार होगा ! आखिर हमारे घर को किसने अभिशप्त कर रखा है । “ और वह सुषमा की लाश से लिपट गयी । क
दिव्या उसे चुप कराने का प्रयास करते हुए बोली – ” निकिता ! अब रोने से क्या फायदा ? वह दरिंदा तो हमारे परिवार के एक – एक सदस्य को अपना शिकार बना रहा है । हमें साहस से काम लेना होगा ताकि उस पापी को उसके अंजाम तक पहुंचाया जा सके । उस पापी के अंत का कोई न कोई उपाय ढूंढ़ना ही होगा । “
निकिता बोली – ” लेकिन कैसे भाभी ! वह तो नजर भी नहीं आता है । आखिर वह नर पिशाच है कौन ! जो हमारे परिवार के सदस्यों को अपना शिकार बना रहा है । उसे पकड़ेंगे कैसे ! “
आनंद जो सिर पर हाथ रखकर बैठा हुआ था । एकाएक उग्र स्वर में बोला – ” आज तो वह दरिंदा हाथ में आते – आते बच गया । रघु ने उसे भागते हुए देखा था । लेकिन घर के पिछवाड़े में अंधेरे में न जाने कहां गुम हो गया । आज नही ंतो कल हाथ आ ही जाएगा । मैं उसका अंत करके ही दम लूंगा । “
तभी विमलेश चैंकते हुए बोला – ” रघु ! क्या तुमने उसका चेहरा देखा ! वह कौन था ? “
रघु बोला – ” नहीं मालिक , अंधेरा होने के कारण मैं स्पष्ट रूप से कुछ नहीं देख पाया । वह अंधेरा का लाभ उठाकर भाग गया । लेकिन अब वह जल्द ही पकड़ा जाएगा । उसका यह खूनी खेल अब ज्यादा दिन नहीं चलेगा । “
दिव्या बोली- ” रघु ! जब हम लोगों का अंत कर देगा , तब वह पकड़ा जाएगा ! उसका अगला शिकार न जाने कौन होगा ! तुम तो तंत्र विद्या के जानकर हो , फिर तुम कुछ करते क्यों नहीं ? “
रघु बोला – ” वह जो भी कोई है , इस खेल का माहिर खिलाड़ी है । वह काला जादू में निपुण है । मेरी तंत्र विद्या उसके सामने बौनी हो जाती है । लेकिन आप निश्चिंत रहे । मैं इस काला जादू के माहिर खिलाड़ी का पता लगा कर ही रहूंगा । आप लोगों को सावधान रहना होगा । वह फिर अपने खून की प्यास बुझाने के लिए किसी न किसी को अपना शिकार अवश्य बनायेगा । इस बार मैं उसे पकड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ूगा । उसका सच सबके सामने लाकर ही रहूंगा ।“
लेकिन पूरा परिवार दहशत में जीने के बावजूद उस प्यासे दरिंदे की खोज में लगा हुआ था । उनकी खोज सफल नहीं हो पा रही थी । रघु भी अपने तंत्र विद्या के बल पर उसे पकड़ने का भरपूर प्रयास कर रहा था , लेकिन वह भी सफल नहीं हो पा रहा था । घर में अजीबों – गरीब घटनाओं के घटने का सिलसिला निरंतर चल ही रहा था । कभी फर्श पर खून के धब्बे नजर आते , तो कभी कुर्सियां अपने आप इधर – उधर घूमने लगती । अजीब – अजीब प्रकार के जीव – जंतु घर में मरे पड़े मिलते । भयानक चीखें सुनाई देती । अजीब – अजीब प्रकार की छायाएं दिखती ।
इधर उस क्रूर – सी स्त्री का निकिता की आंखों के आगे आने का क्रम फिर शुरू हो गया । वह जब तब निकिता की आंखों के आगे आ जाती और उसे अजीब निगाहों से घूरने लगती । जब निकिता उसे पकड़ने या उससे कुछ पूछने का प्रयास करती , तो वह हवा में अदृश्य हो जाती। निकिता की जिंदगी में उस औरत ने भूचाल मचा दिया था । सोते – जागते वह औरत निकिता के सामने प्रकट हो जाती ।
एक दिन मध्य रात्रि के समय जब निकिता गहरी निद्रा में सो रही थी , तो – ‘ निकिता ! निकिता ! उठो निकिता । ’ की आवाज से वह चैंक कर उठ गयी । सामने वही क्रूर – सी औरत खड़ी थी और अजीब प्रकार से हंस रही थी ।
यह देखकर निकिता एक दम से कांप गयी । फिर भी उसने साहस कर कहा – ” तुम कौन हो और मुझसे क्या चाहती हो ? क्यों मेरी जिंदगी में तूफान खड़ा कर रही हो । “
वह क्रूर – सी स्त्री एक कुटिल मुस्कान के साथ बोली – ” समय आने पर सब पता चल जाएगा । “ और हवा का एक झोंका आया और वह उस हवा के झोंके के साथ अदृश्य हो गयी।
निकिता उस स्त्री की बात को समझ नहीं पायी। वह सोचने लगी – ” आखिर वह स्त्री कौन थी ? मुझसे क्या चाहती है ? आखिर उसका इरादा क्या है ? आखिर आगे क्या होने वाला है ? “
विमलेश के खून की प्यास फिर जाग उठी । रात्रि के घने अंधकार में बिस्तर पर से उठा । अपने अगले शिकार की तलाश में निकल पड़ा । उसकी आंखों के आगे दिव्या का खूबसूरत चेहरा बार – बार आने लगा । वह उसकी खूबसूरती का दीवाना बन चुका था । अब वह उसकी खूबसूरती का रसास्वादन करना चाहता था । वह घने अंधकार को चीरता हुआ दिव्या के कमरे की ओर बढ़ा । सारा वातावरण एकदम शांत था । चारों ओर एक अजीब – सा सन्नाटा छाया हुआ था । उसके दरवाजे के निकट जाते ही कमरे का दरवाजा अपने आप खुल गया। उसके कमरे प्रवेश करते ही दरवाजा स्वत: बंद हो गया। सामने बिस्तर पर बेखबर दिव्या निद्रा के आगोश में समायी हुई थी । कमरे की मद्धिम रोशनी में दिव्या का खिलता सौंदर्य उसे अपनी ओर आकर्षित कर रहा था । उसकी गुलाबी होंठ और उसके गोरे – गोरे गाल उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे । वह धीरे – धीरे बिस्तर की ओर बढ़ा । वह दिव्या के करीब जाकर उसकी गुलाबी होंठों को चूम लिया । उसके स्पर्श मात्र से ही दिव्या की नींद खुल गयी । वह एक झटके में उठकर बैठ गयी । सामने निगाह पड़ते ही वह चैंक पड़ी। सामने विमलेश उसके बिस्तर पर बैठा था । वह अपने कपड़े को ठीक करते हुए फौरन बिस्तर से उतर गयी और बोली – ” विमलेश ! तुम मेरे कमरे में कैसे घुस आये ! मेरा कमरा तो बंद था और तूने मुझे स्पर्श करने का साहस कैसे किया ! “
वह मुस्कुराता हुआ बोला – ” मैं कहीं भी आ जा सकता हूं । मेरे रास्ते में कोई भी दरवाजा बाधक नहीं बन सकता ! तुम खूबसूरत ही इतनी हो कि किसी का भी दिल फिसल जाय । तुम्हारा ये रूप हर किसी को पागल बना देगा । तुम्हारे ये गुलाबी होंठ इतने खूबसूरत हैं कि किसी को भी तुम्हें चूमने पर विवश कर दें । मैं भी खूबसूरती का दिवाना हूं । जब मुझे कोई चीज पसंद आ जाती है , तो उसे हासिल कर ही लेता हूं । तुम जैसी हसीना को मैं कैसे छोड़ सकता हूं । तुम मुझे पसंद आ गयी हो । तुम कुआं हो और मैं प्यासा । आओ मेरी इस अतृप्त प्यास को बुझा दो । “
यह सुनकर दिव्या कांप गुस्से से कांप गयी और बोली – ” आप कैसी बहकी – बहकी बातें कर रहे हैं । कहीं आपने शराब तो नहीं पी रखी है । “
वह मुस्कुराता हुआ बोला – ” दिव्या ! तुम हो ही इतनी खूबसूरत कि बिना पीयें नशा छा जाता है । तुम्हारी ये नशीली आंखें तो हरकिसी को मदहोश कर देती है । जिस दिन से मैं तुम्हें देखा हूं , मैं तुम्हारा दीवाना हो गया हूं । मुझे और मत तड़पाओं आओ मेरे बांहों में समा जाओ । “ और वह बिस्तर से उतर धीरे – धीरे दिव्या की ओर बढ़ने लगा।
दिव्या दरवाजे की ओर भागी । वह दरवाजा खोलने का प्रयास करने लगी , लेकिन दरवाजा नही खुला । इसी बीच विमलेश दिव्या की ओर बढ़ा । वह बदहवास इधर – उधर भागने लगी ।
