सात बरस के सांवरे,लीलाधारी श्याम।
महाप्रभू के लाड़ले, हिय कीजे विश्राम।।
हे जग नायक कुंज बिहारी।
मेटो मन की पीढ़ा सारी।।1
कोंख देवकी जनम तुम्हारा।
मातु यशोदा राज दुलारा।।2
संवत चौदह छाछठ आया।
श्रावण कृष्णा तीज सुहाया।।3
रविवासर की प्रातः आई।
प्रभु गोवर्धन प्रकटे भाई।।4
पहले वाम भुजा दिखलाई।
ग्वाला देख बड़ा हरषाई।।5
बहुत दिनों तक दूध चढ़ाया।
श्रीनाथ को खूब मनाया।।6
फिर मुखारबिंद बाहर आया।
ब्रजवासिन ने दर्शन पाया।।7
श्रावण शुक्ला पांचम आई।
पूर्ण स्वरूप दिये दिखाई।।8
ब्रज के ग्वाला सब हरषाई।।
बोले जय जय बाल कंहाई।।9
सन चौदह सौ बाणू आया।
महप्रभु ब्रज श्रीनाथ पठाया।।10
पूरण मल को शिष्य बनाया।
दान सेठ से खूब कराया।।11
सिरी नाथ के सेवा धारी।
सन पंद्रह में मंदिर भारी।।12
फिर बिट्ठल अभियान चलाया।
प्रेम तत्व विस्तार कराया।।13
आठ भक्त कवियों को जोड़ा।
अष्टछाप ब्रज भाषा मोड़ा।।14
गोवर्धन मेवाड़ लिवाई।
नाथ द्वार में दिये बिठाई।।15
बनी हवेली जग अलबेली।
दर्शन झा़की दिखे अकेली।।16
आठो यामा आठो पूजा।
ठाकुर सेवा धरम न दूजा।।17
राज भोग सिंगार सजाई।
सेवा तीनों है ठकुराई।।18
दाढ़ी मोती हीरा सोहे।
मधु मुस्कानी मूरति मोहे।।19
हे गोपाला हे नंदलाला।
प्रेम भाव को तुमने पाला।।20
बेसन मोदक खाओ लाला।
सुंदर मूरति उर में माला।।21
नाम तुम्हारे पार उतारे।
आठों यामा भगत पुकारे।।22
कृष्ण वसुदेव पुण्य सनातन।
लीला मानुष देवकीनंदन।।23
योगीपति शकटासुर भंजन।
पुण्य श्लोका हरी निरंजन।।24
यादवेन्द्र इलापति योगी।
हे वनमाली रक्षक गोपी।।25
माखन मिश्री मोद खवैया।
लाल जसोदा नाच नचैया।।26
जगतगुरु विष्णु अवतारी।
जनजन के तुम पीड़ाहारी।27
आदि अनंता अमर अभेदा
जगन्नाथ हरि रूप अनेका।28
परमपुरुष तुम द्वारक धीसा
दामोदर गोविंद जगदीशा।29
कोटि सूर्य सम प्रभा अनंता।
यशोद वत्सल श्री भगवंता।।30
मथुरानाथा यदुपति ग्वाला।
रूप चतुर्भुज दीनदयाला।।31
मुष्टिक चाणुर मान गिराये।
मामा कंसा स्वर्ग पठाये।।32
गज को भी तो आप बचाया।
द्रोपदि का भी चीर बड़ाया।।33
करमा के घर खिचड़ी खाते।
विदुराणी घर भोग लगाते।।34
छोड़ मिठाई दुर्योधन की।
पीड़ा हरते सब दुखियन की।।35
उत्तर कृष्ण गुपाल कहाते।
सिरी नाथ ठाकुर बन जाते।।36
महाराष्ट्र बिट्ठल कहलाते।
जगन्नाथ उत्कल बन आते।।37
बहिन सुभदरा हलधर भाई।
जगन्नाथ रथ लगे सुहाई।।38
बंगाला में जय गोपाला।।
दक्षिण वेंकटेश गोविन्दा।।39
धीसद्वारका कह गुजराता।
पूर्वोत्तर में कृष्ण कहाता।।40
तीनों पूजा कीजिए,दरश परस अस्नान।
एकादश का व्रत करें, सिरी नाथ भगवान।।
डॉ दशरथ मसानिया
आगर मालवा म प्र