
आपदा में लाभ कमाने का,
दरिन्दों ने अवसर पाया है।
युग कलयुग में कलयुग की,
देखो आज चरम पर माया है।
महामारी की आड़ में देखो,
एक और महामारी फैली है।
झूठ कपट लालच व्यभिचार,
के संग बेईमानी भी फैली है।
अस्पतालों के अन्दर भी कुछ,
दरिन्दे घात लगाए बैठे हैं।
बहन बेटियों की अस्मत पर,
देखो नजर गड़ाए बैठे हैं।
अपनों को तड़पता देख कर,
जब माँ बहनें गिड़गिड़ातीं हैं।
दे दो चिकित्सा थोड़ी सी बस,
मजबूरी में छटपटातीं हैं।
देखकर पलड़ा भारी अपना,
कुछ दरिन्दे बड़े इतराते हैं।
मदद के बदले ये वहशी उनकी ,
अस्मत की कीमत लगाते हैं।
खींच दुपट्टा माँ बहनों का,
ये इनको बड़ा रुलाते हैं।
आफत की घड़ी में दरिन्दे ये,
लाचारी का फायदा उठाते हैं।
इस बेशर्मी का जवाब भी,
माँ बहनें नहीं दे पातीं हैं।
कुछ बुरा ना हो अपनों संग,
इस डर से विष पी जातीं हैं।
नोटों का झोला जिसका भारी,
बेड दवा उन्ही को मिलती है।
कलयुग के इस दौर में देखो,
गरीबों की खिल्ली उड़ती है।
इंसानों के भेष में राक्षस ये,
आज भी जग में जिंदा हैं।
इन दरिन्दों की करतूतों से,
मानवता भी आज शर्मिंदा है।
हाय रे कलयुग माया तेरी,
क्या क्या मन्जर दिखलाएगी?
जीवन मौत की महफ़िल में ,
और क्या क्या रंग जमाएगी?
कुछ शर्म करो ओ हैवानों,
तुम अमृत पी कर ना आए हो।
जिस माई से जन्में हैं हम,
तुम भी उसी के जाए हो।
माना है आज हमारी बारी,
सुन कल तुम सबकी आएगी।
तड़पोगे तुम भी हमारे जैसे,
तेरी दरिन्दगी तुझे याद आएगी।
★★★★★★★★★★
स्वरचित
सपना (सo अo)
प्राoविo-उजीतीपुर
विoखo-भाग्यनगर
जनपद-औरैया