वह बोला – ” दिव्या ! इधर – उधर भागने से कोई फायदा नहीं है । तुम इस कमरे से बाहर नहीं जा सकती हो । आज की रात तुम ही मेरी अतृप्त प्यास को बुझाओगी । मुझे कई दिनों से रक्त नहीं मिला है । आज मैं तुम्हारे रक्त पीकर ही अपनी प्यास को बुझाऊंगा । “
दिव्या चिल्लाने वाली ही थी । तभी विमलेश उसके मुंह पर अपना हाथ रख दिया और उसे घसीटते हुए बिस्तर पर ले जाकर पटक दिया । दिव्या बोली – ” मैंने आपका क्या बिगाड़ा है ? मुझे छोड़ दीजिए । आप इतना नीचे कैसे गिर गये , मैंने सपने में भी नहीं सोचा था । पहले से ही तो परिवार के लोग उस वहशी दरिंदे के शिकार हो रहे हैं । अब आप भी वहशी बन गये हैं । मुझे छोड़ दीजिए , मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगी । “
विमलेश जोर से हंसा – ” बिगाड़ा तुमने नहीं , बल्कि बिगाड़ा है तुम्हारे ये खिलते सौंदर्य ने । जिसे देखकर अच्छे – अच्छे का दिल फिसल जाय । फिर हाथ आयी इस हुस्न की परी को कैसे छोड़ दूं । क्या मैं तुम्हारे सौंदर्य का रसास्वादन न कर प्यासा ही रह जाऊं । मैं तो पहले से ही प्यासा हूं । मैं विमलेश नहीं , मैं वही वहशी दरिंदा । यह शरीर जरूर विमलेश का है , लेकिन आत्मा एक प्यासे दीवाने का , जो आज भी निकिता के प्यार को पाने के लिए तड़प रहा है । मैं मरने के बाद भी उसे हासिल नहीं कर पाया। लेकिन वो नहीं , तो तुम तो मेरी अतृप्त प्यास को बुझा ही सकती हो । जब तक मैं उसके प्यार को पा नहीं लेता , मेरी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी । “
दिव्या को यह समझते देर नही लगी कि यह वही वहशी दरिंदा है जो परिवार के लोगों को मारकर अपनी अतृप्त प्यास को बुझा रहा है । समझदारी से काम लेना होगा । तभी आज मैं इसका अंत कर पाऊंगी ।
दिव्या मुस्कुराते हुए बोली – ” तो तुम ही यह मौत का भयावह खेल – खेल रहे हो । तुम आखिर विमलेश के शरीर में कैसे प्रवेश कर गये । विमलेश की आत्मा क्या हुआ ? “
” तुम काफी समझदार हो । हां , मैं ही वो वहशी दरिंदा हूं , जो लोगों को मारकर अपने खून की प्यास बुझा रहा हूं । विमलेश मेरे रास्ते का बाधक था । मैंने मरने के बाद जबरदस्ती उसके शरीर पर कब्जा कर लिया , ताकि निकिता को आसानी से पा सकूं । लेकिन मेरी यह योजना असफल हो गयी । न जाने निकीता में कौन – सी शक्ति है , जो मुझे उसके करीब जाने से रोकती है । लेकिन मैं उस पहेली का हल भी खोज लूंगा । उसे अपना बनाकर ही रहूंगा । तभी मेरी बेचैन आत्मा को शांति मिलेगी । विमलेश की आत्मा को मेरी मां ने अपने वश कर लिया है । वह अब कभी अपने शरीर में वापस नहीं लौट पाएगा । यह सब तुम जान ही गयी हो , तो अब मरने के लिए भी तैयार हो जाओ । “
यह सुनते ही दिव्या का रोम – रोम कांप गया। वह मन ही मन निश्चय कर लेती है कि इस वहशी दरिंदे का आज अंत करके ही रहूंगी ।
जैसे ही वह दिव्या के ऊपर गिरने का प्रयास किया। दिव्या जोर से अपने पैरों से उसके सीने पर वार की । वह एक झटके में दूर जा गिरा। दिव्या फौरन बिस्तर से उतरकर कमरे में रखे एक वजनदार लोहे के राॅड को उठा ली और बोली – ” नीच ! पापी , आज मैं तेरे इस खेल का अंत करके ही रहूंगी । “ वह पलक झपकते ही उस राॅड से एक जोरदार वार की । उसके इस वार से मानो वह मृत तुल्य जमीन पर गिर गया । बदहवास दिव्या निरंतर उस पर वार किये जा रही थी । तभी मानो उसमें असीम शक्ति आ गयी हो । दिव्या अभी राहत की सांस लेने ही वाली थी कि उसने वहशी दरिंदे का अंत कर दिया । तभी वह एक झटके में उठकर बैठ गया । वह बोला – ” तो तू मुझे मारेगी । मेरा अंत तो काफी पहले ही हो चुका है । क्या मृतात्मा की भी कभी मृत्यु होती है । तुम तो खूबसूरत होने के साथ काफी साहसी भी हो । तुम्हारे साथ अपनी अतृप्त प्यास बुझाने में तो बड़ा मजा आएगा । “ और वह अपने हाथों को विस्तार कर उसके हाथ से वह राॅड छीनकर दूर फेंक दिया । वह उसे उठाकर बिस्तर पर पटक दिया । वह ललायित निगाहों से उसके करीब आया। वह उसके बालों को , तो कभी उसके होंठों को चूमने लगा । दिव्या उसके सामने रोती – गिड़गिड़ाते अपने जीवन की भीख मांगने लगी। लेकिन वह दरिंदा उसे अपनी बांहों में भर लिया। उसके नुकीले दांत उसके कोमल अंगों को वेध दिये । वह एक भयावह रूप से चीख पड़ी । वह वहशी दरिंदा उसे अपनी हवस का शिकार बना लिया । उसकी भयानक चीख पूरे घर में गंूज गयी । परिवार के लोग उस ओर दौड़े। कमरे में प्रवेश करते ही देखा कि दिव्या अपने जीवन की अंतिम सांसें गिन रही थी। परिवार के लोग आंसुओं के समंदर में गोते लगाने लगे । मानो वे पत्थर की बुत बन गये हो । आनंद दिव्या को अपनी बांहों में भर लिया। वह आंसू बहता हुआ बोला – ” दिव्या ! किस कमीने तुम्हारी ये हालत की है । बताओ मैं उस पापी को इसकी सजा देकर ही रहूंगा । बताओ दिव्या ! बताओ वह कौन था ? तुमने तो उसे देखा होगा। “
अंतिम सांसें गिन रही दिव्या अपनी आंखें खोली। वह आनंद को स्नेह भरी निगाहों से देखती हुई विमलेश की ओर इशारा की और हमेशा – हमेशा के लिए अपनी आंखें मूंद ली।
सभी की निगाहें विमलेश की ओर टिक गयी। आनंद सोच में पड़ गया – ” आखिर दिव्या ने विमलेश की ओर इशारा क्यों किया ? कहीं विमलेश ही तो नहीं दिव्या का हत्यारा है ! क्या विमलेश ही वह दरिंदा है जो परिवार के सदस्यों को मार रहा है ? “
लेकिन अगले ही पल उसकी अंतरात्मा ने यह मानने इंकार कर दिया कि विमलेश हत्यारा हो ही नहीं सकता । वह अपलक नेत्रों से विमलेश की ओर देखने लगा। विमलेश पत्थर की बुत बना खड़ा था । उसे लग रहा था कि आज उसका सच सबके सामने आ जाएगा ।
तभी निकिता ने उसे झकझोरते हुए कहा – ” विमलेश ! भाभी ने तुम्हारी ओर इशारा क्यो किया ? कहीं …….। “
विमलेश आंसू बहाने का नाटक करते हुए बोला – ” मैं तो तुम्हारे साथ कमरे में ही था । फिर मैं उनके कमरे में कैसे आ सकता हूं ! फिर भाभी ने मेरी ओर इशारा क्यों किया ? मैं भी समझ नहीं पा रहा हूं । कहीं कोई मेरा हमशक्ल तो नहीं है ! जो मुझे फंसाने के लिए कोई साजिश रच रहा हो ।“
आनंद ने अपनी आंखों से बहते आंसू को पोंछते हुए कहा – ” आखिर दिव्या क्या कहना चाहती थी ? विमलेश की ओर इशारा क्यों किया ? आखिर यह पहेली क्या है ? “
वही रघु को यह समझते देर नहीं लगा कि यह सारा खेल यही विमलेश ही खेल रहा है । उसका यह शक अब यकीन में बदल चुका था । लेकिन उस समय वह चुप रहना ही उचित समझा ।
उधर निकिता विमलेश के बदले व्यवहार से पहले से ही चिंतित थी । अब जब दिव्या भाभी ने विमलेश की ओर इशारा किया तो वह अब यह सोचने पर विवश हो गयी कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है । इसके पीछे का रहस्य पता लगाना ही होगा कि आखिर विमलेश का सच क्या है?
