आखिर सूरज हार गया

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‘‘भैया………आज……….कुल्फी बच जायेगीं तो मुझे दोगे क्या…….बहुत भूख लगी है…………ये देखो………..देखो न भैया’’ सूरज ने आशा भरी निगाहों से अपने बड़े भाई को देखा था । बड़ा भाई रमेश मौन था । वह एक हाथ में कुल्फी का डिब्बा पकड़े थे और एक हाथ से अपने भाई की उंगली पकड़े हुए चल रहा था । गली-गली मोहल्ला मई की भर दुपहरी में ‘‘कुल्फी ले लो’’ की आवाज लगा रहा था । भर दुपहरी में ज्यादतर घरों के दरवाजे बंद होते हैं । सारा परिवार कूलर की ठंडी हवा में टी.व्ही. देखते हुए समय गुजारता है । रमेश और सूरज दोनो भर दुपहरी में ऐसे ही नंगे पावं घूमते हुए कुल्फी बेचते हैं । आज भी उसकी कुल्फी कम ही बिकी थीं । तेज गरमी के कारण कुल्फी पानी हुई जा रही थीं । रंगीन पानी कभी कभार डिब्बे से झलक पड़ता था जिसे सूरज अपनी नन्ही हथेलियों में लेकर चाट लेता था । उसका गला सूख चुका था उसे पानी पीना था होटल वाले ने डांट कर भगा दिया था, वह कुल्फी की इन नन्ही बूंदों से अपनी प्यास मिटा रहा था । रमेश जानता था कि आज सुबह से न तो उसने और न ही सूरज ने कुछ खाया है । कल कुल्फी कम बिकी थीं कम पैसे आये थे इस कारण आज जब उसने कारखाने से कुल्फी खरीदी तो सारे पैसे खर्च हो गये । कल भी दोनो भाई कुल्फी का पानी पीकर सो गये थे, उसने सोच लिया था कि थोड़े से पैसे भी आ गए तो वह सूरज को तो कुछ खिला ही देगा ।
रमेश बड़ा भाई जरूर था पर उसकी उम्र भी केवल दस साल ही थी और सूरज की उम्र सात साल । कुछ महिने पहिले ही उसके माता-पिता का एक एक्सीडेन्ट में निधन हो गया था । परिवार में दोनों भाई ही बचे थे । मकान तो था पर जमा पूंजी कुछ नहीं थी । रमेश की उम्र समझदार होने की नहीं थी पर वक्त की मार ने उसे समझदार बना दिया था । वह समझ गया था कि सूरज की जिम्मेदारी उसकी ही है । वह सूरज को बहुत प्यार करता था ‘‘माॅ ये सूरज मेरा प्यारा भाई है……है…न माॅ’’ । सूरज के पैदा होते ही उसने माॅ को बता दिया था । वह पालने में पड़े सूरज को बाटल से दूध पिलाता और जब वह नन्हे-नन्हे कदमों से चलने लगा तो उसकी उंगली पकड़ कर घुमाता ‘‘माॅ देखो सूरज को भूख लगी है वह रो रहा है’’ । उसे सूरज का रोना दुःख पहुंचाता था । सूरज जब और बड़ा हुआ तो स्कूल ले जाने क जिम्मेदारी उसने अपने ऊपर ले ली थी । दोनों की उम्र में ज्यादा अंतर नहीं था । रमेश भी छोटा ही था पर बड़ा था इसलिए उसे अपने बड़े होने का अहसास हो जाता था । वह उंगली पकड़ कर सूरज को स्कूल ले जाता और वापिस भी ले आता । उसका होमवर्क भी कराता और फिर अपना करता । वह खेलने जाता तो सूरज को साथ लेकर ही जाता । सूरज उसकी दिनचर्या का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया था । ,
माता पिता की अचानक मौत ने रमेश के उपर सूरज की सम्पूर्ण जिम्मेदारी डाल दी थी । कुछ दिनों तक रमेश समझ ही नहीं पाया कि वह क्या करे । दिन भर सूरज को गोदी में लेकर पड़ा रहता । पड़ोस के लोग खाना दे जाते तो खा लेता नहीं तो दोनों भाई भूखे ही सो जाते । फिर एक दिन उसने घर के बाहर लगे बिही के पेड़ से बिही लेकर बेचना शुरू कर दीं । वह जान गया था कि उसे पैसे कमाने पड़ेगंें तभी वह दो जून की रोटी खा पायेगा । उसे अपने से ज्यादा चिंता अपने भाई की रहती थी । गरमी का मौसम आते ही उसने कुल्फी बेचना प्रारंभ कर दिया था । पहिले तो उसकी सारी कुल्फी बिक जाती थी । इन पैसों से उसने अपने भाई के लिए एक शर्ट भी खरीद दी थी और पैरों के लिए चप्पल । उसने अपने लिए पिताजी की पुरानी चप्पल ढूंढ़ ली थी । वह दिन भर अपने भाई की उंगली पकड कर कुल्फी बेचता रहता । शाम को होटल से दो रोटी खरीद लाता देानों भाई मिल कर खा लेते । दिन भर का थका शरीर दरी बिछे बिछौने पर गिरते ही बेहाशी की सी हालत में हो जाता ।
