माया

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दिल से दिल मिलाकर देखो।
जिंदगी की हकीकत को पहचानो।
अपना अपना करना भूल जाओगें।
और आखीर में एक ही पेड़ की
छाया के नीचे आओगें।
और अपने आपको तब तुम
अपने आपको पहचान पाओगें।।

छोड़कर नसवर शरीर,
एक दिन सब को जान है।
जो भी कमाया धामाया
सब यही छोड़ जाना है।
फिर भी भागता रहता है
माया के चक्कर में।।

न खाता है न पीता है,
और न चैन से जीता है।
खुद तो परेशान रहता है
और घर वाले को भी..।
इसलिए संजय कहता है
की करलो कुछ अच्छे कर्म।
वो ही साथ अंत में जाना है।।

घुटन की जिंदगी जीने से,
तो अच्छा है आदि खा के जीओ।
और साथ हिल मिलकर
अपने परिवार में रहो।
जो भाग्य में लिखा है
वो तुझे मेहनत से मिल जाएगा।
पर ज्यादा की लालच में,
हंसीखुशी वाला समय निकल जायेगा।
और तेरी माया तेरे काम न आके
औरो को मिल जायेगी..।।

जय जिनेंद्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)

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