एक दिन जब विमलेश घर पर नहीं था , तो रघु निकिता के कमरे में आया । सामने रघु को देखकर निकिता बोली – ” क्या बात है , रघु चाचा ! आप मेरे कमरे में । कोई विशेष बात है क्या ? “
रघु सकुचाते हुए बोला – ” मेम साहब ! मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूं ! “
” हां , हां , कहिये न ! जो कुछ कहना हो नि: संकोच कहिये । “ निकिता बोली ।
” वो …. वो …. मैं …. यह कहना चाहता था कि …..“ रघु स्पष्ट रूप से कुछ भी बोलने से हिचक रहा था ।
निकिता रघु से बोली – ” रघु जो कुछ कहना चाहते हो साफ – साफ कहो । तुम डर क्यों रहे हो ? “
” आप बुरा तो नहीं मानेगी । “
” नहीं , नहीं , रघु तुमको जो कहना हो साफ – साफ कहो । आखिर बात क्या है ? “
” मेम साहब ! मुझे विमलेश पर शक है । मैं पहले से ही उन पर शक कर रहा था । लेकिन कल की घटना ने इस बात को और अधिक पुख्ता कर दिया है । उनके बदले व्यवहार इस बात की ओर इशारा करते हैं कि कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ है । आप मेरी बात का बुरा न मानियेगा । “ रघु डरते हुए कहा ।
” रघु ! मैं भी कल से यही सोच रही हूं कि दिव्या भाभी ने विमलेश की ओर इशारा क्यों किया ? आखिर इसके पीछे क्या रहस्य है ? मैं समझ नहीं पायी । “ निकिता बोली।
रघु बोला – ” मेम साहब ! इस रहस्य पर से परदा उठाना ही होगा । आपको विमलेश बाबू पर कड़ी निगाह रखनी होगी । तभी इस रहस्य पर से परदा उठ सकेगा । आप सचेत रहते हुए उनकी हर गतिविधि पर ध्यान दीजिए । मैं तो इस रहस्य पर से परदा उठाने में जी – जान लगा हुआ हूं । आपका सहयोग मिला , तो शीघ्र ही इस रहस्य पर से परदा उठ जाएगा । “
” तुम ठीक कहते हो रघु ! कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है । मैं आज से ही विमलेश की हर गतिविधि पर ध्यान रखूंगी । तुम भी विमलेश की हर गतिविधि पर ध्यान देना । “ निकिता उदास स्वर में बोली।
और रघु निकीता के कमरे से बाहर निकल गया । निकीता यह सोचने पर विवश हो गयी कि सचमुच विमलेश ही तो नहीं यह सारा खेल खेल रहा है । क्योंकि वही विमलेश जो उससे मिलते ही उसे अपनी बांहों में भर लेता था । बात – बात पर छेड़ने लगता था । शादी के बाद तो वह मेरे करीब आने से भी घबराता है । शादी की पहली रात से ही उसके स्वभाव में आश्चर्यजनक बदलाव आ गया है । आज भी उसकी मिलन अधूरी है । जब भी वह उसके करीब जाती है , वह उससे दूर छिटक जाता है । आखिर ऐसा क्यों ? वह मेरे करीब आने से क्यों घबराता है ? मेरे स्पर्श मात्र से ही उसका तन -बदन क्यों जलने लगता है ? यह बात इस ओर इशारा करती है कि कहीं न कहीं जरूर कुछ गड़बड़ है । अब मुझे विमलेश के इस बदले व्यवहार का पता लगाना ही होगा । अभी वह इन ख्यालों में डूबी हुई थी कि वह क्रूर – सी स्त्री फिर उसकी आंखों के सामने प्रकट होती हुई और बोली – ” क्या सोच रही हो निकिता ? “
निकिता का ध्यान भंग हुआ। सामने निगाह पड़ते ही वह एक अज्ञात भय से कांप गयी। फिर साहस कर बोली – ” तुम कौन हो और क्या चाहती हो ? क्यों मेरे जीवन तूफान खड़ा कर रही हो ? “ और वह उस औरत को पकड़ने के लिए आगे बढ़ी , लेकिन हवा का एक तेज झोका आया और वह हवा में कहीं अदृश्य हो गयी ।
निकिता यह सोचने पर विवश हो गया कि पहले विमलेश का बदला हुआ व्यवहार , फिर घर में अजीबों – गरीब घटनाओं का दौर । उसके बाद एक – एक कर परिवार के सदस्यों की मौत । अब इस स्त्री का मेरी आंखों के आगे आना , आखिर माजरा क्या है? यह सोचते – सोचते उसके सिर में दर्द होने लगा और वह बदहवास – सी जमीन पर अपना सिर पकड़कर बैठ गयी ।
रात्रि के गहन अंधकार में पूरा परिवार दहशत के बीच इस रहस्य पर से पर्दा उठाने में प्रयासरत था । रघु और सुरेश प्रसाद गहन अंधकार को चीरते हुए धीमें कदमों से घर का कोना – कोना छान मार रहे थे । तभी किसी कमरे से किसी स्त्री और पुरूष की आवाज सुनाई पड़ी । वे दोनों धीरे – धीरे उस आवाज की ओर बढ़े । एक वीरान और खाली पड़े कमरे से यह आवाज आ रही थी । दोनों उस कमरे के दरवाजे के निकट गये । कमरे का दरवाजा खुला हुआ था। वे दोनों चुपके से कमरे के भीतर प्रवेश कर गये और एक कोने में दोनों छिपकर देखने लगे। कमरे में चंद्रमा का दूधिया प्रकाश आ रहा था । इस प्रकाश में सामने निगाह पड़ते ही वे दोनों चैक पड़े। सामने विमलेश खड़ा था। उसके निकट ही एक क्रूर – सी दिखने वाली स्त्री हाथ में त्रिशुल लिये खड़ी थी। विमलेश बोला – ” मां ! मेरी आत्मा आज भी अतृप्त है । क्या मैं यूं ही अतृप्त तड़पता रहूंगा । “
वह स्त्री एक कुटिल मुस्कान के साथ बोली – ” क्या हुआ बेटा ? क्यों इतना परेशान हो ? अब तुम्हारी मां भी यहां आ गयी है । अब तुम्हारी कामना शीघ्र पूरी हो जाएगी । “
” क्या मां ? मैं उस विमलेश के शरीर में प्रवेश करने के बाद भी निकिता को हासिल नहीं कर पा रहा हूं । जब भी उसे स्पर्श करने का प्रयास करता हूं , तो न जाने क्यों अग्नि की भीषण ज्वाला मुझे जलाने लगती है । मैं उसके करीब रहकर भी उससे काफी दूर हूं । इतना शक्तिशाली होने के बावजूद मेरी शक्तियां उसके सामने क्षीण हो जाती है । वही मेरे खून की प्यास भी नहीं मिट रही है । कल तो लोगों को मुझ पर शक हो गया । लेकिन किसी प्रकार इस मामले को सुलटा दिया । आगे किसी भी दिन मेरे इस रहस्य पर से पर्दा उठ सकता है । अब जल्दी से कुछ करो , मां ! मेरी आत्मा को शांति दो मां ! मैं निकिता के बिना नहीं रह सकता । “ वह व्यग्र होकर बोला ।
उसकी मां बोली – ” क्या लोगों को तुम पर शक हो गया है ? “
” हां , मां ! उस दिव्या ने मरते समय मेरी ओर इशारा किया था । लेकिन मैंने ऐसी दलील दी कि कोई मुझ पर शक कर ही नहीं सकता । लेकिन मैं आखिर कब तक लोगों की नजरों से बचा रह पाऊंगा ! लोग मेरी खोज में लगे हुए हैं । कहीं मेरा राज सबके सामने न आ जाए , क्योंकि मैं नरपिशाच हूं । बिना रक्त पीये नहीं रह सकता ! मुझे रात में भी नींद नहीं आती । मैं रातभर अपने शिकार की खोज में भटकता रहता हूं । कहीं मैं यूं ही न भटकता रह जाऊं ! अब जल्दी कुछ करो मां ! “