व्यापार हमेशा एक सा नहीं चलता । कभी कुल्फी सारी बिक जाती तो कभी बहुत सारी बची रह जाती । जो बच जाती उनका नुकसान उसे हो जाता । रमेश और सूरज छोटे थे इस कारण बच्चों में उनके लेकर कौतुहल बना रहता था । दोपहर में दोनो भाई स्कूल के सामने खड़े हो जाते सूरज स्कूल की ललचाई निगाहों से देखता रहता था और रमेष बच्चों को आवाज लगा लगाकर बुलाता था । बच्चे कुल्फी खरीदते थे । उसका मन होता कि कुल्फी का डिब्बा रखकर वह भी पढ़ने बैठ जाए पर उसके सामने सूरज का उदास चेहरा आ जाता । वह नहीं पढ़ पा रहा है तो कम से कम सूरज को पढ़ा दे पर उसके पास इतने पैसे नहीं थे वह मजबूर था ।
रमेश के माथे पर चिंता की लकीरें थीं । आज भी उसकी कुल्फी कम बिकी थीं । उसे रह रह कर लग रहा था कि सूरज को बहुत जोरों से भूख लगी होगी ।
‘‘भैया बहुत जोरों से प्यास लगी है……………’’ बहुत असहनीय हो गया था तब सूरज ने रमेश से बोला था । सूरज भी जानाता था कि रमेश उसकी बेहद चिंता करता है इस कारण से वह भी जब तक बहुत जरूरत न हो तब तक कुछ बोलता नहीं था । प्यास तो उसे बहुत देर से लगी थी उसने एक होटल पर पानी मांगा भी था पर होटल वाले ने डसे डांट कर भगा दिया था । वह कुल्फी के डिब्बे से कुल्फी के पिघलने के कारण बह रहे पानी को पीकर अपनी प्यास बुझाता रहा था पर तेज धूप और लगातार पैदल चलते रहने के कारण उसकी प्यास बुझ ही नहीं रही थी । वैसे तो रमेश घर से पानी की बोतल लेकर चलता था आज भी लेकर आया था पर भूख और तेज गर्मी के कारण बार-बार पानी पीते रहने से उस बोतल का पानी कभी का खत्म हो चुका था । रमेश भी गरमी से परेशान था । वे सुबह से यूं ही चल रहे थे । उसका मन था कि कहीं थोड़ी देर के लिए बैठ जाएं पर उसे भय था कि इतनी गर्मी में कहीं सारी की सारी कुल्फी पिघल न जाए इस कारण वह कहीं रूक नहीं रहा था । सूरज को प्यास लगी है रमेश बैचेन हो गया था । वह जानता था कि किसी होटल से पानी उसे नहीं मिलेगा । उसने चारों ओर निगाह दौड़ाई कहीं कोई नल मिल जाए तो वह बोतल भर कर ले आए पर नल कहीं नहीं था । उसने असहाय भाव से सूरज को देखा । सूरज का चेहरा निश्चेत सा लग रहा था । उसने दौड़कर सामने वाले घर की घंटी बजाई थी
‘‘माॅ जी पानी चाहिये था……………मेरे भाई को बहुत तेज प्यास लगी है..’’ दरवाजा खोलने वाली महिला खूंखार निगाहों से उसे घूरा । वह महिला गर्मी की देापहरी में कूलर की ठंडी हवा में बैठी थी । एक जरा से बालक ने उसे ‘‘डिस्टर्ब’’ कर दिया था । उसके चेहरे पर गुस्से के भाव साफ झलक रहे थे । रमेश सहम गया ।
‘‘रूको …देती हॅू’’ उस महिला को दया आई होगी ।
केेवल पानी से सूरज की प्यास हीं बुझी थी । उसका चेहरे अब भी निश्चेत सा ही था । रमेश ने उसे पानी पिलाकर थोड़ा पानी खुद भी पी लिया था बोतल फिर खाली हो गई थी । उसकी हिम्मत नहीं थी कि वह दोबारा घर की घंटी बजाये ।
पानी पी लेने के बाद भी सूरज बेहाल था । भूख के कारण उसे बैचेनी हो रही थी पर वह जानबूझकर रमेश से कुछ नहीं बोल रहा था वह जानता था कि यदि उसने रमेश को बता दिया तो रमेश उससे ज्यादा परेशान हो जायेगा । वह अपनी बैचेनी को छिपाये सूरज की उंगली पकड़ कर चल रहा था । उसकी निगाह कुल् फी के डिब्बे पर लगी हुई थीं जिसमें से रंगरिंगा पानी बह रहा था । कुछ दूर चलने के बाद ही सूरज धड़ाम से गिर पड़ा । रमेश उसकी उंगली पकड़े था इस कारण रमेश भी गिर गया था । कुल्फी का डिब्बा झटके के साथ दूर जा गिरा था । रमेश अचानक घटी इस घटना से घबरा गया । उसने जमीन पर गिरे सूरज को देखा और दूर पड़े कुल्फी के डिब्बे को देखा । वह सूरज की ओर तेजी से झपटा । लोगों की भीड़ जमा होने लगी थी । तपती धरती पर रमेश सूरज को अपनी गोदी में लिए उसे जगाने का प्रयास कर रहा था ‘‘भाई आंखो खोलो…….’’ वह सुबक उठा था । भीड़ मे से किसी ने पानी लाकर दिया था उसने सूरज के मुंह में पानी डालने का प्रयास किया पर पानी ंअदर नहीं जा रहा था ‘‘सूरज……………पानी पी ले…….भाई’’ उसकी दर्द भरी आवाज चारों और गूंज गई थी । सूरज मौन था उसने सूरज को जोर से अपनी छाती से चिपका लिया ।
ऊपर आसमना में सूरज अपनी प्रखर तपन फैला रहा था इधर रमेश की गोदी में लेटा सूरज का तन ठंडा होता जा रहा था । कुल्फी पिघलकर चारों ओर अपनी रसधार बहा चुकी थी सुर्ख रस । एक चील दूर अपने पंख फैलाये रमेश की गोद में सोये सूरज की ओर घूर रही थी ।

कुशलेन्द्र श्रीवास्तव
नरसिंहपुर म.प्र.

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