” ठीक है , मैं अभी पता लगाती हूं कि निकिता में कौन – सी शक्ति है जो तुम्हें उसके करीब आने से रोकती है और तुम्हारे मिलन में बाधक बन रहा है । “ और वह स्त्री ध्यानस्थ हो गयी । फिर अपनी आंखें खोली ।
वह मुस्कुराती हुए बोली – ” बेटा ! मैं जान गयी हूं कि वह कौन – सी है , जो तुम्हें उसके करीब जाने से रोकती है । उसको स्पर्श करते ही क्यों अग्नि की भीषण ज्वाला उठने लगती है ? उसके गले में जो मंगलसूत्र है , वही तुम्हें उसके करीब जाने से रोकता है । वही तुम्हारे मिलन में बाधा उत्पन्न कर रहा है। जब तक वह मंगल सूत्र उसके गले में रहेगा , तब तक तुम अपनी अतृप्त प्यास को बुझा नहीं पाओगे । इसके लिए यह आवश्यक है कि किसी प्रकार उसके गले से वह मंगल सूत्र निकाला जाय । लेकिन यह तुम्हारे लिए संभव नहीं है । “
” तो क्या मां ? मैं यूं ही अतृप्त आत्मा बनकर भटकता रहूंगा । मेरी अतृप्त प्यास कभी नहीं बुझ पाएगी ! “ वह निराश स्वर में बोला ।
तभी वह स्त्री जोर से अट्टहास करते हुए बोली – ” बेटा ! तेरी मां के रहते तुम प्यासे कैसे रहोगे । मैं तुम्हारी इस अतृप्त प्यास को बुझाने का कोई न कोई रास्ता अवश्य निकालूंगी । जैसे ही निकिता से तुम्हारा मिलन होगा , तुम्हारी सारी प्यास मिट जाएगी । तुम पुन: इंसान के रूप में आ जाओगे । “
” लेकिन मां ! यदि विमलेश की आत्मा ने फिर अपने शरीर पर कब्जा करने का प्रयास किया , तो मैं क्या करूंगा ? “ वह घबराये हुए स्वर में बोला ।
” ऐसा हो ही नहीं सकता । मैंने उसकी आत्मा को ऐसे स्थान पर कैद कर दिया है कि वह कभी वापस लौट ही नहीं पायेगा । जब तक तेरी मां है , तुम्हें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है । “
इधर दोनों यह रोमांचक कहानी सुनकर आश्चर्यचकित थे । सुरेश प्रसाद और रघु को सारा माजरा समझ में आ गया कि विमलेश के शरीर में किसी और की आत्मा ने कब्जा कर लिया है । विमलेश के शरीर का लाभ उठाकर कोई बुरी आत्मा अपने खून की प्यास बुझा रहा है । यह आत्मा निकीता को पाने के लिए ही यह सब कर रहा है । यह जानकर सुरेश प्रसाद का खून खौल गया । वह उन दोनों की ओर अपना कदम बढ़ाने ही वाले थे कि तभी रघु आगे बढ़कर उन्हें रोक दिया । वह धीमे स्वर में बोला – ” मालिक ! अभी इस नरपिशाच से मुकाबला करने का सही समय नहीं है । एक नरपिशाच है तो दूसरी मायवी दुनिया की माहिर खिलाड़ी । आप इस समय इससे जीत नहीं सकते । इन्हें मारना कोई खेल बात नहीं है , जितना आसान आप समझ रहे हैं । रात के समय ये मायवी दुनिया के लोग काफी ताकतवर हो जाते हैं । अभी यहां से भागने में ही भलाई है । “
सुरेश प्रसाद रघु की बातों से सहमत हो गये। वे भी समझ गये कि इस समय मारना आसान काम नहीं है । सचमुच ये काफी शक्तिशाली हैं ।
वे दोनों वहां से निकलने लगे , लेकिन घने अंधकार में वे किसी चीज से टकरा गये। उन दोनों का ध्यान भंग हुआ । सामने रघु और सुरेश प्रसाद को देखकर विमलेश बोल पड़ा – ” देखो मां , ये दोनों हमारे सारे राज को जान गये हैं ; अब इन्हें मौत की नींद सुलानी ही होगी । “
वह क्रूर – सी स्त्री जोर से हंसी और बोली – ” आज इन दोनों की मौत ने इन्हें यहां खींच लाया है । जाओ ! अब इन दोनों से अपने खून की प्यास बुझाओ । “
सुरेश प्रसाद यह सुनकर भागने लगे , लेकिन भागने के क्रम में किसी चीज से टकराकर जमीन पर गिर गये। वह फिर उठकर भागने का प्रयास करने लगे , तभी विमलेश नर पिशाच का रूप धारण कर लिया और अपने हाथों को उनकी गर्दन तक बढ़ाकर एक झटके में अपने निकट ले आया । वह बोला- ” आज मेरे खून की प्यास तुम ही मिटाओगे । तुम दोनो मेरे सारे राज को जान गये हो । अब मरने के लिए तैयार हो जाओ । “
सुरेश प्रसाद उसके आगे गिड़गिड़ाने लगे – ” छोड़ दो मुझे , जाने दो मुझे ! मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है । क्यों मेरे परिवार के पीछे पड़े हो ? “
” बिगाड़ा तुमने नहीं , तुम्हारी बेटी ने बिगाड़ा है । उसी के कारण मुझे नरपिशाच बनना पड़ा । मैं खून का प्यासा हूं और आज वह खून तुम दोगे । “ और वह अपना नुकीला दांत सुरेश प्रसाद के शरीर में गड़ा दिया। सुरेश प्रसाद चीखने – चिल्लाने लगे। उनकी यह भयानक चीख पूरे घर में गूंज गयी ।
उधर वह क्रूर – सी तांत्रिक औरत तंत्र विद्या के द्वारा रघु को मारने का भरपूर प्रयास करने लगी , लेकिन वह रघु के तंत्र – मंत्र के आगे उसे मारने में विफल हो गयी। अत: वह औरत अपने हाथ में मौजूद त्रिशुल से रघु के सिर पर भरपूर वार की । इस वार से रघु वहीं पर बेहोश होकर गिर पड़ा ।
इधर सुरेश प्रसाद की चीख सुनकर आनंद और निकिता चीख की दिशा में दौड़े । वे दोनों उस कमरे के भीतर प्रवेश कर गये । लेकिन कमरे के भीतर घनघोर अंधकार था । कुछ भी दिखायी नहीं पड़ रहा था । तभी आनंद कमरे का लाइट जला दिया । सामने सुरेश प्रसाद की क्षत – विक्षत लाश पड़ी थी , तो एक ओर रघु बेहोश जमीन पर गिरा पड़ा था । निकिता यह देखकर थर – थर कांपने लगी । वह जोर से चीख पड़ी – ” पापा ! वह वहशी दरिंदे ने मेरे पापा को भी मार डाला । आखिर वह क्या चाहता है ? क्यों यह मौत का खेल खेल रहा है ? रे पापी तू सामने क्यों नहीं आता ? “ वह पिता की लाश से लिपटकर रोने लगी । तभी आनंद की निगाह जमीन पर पड़े रघु की ओर गया। वह उसके करीब आया । उसकी सांसें चल रही थी । वह बेहोश था । आनंद फौरन जाकर पानी लाया और उसके चेहरे पर पानी की छींटे मारने लगा। रघु को धीरे – धीरे होश आने लगा । वह अपने सिर को पकड़कर उठा । सामने अपने मालिक की लाश देखकर वह भी चिल्ला उठा – ” वह वहशी दरिंदे ने मालिक को भी अपना शिकार बना लिया । “ वह धीरे – धीरे अपना कदम बढ़ाते हुए सुरेश प्रसाद के पैरों पर गिरकर रोने लगा ।
तभी आनंद रघु के पास आया और पूछा कि यह सब कैसे हो गया ! वह कौन था ? तुमने कुछ देखा ! “
रघु रोते हुए बोला – ” साहब ! मेरा शक सही था । वह इंसान के रूप में शैतान है । वह वहशी दरिंदा और कोई नहीं विमलेश के शरीर में प्रवेश किया एक बुरी आत्मा है । “
यह सुनकर आनंद चकित रह गया। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि आखिर रघु क्या कह रहा है ? वह रघु से पूछा – ” मैं कुछ समझा नहीं ! आखिर सच क्या है? मुझे शांति से बताओ । मैं सच जानना चाहता हूं । “
तभी निकिता बोली – ” हां , रघु सच क्या है ? आखिर यह मौत का तांडव कौन कर रहा है ! “
रघु बोला- ” मेम साहब ! मैंने आपको पहले ही कहा था कि विमलेश पर मुझे शक है । दरअसल में जिसे आप विमलेश समझ रही हैं , वह विमलेश नहीं है । विमलेश का शरीर तो जरूर है , पर आत्मा किसी और की है । विमलेश की आत्मा को कहीं कैद कर रखा है । इस खेल में केवल एक वही आत्मा नहीं है , बल्कि एक और भी है । “
निकिता यह सुनकर आश्चर्यचकित रह गयी और बोली – ” यह कैसे संभव है कि कोई बुरी आत्मा किसी के शरीर में प्रवेश कर जाय । मैं भी कुछ समझ नहीं पा रही हूं । “
रघु निकिता को समझाते हुए बोला – ” वह आत्मा आपको हासिल करना चाहता था , लेकिन जब वह आपको पाने मे ंअसफल रहा ; तो वह परिवार के लोगों को अपना शिकार बनाने लगा । वह नर पिशाच बन चुका है । उसकी अतृप्त प्यास बुझते ही वह पुन: इंसान के रूप में परिवर्तित हो जायेगा । इसीलिए वह आपको हासिल करना चाहता है । इस खेल में उसकी सहायता उस दरिंदे की मां कर रही है । वह औरत काला जादू की ज्ञाता है । जो आपके सामने आती थी । यह वही औरत है जिसके आगे मेरी सारी तंत्र विद्या क्षीण हो जाती है । “
आनंद उदास स्वर में बोला – ” रघु ! तो उसका अंत कैसे होगा ? क्या यूं ही अब बाकी बचे लोग उसके शिकार हो जाएंगे ! “
” नहीं ! उसका अंत सिर्फ निकिता मेम साहब ही कर सकती हैं । मेम साहब ही उस बुरी शक्ति का मुकाबला कर सकती हैं । मेम साहब में कोई ऐसी शक्ति है जो उसे पास आने से रोकती है । “
निकीता उत्साहित स्वर में बोली – ” चलो आज ही उस पापी का अंत कर देती हूं । “ और वे तीनों घर का कोना – कोना छान मारने लगे , लेकिन विमलेश रूपी वह दरिंदा कहीं नजर नहीं आया ।
निकिता बोली- ” रघु वह तो कहीं नजर ही नहीं आ रहा है । फिर उसका अंत कैसे होगा ! वह तो बड़ा मायवी है । पलक झपकते ही गायब हो जाता है । फिर उस विमलेश रूपी शैतान का अंत कैसे होगा ! फिर विमलेश की आत्मा को भी तो उसके कैद से आजाद कराना है । आखिर वह बुरी आत्मा है कौन ! कहां से आ गया ? “
रघु बोला – ” मेम साहब ! वह मायवी शक्तियों से परिपूर्ण है । विमलेश की आत्मा को कहां कैद कर रखा है ! यह भी पता लगाना होगा । उसकी इस मायवी दुनिया को नष्ट करना ही होगा । मुझे कुछ समय दीजिए , मैं अपनी तंत्र विद्या के द्वारा यह पता लगाने का प्रयास करता हूं । लेकिन सचमुच में वह है कौन , जो आपको हासिल करना चाहता है ! क्या कभी कोई लड़का आपके जीवन मे ंआया था , जिसे आपने ठुकरा दिया हो ! कुछ याद कीजिए मेम साहब ! “
निकिता को एकाएक शैलेश की याद आया। वह बोली – ” हां , कुछ माह पहले एक सिरफिरा युवक जरूर मेरे पीछे पड़ा था । वह मुझसे जबरदस्ती शादी करना चाहता था । लेकिन वह तो जीवित इंसान था । शादी की पहली रात जरूर मेरे बेड रूम में आया था । तभी विमलेश उसके पीछे भागा था । उसके बाद क्या हुआ मुझे मालूम नहीं ! उसके बाद से वह फिर कभी नजर नही आया । लेकिन , हां , शादी की रात से ही विमलेश का स्वभाव जरूर बदल गया था । वह मेरे करीब आने से कतराता था । “
रघु बोला – ” कहीं न कहीं उस रात में ही कुछ गड़बड़ हुआ है । कुछ तो राज जरूर है । यह पता लगाना ही होगा । कहीं उस युवक की आत्मा को ही विमलेश के शरीर में प्रवेश तो नहीं कराया गया है । कुछ तो गड़बड़ जरूर है । “
आनंद बोला – ” लेकिन यह कैसे संभव है कि कोेई जीवित इंसान की आत्मा किसी दूसरे जीवित इंसान के शरीर मे ंप्रवेश कर जाय । “
रघु बोला – ” मालिक ,तंत्र विद्या में बहुत ताकत होती है । तंत्र विद्या के द्वारा कुछ भी करना संभव है । खैर , जो भी हो इस रहस्य पर से परदा उठाकर ही रहूंगा । “
इन रहस्यों की खोज के बीच ही एक रात दोनों मां – बेटे निकिता के कमरे में प्रकट हो गये।
” उठो , निकिता उठो ! “ वह दोनों जोर से अट्टहास करते हुए बोले ।
निकिता चैंककर उठी और सामने निगाह पड़ते ही चीख उठी। उसकी यह भयावह चीख दूर – दूर तक गूंज गयी । रघु और आनंद भागे – भागे निकिता के कमरे में आये। सामने दोनों को खड़े देखकर उनका रोम – रोम कांप गया ।
तभी वह नरपिशाच आनंद को अपने कब्जे में ले लिया । वह क्रूर – सी स्त्री बोली – ” निकिता ! तुम मेरे बेटे की अतृप्त प्यास को बुझा दो । वरना आज तुम्हारा भाई मारा जाएगा । चलो तुम अपना मंगल सूत्र गले से उतारो । अन्यथा आनंद मौत के मुंह में चला जाएगा । “
निकिता बदहवास – सी बोली – ” आखिर तुम कौन है , जो मेरे पूरे परिवार को मार डाला । विमलेश ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था , जो उसकी आत्मा को अपने कब्जे में कर न जाने किस बुरी आत्मा को उसके शरीर में प्रवेश करा दी । मेरा पति आज भी जिंदा है । कोई सुहागिन स्त्री अपने पति के जीवित रहते अपना मंगल सूत्र कैसे उतार सकती है ! ये मेरे सुहाग की निशानी है और मैं इसे उतार नहीं सकती । “
वह क्रूर -सी औरत जोर से अट्टहास करते हुए बोली- ” तुम सच जानना चाहती हो ! सच क्या है ? मैं सच बताऊंगी । लेकिन अभी सच जानने का सही समय नहीं है । समय आने पर सब जान जाओगी तुम । बस ! अभी इतना ही जान लो कि तुम्हारे कारण ही मेरे बेटे की मौत हुई है और उसकी अतृप्त प्यास बुझाकर तुम ही उसे पुन: इंसान के रूप में परिवर्तित कर सकती हो । जब तक उसकी अतृप्त प्यास नहीं बुझेगी । वह नर पिशाच बनकर भटकता रहेगा । वह तुम्हें पाते ही पुन: इंसान के रूप में परिवर्तित हो जाएगा । विमलेश को अब तुम अब भूल जाओ । अब उसकी आत्मा कभी अपने शरीर में वापस नहीं लौट पाएगी । अब समय आ गया है कि तुम अपने गले से मंगल सूत्र उतारो और मेरे बेटे की अतृप्त प्यास बुझाकर , उसे इंसान का रूप पुन: धारण करने दो । देर मत करो , शीघ्र अपने गले से मंगल सूत्र उतारो , वरना तुम्हारा भाई मेरे बेटे का शिकार बन हो जाएगा । “
निकिता रोते हुए बोली – ” तुम ऐसा नहीं कर सकती । तुम्हारे इसी जुनून ने मेरे पूरे परिवार को खत्म कर दिया । अब मेरे एकमा़त्र बचे भाई को भी अपना शिकार बनाना चाहती हो । तुम भी तो एक स्त्री हो । फिर तुमने कैसे सोच लिया कि एक सुहागिन स्त्री अपने पति के जीवित रहते अपना मंगल सूत्र उतार देगी । मुझ पर रहम खाओ । मेरे भाई को छोड़ दो । मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूं । “
” अब तुम्हारे पति की आत्मा कभी अपने शरीर में वापस नहीं लौट पायेगी । वह मेरे कैद से कभी वापस नहीं लौटेगा । चलो जल्दी से उतारो अपने गले से मंगल सूत्र । नही ंतो तुम्हारा भाई इस दुनिया से विदा हो जाएगा । “
निकिता आनंद के जान को बचाने के लिए अपना मंगल सूत्र उतारने को तैयार हो गयी । तभी आनंद चीखकर बोला – ” नहीं , निकिता नहीं ! इस पापिन की बातों में मत आना । तुम अपना मंगल सूत्र मत उतारो । इन पापियों के अंत का समय आ गया है । तुम मेरी चिंता मत करो । “
तभी रघु बोला – ” मेम साहब ! अब समय आ गया है । इन पापियों के अंत का । इन पापियों का अंत आपके ही हाथों होगा । आप घबराइये नहीं । आपका मंगल सूत्र ही वह शक्ति है जो इनका अंत करने में सहायक होगा । आप आगे बढ़इये और उस पापी का अपने हाथों से अंत कर दीजिए । “
निकिता अजीब भंवर में फंस गयी । एक तरफ भाई की जान खतरे में थी , तो दूसरी ओर अपने सुहाग की निशानी । वह बिस्तर से उतर उस दरिंदे की ओर बढ़ी ।
तभी वह स्त्री चिल्लायी – ” रूक जाओ , निकिता ! वहीं रूक जाओ । नही ंतो तुम्हारा भाई मारा जाएगा । “ और वह रघु की ओर देखती हुई बोली – ” तू तो उस दिन बच गया था , किंतु आज नहीं बच पायेगा । “ और वह रघु पर तंत्र विद्या के द्वारा भयानक वार की । उसके वार से बचते – बचते अचानक उसका सिर दीवार से टकरा गया और वहीं बेहोश होकर गिर पड़ा ।
इधर निकिता अपना कदम आगे बढ़ाते जा रही थी । उस स्त्री के बार – बार धमकाने के बावजूद उसके कदम रूक नहीं रहे थे । उसने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि आज इस पापी का अंत करके ही रहूंगी । तभी उसका सामना उस स्त्री से हो गया। निकिता उसे एक जोरदार धक्का दी । वह दूर जा गिरी । वह नर पिशाच से बोली – ” तुम मेरे भाई को छोड़ दो , वरना मैं आज तुम्हारा अंत कर दूंगी । “
तभी औरत चिल्लायी – ” बेटा , फौरन उसे मार डाल , वरना वह तुझे जला डालेगी । “
निकिता जैसे ही अपना कदम उस नरपिशाच की ओर बढ़ाई । वह नर पिशाच अपने नुकीले दांत को आनंद के शरीर में गड़ा दिया । एक भयावह चीख के साथ आनंद शांत हो गया । निकिता उस नर पिशाच को पकड़ने के लिए तेेजी से दौड़ी । लेकिन वह नर पिशाच और उसकी मां हवा में अदृश्य हो गये । निकिता अपने भाई के मृत शरीर को थामे जमीन पर बैठ गयी और बदहवास – सी रोते हुए बोली – ” सब कुछ खत्म कर दिया उस पापी ने । रे पापी तू कहां है ! सामने क्यों नहीं आता ? तूने नारी को अबला समझा रखा है । यही नारी जब सबला बन जाती है , तो दुर्गा , चण्डी का रूप धारण कर पापियों का नाश कर देती है । तेरी इस पाप की नगरी को एक नारी ही जलाकर खाक कर देगी । तू भागकर कहां जाएगा । अब तेरा अंत समय आ गया है । “ वह अपने आंसू को पोंछती हुए एक झटके से खड़ी हो गयी , पापियों के नाश करने के लिए ।
धीरे – धीरे रघु को भी होश आने लगा । रघु अपनी आंखें दिया , सामने आनंद की लाश पड़ी थी । वह उठकर धीरे – धीरे आनंद के लाश की ओर बढ़ा । तभी निकिता निर्भीक स्वर में बोली – ” रघु ! अब उन पापियों के अंत का समय आ गया है । मुझे तुम्हारी सहायता चाहिए । बोलो , तुम मेरा साथ दोगे न ! “
” हां , हां , मैं आपके कदम – कदम पर साथ रहूंगा । “ रघु बोला ।
” उन पापियों की नगरी कहां है ? पता लगाओ , रघु । उस पाप नगरी को ही जला डालूंगी । बताओ रघु , बताओ कहां है उन पापियों की नगरी मुझे वहां ले चलो । “
रघु आशांवित स्वर मे ंबोला – ” मैं आपको अवश्य उन पापियों की नगरी में ले चलूंगा , लेकिन आज नहीं । अमावस्या की अर्ध रात्रि में जब वे सिद्धियां कर रहे होंगे । उसी समय उनके अंत का उचित समय होगा । “
अमावस्या की काली रात में वे दोनों उन पापियों की खोज में निकल पड़े। वे दोनों वीरान और घनघोर जंगल में प्रवेश कर गये । सामने दूर एक खंडहरनुमा मकान नजर आया । जहां से प्रकाश की मद्धिम रोशनी आ रही थी । वे दोनों उस ओर बढ़े। खंडहरनुमा वीरान मकान के पास पहुंचते ही रघु बोला – ” मेम साहब ! यहां बहुत सावधानी आगे बढ़ना होगा । यहां पग – पग पर खतरा है । संभलकर चलियेगा । “
निकिता बोली – ” ठीक है रघु ! तुम जैसा कहोगे , मैं वैसा ही करूंगी । “
वे दोनों घने अंधेरे को चीरते हुए टार्च की रोशनी में आगे बढ़ते जा रहे थे। वे भीतर घुसते ही एक अज्ञात भय से कांप गये । वह खंडहरनुमा मकान बहुत विशाल था । न जाने कितने वीरान कमरे थे । जहां चमगादड़ों और विशालकाय मकड़ी के जालों का अंबार लगा हुआ था । वे हर कमरे में घुसकर बड़े सावधानी से तलाशी ले रहे थे । लेकिन कहीं कुछ नजर नहीं आ रहा था । उन्हें लगने लगा कि कहीं वे गलत स्थान पर तो नहीं आ गये । वे अभी वहां से वापस लौटने ही वाले थे कि एक कमरे में किसी के घुसने की पदचाप सुने । वे दोनों सावधान हो गये । वे उस ओर बढ़ने लगे । वे धीमे कदमों से उस कमरे में प्रवेश कर गये । कमरे में घना अंधकार छाया हुआ था । रघु टार्च जलाकर कमरे का निरीक्षण करने लगा । पर यह क्या ? पूरा कमरा नरकंकालों से भरा पड़ा था। निकीता यह देखकर एकदम से कांप उठी । वह कांपते स्वर में धीरे से बोली – ” रघु ! यह तो पूरा कमरा नर कंकालों से भरा पड़ा है । ये किसके होंगे ! “
रघु बोला – ” मेम साहब ! ये सारे नर कंकाल उन इंसानों के हैं , जिनके रक्त पीकर वह नर पिशाच अपने खून की प्यास बुझाता होगा । आगे चलिये और भी बहुत कुछ देखने को मिलेगा । ”
वे दोनों वहां से आगे बढ़े। सामने एक बड़ा कमरे नजर आया , जिसमें से दीये की मद्धिम प्रकाश आ रही थी । वे उस कमरे में प्रवेश कर गये । सामने निगाह पड़ते ही निकीता के होशो – हवास गुम हो गये । सामने उसी सिरफिरे प्रेमी शैलेश की लाश पड़ी थी । निकीता अंगुली से इशारा करते हुए बोली – ” रघु ! ये वही सिरफिरे युवक की लाश है , जो मुझे हासिल करने के लिए मेरे पीछे साये की तरह मंडराया करता था। कहीं इसकी आत्मा ने तो विमलेश के शरीर में प्रवेश कर मेरे पूरे परिवार को अपनी हवस का शिकार बना लिया । “
रघु ने कहा – ” आपने ठीक कहा , मेम साहब ! इसकी आत्मा विमलेश के शरीर में प्रवेश कर अपनी अतृप्त प्यास को बुझा रहा था । “
” अब इसका अंत कैसे होगा , रघु । “ निकीता संशय के स्वर में बोली ।
” इसके शरीर को जलाना होगा । तभी वह नर पिशाच पुन: इंसानी दुनिया में वापस नहीं लौट पायेगा । लेकिन पहले विमलेश के शरीर से उसकी आत्मा को बाहर निकालना होगा और विमलेश की आत्मा को उसके कैद से मुक्त कराना होगा । तभी विमलेश की आत्मा अपने शरीर में पुन: प्रवेश कर पायेगी । मैं इसकी लाश को उठकर ले चलता हूूं । इसको जलाना ही होगा , तभी इसकी आत्मा इंसानी दुनिया से दूर हो जाएगी । “ और वह विमलेश की लाश को अपने कंधे पर उठा लिया ।
और वे दोनों हर कमरे की तलाशी लेते हुए आगे बढ़ रहे थे कि एक उन्हें सुरंग दिखायी पड़ा। वे दोनों उस सुरंग में प्रवेश कर गये । सुरंग से बाहर निकलते ही एक बहुत बड़ा आंगन नजर आया । जहां अनेक मूर्तियां रखी थी । एक बड़ा – सा हवन कुंड था । हवन कुंड के पास ही वह क्रूर – सी औरत तांत्रिक साधना में लीन थी।
वे दोनों धीरे – धीरे उस आंगन में प्रवेश कर गये। तभी उस नर पिशाच की निगाह रघु पर पड़ी । वह एक झटके में उसके गर्दन को धर लिया और बोला – ” तू इस मृत शरीर को कहां ले जा रहा है । छोड़ मेरे इस मृत शरीर को वरना तू भी मेरा शिकार बन जाएगा । “
रघु उसे समझाते हुए बोला – ” तूने बहुत खेल खेल लिया । अब तेरे शरीर को जलाकर तुम्हें इस नर पिशाच की दुनिया से आजाद कर दूंगा । तू वापस फिर कभी इंसानी दुनिया में नहीं आयेगा । “
” क्या ? तू मुझे इस दुनिया से बाहर करेगा । मैं अभी तुम्हें इस दुनिया से विदा कर देता हूं । “ और जैसे ही वह नर पिशाच उसे अपना शिकार बनाने लगा कि निकिता एक जोरदार धक्का दी । उसके स्पर्श मात्र से ही उसका शरीर अग्नि की ज्वाला में जलने लगा और वह दूर जा गिरा । निकिता भी फौरन दौड़कर उसके सीने पर अपना पैर रखकर छाती को कुचलने लगी।
वह जलन की पीड़ा से तड़पने लगा। वह चीखने और चिल्लाने लगा – ” निकिता ! मुझे छोड़ दो । मेरा शरीर भीषण अग्नि की ज्वाला में धधक रहा है । तुम जो कहोगी मैं करने को तैयार हूं । मैं पहले से ही अतृप्त आत्मा बनकर तड़प रहा हूं । मुझ पर रहम खाओ । “
निकिता बोली – ” तेरे कारण ही मेरा पूरा परिवार मौत के मुंह में चला गया । तूने अपनी हवस की भूख मिटाने के लिए न जाने कितने निर्दोष लोगों की हत्या कर उनका खून पीया है । उनका हिसाब तो तुझे ही चुकाना होगा । बता विमलेश की आत्मा को कहां कैद कर रखा है । वरना मैं तूझे इसी अग्नि में जला डालूंगी । बता पापी , बता कहां कैद है विमलेश की आत्मा । “
वह गिड़गिड़ाते हुए बोला – ” मैं नहीं जानता कि विमलेश की आत्मा कहां कैद है ! मुझ पर रहम खाओ । “
” तुमने किस पर रहम खाया था , जो मैं तुम पर रहम करूं ? तू यूं ही भटकता रहेगा , तेरी आत्मा को कभी शांति नहीं मिलेगी । मेरे विमलेश के शरीर से तू बाहर निकल , वरना मैं अभी इस मृत शरीर को अग्नि की हवन कुंड डालती हूं । “
वह बोला – ” मैं अभी इसके शरीर को आजाद करता हूं । पहले तुम अपने पांव को इस शरीर से हटाओ । “
निकिता एक झटके से अपना पैर उसके छाती से हटा ली और एक भयंकर चीख के साथ उसकी आत्मा विमलेश के शरीर से बाहर निकल गयी ।
उसकी भयानक चीख सुनकर उसकी मां की तांत्रिक साधना में विघ्न उत्पन्न हो गया। उसकी साधना भंग हो गयी । उसकी अशरीरी आत्मा अपनी मां के सामने प्रकट हुई । वह बोला – ” आज तो वह शरीर भी मुझसे छीन गया और मेरे मृत शरीर को वह जलाने जा रही है । क्या मां ? मैं यूं ही अतृप्त आत्मा बनकर सदियों तक भटकता रहूंगा । मेरी अतृप्त प्यास कभी बुझ नहीं पाएगी । मैं इंसानी दुनिया में कभी वापस नहीं आ पाऊंगा ? बताओ , मां बताओ । “
वह औरत उन दोनों को अजीब निगाहों से घूरते हुए अपने बेटे से बोली- ” जब तक तेरी मां जीवित है , तुझे सदियों तक भटकने नहीं दूंगी । तेरी अतृप्त प्यास को अवश्य बुझाऊंगी । तू चिंता न कर । आज ही तेरी अतृप्त प्यास बुझेगी । “
और वह औरत उन दोनों की ओर देखती हुए बोली – ” आज तुम दोनों की मौत यहां तक खींच लायी है । आज तुम दोनों का अंत करके अपने बेटे की अतृप्त आत्मा को मुक्ति प्रदान करूंगी । “
निकिता मानो दुर्गा – चण्डी का रूप धारण कर ली और बोली – ” तू मुझे अबला मत समझ , जब कोई स्त्री सबला बन जाती है , तो वह दुर्गा – चण्डी का रूप धारण कर पापियों का सर्वनाश कर डालती है । रे पापिन ! एक मां होकर भी अपने बेटे को सही रास्ते न दिखाकर उसे गलत रास्ते पर ढकेला दिया । तू कैसी मां है , जो अपने बेटे को इंसान बनाने के बजाय शैतान बना दिया । हर पापी का एक न एक दिन अंत होता है । आज मैं तेरी इस पाप की नगरी को जलाकर भस्म कर दूंगी । आज इस खेल का अंत करके ही रहूंगी । “
तभी रघु बोला – ” मेम साहब ! इस पापी के मृत शरीर को उस हवन कुंड में डालकर उसका अंत कर दीजिए । उसकी अतृप्त आत्मा सदियों तक यूं ही भटकती रहेगी । “
यह सुनकर वह औरत क्रोध से कांप उठी – ” तू मेरे बेटे का अंत करेगी । मैं ही तेरा अंत कर दूंगी । तेरी शक्तियों का मेरे ऊपर कोई प्रभाव नहीं होगा । “ और वह तंत्र विद्या के द्वारा उन दोनों पर हमला कर दी। लेकिन रघु उसकी हर तंत्र शक्ति को विफल कर रहा था । तभी भयानक तंत्र विद्या का प्रयोग कर उन दोनों पर वार की। एक झटके से रघु भैरव की मूर्ति के आगे जा गिरा । वह औरत निकिता के ऊपर जाल फांस फेंकी । जो उसके पैरो ं को जकड़ लिया। वह भागने का प्रयास करनी लगी और एक मूर्ति से टकरा गयी। वह मूर्ति जमीन पर गिरते ही टूट गयी । मूर्ति के टूटते ही उससे एक आत्मा निकली , जो विमलेश की थी , जिसे उस औरत ने उसमें कैद कर दिया था । वह आत्मा पुन: उस शरीर प्रवेश कर गयी । विमलेश उठकर बैठ गया। मूर्ति से टकराने के क्रम में निकीता के गले से उसका मंगल सूत्र खुलकर जमीन पर गिर गया ।
वह औरत जोर से अट्टहास करते हुए अपने बेटे से बोली – ” जा अब अपनी अतृप्त प्यास को बुझाओ । तुम्हारे मुक्ति का मार्ग खुल गया है । वह मंगल सूत्र जो तुम्हारे मार्ग का बाधक था । अब उसके गले में नहीं है । “
उसकी अशरीरी आत्मा अपनी अतृप्त प्यास को बुझाने के लिए आगे बढ़ी , तभी रघु जोर से चिल्लाया – ” विमलेश बाबू ! जमीन पर गिरे मंगल सूत्र को उठाकर निकिता के गले में डाल दो । नही ंतो वह पापी अपने बुरे मनसूबे कामयाब हो जाएगा । जल्दी करो विमलेश ! जल्दी करो । “
और विमलेश फौरन जमीन पर गिरे मंगल सूत्र को उठाया और निकिता के गले में डाल दिया। निकिता विमलेश की बांहों से लिपट गयी । वह बोली – ” विमलेश , तुम कहां चले गये थे ? तुम्हारे शरीर का लाभ उठाकर इस पापी ने मेरे पूरे परिवार को मार डाला । अब मुझे छोड़कर मत जाना । “
विमलेश उसके बालों को सहलाते हुए बोला – ” नहीं , निकीता अब तुम्हें छोड़कर मैं कहीं नहीं जाऊंगा । “ और वह दोनों एक – दूसरे की बांहों में समा गये ।
उधर उसकी यह योजना भी विफल हो गयी । उसकी अशरीरी वही ठिठक गयी ।
यह देखकर वह औरत क्रोध से तिलमिला गयी और पास पड़ कटार को उठा ली। वह तेज कदमों से विमलेश और निकिता को मारने के लिए दौड़ी। तभी रघु भैरव की मूर्ति के आगे पड़े त्रिशुल को उठा लिया और तेजी से उस तांत्रिक औरत की ओर फेंका। त्रिशुल उस औरत के शरीर को वेधते हुए निकल गया । वह वही कटार लिए धड़ाम से गिर गयी ।
उस औरत के जमीन पर गिरते ही निकिता और विमलेश का ध्यान भंग हुआ और वे उस ओर देखने लगे और सोचने लगे कि यदि आज रघु न होता तो उन दोनों की मौत निश्चित थी । वे दोनो अपलक नेत्रों से रघु को देखने लगे।
तभी रघु निकिता से बोला – ” मेम साहब ! अभी एक पापी का अंत बचा हुआ है। आइए अब समय आ गया है , उस पापी के अंत का । “
वे तीनों उस शैलेश की लाश के पास आये। विमलेश शैलेश की लाश को देखते हुए बोला – ” शादी की पहली रात जब मैं इसका पीछा करते यहां तक आया था , तो यह मुझे एक बड़ा — सा पत्थर उठाकर मारना चाहता था , लेकिन वह स्वयं उस पत्थर का शिकार हो गया और उसकी मौत हो गयी । वह पत्थर मुझे भी घायल कर दिया था । इस दौरान मैं बेहोश हो गया था । जब मुझे होश आया , तो इसकी अशरीरी आत्मा मेरे शरीर पर कब्जा करने को बेताब थी । मेरी आत्मा इस अशरीरी आत्मा को प्रवेश करने नहीं दे रही थी , लेकिन उसी औरत ने तंत्र विद्या के द्वारा मेरी आत्मा को मेरे शरीर से बाहर निकाल लिया था । उसके बाद किया हुआ मुझे कुछ याद नहीं । “
रघु बोला – ” यह अशरीरी आत्मा ही आपके शरीर का लाभ उठाकर न जाने कितने लोगों को अपनी हवस का शिकार बनाया और उनके खून से अपनी प्यास बुझाता रहा । अब इन दोनों के शरीर को इस हवन कुंड में जला डालिये , मेम साहब ! इसके पाप की नगरी को सर्वनाश कर दीजिए । “
निकिता शैलेश की लाश को और रघु अंतिम सांसें गिन रही उस तांत्रिक औरत की लाश को उठाये और हवन कुंड की ओर बढ़ें ।
तभी शैलेश की अशरीरी आत्मा गिड़गिड़ाते हुए बोली – ” रूक जाओ निकिता ! मुझे उस हवन कुंड में मत डालो । यदि उस हवन कुंड डाला दिया , तो मेरी आत्मा सदियों तक यूं ही अतृप्त आत्मा बनकर भटकती रहेगी । मेरी आत्मा को कभी शांति नहीं मिलेगी । हां , मैंने अपने जूनून को पूरा करने के लिए तुम्हारे पूरे परिवार को अपनी हवस का शिकार बना लिया । मैं नर पिशाच बन चुका था । न जाने कितने का खून पीया , लेकिन मेरी खून की प्यास मिटती ही नहीं थी । मैं तुम्हें हासिल करने के लिए यह सब किया । फिर भी तुम्हें न पा सका । अब तो मुझ पर रहम खाओ । मुझे इसकी इतनी बड़ी सजा मत दो । सामने गंगा जल रखा है । उस गंगा जल को हम मां – बेटे के शरीर पर डालकर हमें मुक्ति प्रदान करो । “
तभी उसकी मां बोली – ” हां , निकिता ! मुझे भी अपनी गलती का अहसास हो गया है । मैं तुम्हारी गुनाहगार हूं । मैं अपने बेटे के प्यार में अंधा हो गयी थी । तूने सही कहा कि यदि मैं गलत रास्ते पर जा रहे अपने बेटे को सही रास्ता दिखाती , तो आज यह यूं ही अतृप्त आत्मा बनकर न भटकता और न नर पिशाच बनता । सारी गलती मेरी है । तुम मेरे बेटे पर तरस खाओ । मुझे हवन कुंड में डाल दो , लेकिन मेरे बेटे के शरीर पर गंगा जल डालकर उसे मुक्ति प्रदान करो । उसकी गलती की इतनी बड़ी सजा मत दो । “
निकिता आंसुओं के समंदर में गोता लगाते हुए बोली – ” तुम दोनों के जूनून ने मेरे पूरे परिवार को बर्बाद कर दिया । मेरा पूरा परिवार तुुम्हारे बेटे के जूनून में मारा गया । उस समय भी मैं रहम की भीख मांग रही थी । लेकिन तुम लोगों ने क्या रहम दिखायी , जो आज रहम की भीख मांग रही हो ? मैंने कहा था न कि हर पापी का एक न एक दिन अंत होता ही है । आज तेरी इस पाप की नगरी को जलाकर खाक कर दूंगी , ताकि फिर कभी कोई सिरफिरा पागल ऐसा कुकृत्य करने का साहस न सके । “
और निकिता कभी गंगा जल को देखती , तो कभी हवन कुंड की उठती भीषण ज्वाला को । फिर वह चीखती हुई बोली – ” अब इन पापियों को इनके किये कि सजा मिलनी ही चाहिए । “ इतना कहने के साथ ही निकिता एक झटके से शैलेश की लाश को हवन कुंड में डाल दी । उधर रघु भी उस तांत्रिक औरत को उस अग्नि कुंड के हवाले कर दिया । एक जोर का धुआं उठा और पलक झपकते ही उन पापियों का तिलिस्म समाप्त हो गया । वह खंडहर जो उन पापियों की नगरी थी अस्तित्व ही समाप्त हो गया। वे तीनों अपने आपको एक खुले स्थान पर खड़ा पाया।
निकिता विमलेश की बांहों में सिमटते हुए बोली – ” उस पापी ने अपने जूनून को पूरा करने के लिए मेरे पूरे परिवार को अपना शिकार बनाकर , तुम्हें भी मुझसे अलग कर दिया था । अब हमें कोई अलग नहीं कर सकता । “
और वे तीनों उस घने अंधकार को चीरते हुए नये उजाले की ओर जा रहे थे ।
– पुष्पेश कुमार पुष्प
बाढ़ ( बिहार )

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।