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ज्ञान धन बाँट-बाँट कर ,
खुद भिक्षुक बना रहे ।
अन्याय सहे चुप रहे,
वो सच्चा गुरु बना रहे ।
बदल गई गुरु की परिभाषा,
गुरु भी इसे समझता रहे ।
आज तो यही सच है ,
गुरु सबसे डरता रहे ।
जीवन का पाठ पढ़ाने वाला ,
जीवन क्या सोचता रहे ।
कलम चलाना सिखाने वाला ,
अंगुठा छाप बनता रहे ।
गुरु है या अजीब प्रणी ,
हर शक्स उसे घूरता रहे ।
आज तो यही सच है ,
गुरु सबसे डरता रहे ।
जो उससे ज्ञान लेता है ,
वही सर पर चढ़ता रहे ।
आदर करे न करे कोई,
चौकसी हरदम करता रहे ।
गुरु के सिर पर चाँद चमके,
फिर भी नसीहत लेता रहे ।
आज तो यही सच है ,
गुरु सबसे डरता रहे ।
वर्ष में एक दिन उसका,
वो भी उसका ना रहे ।
मान सम्मान किताबी बातें ,
राहत को तरसता रहे।
वो दिन अब हवा हुए ,
जब गुरु ईश्वर बना रहे ।
आज तो यही सच है ,
गुरु सबसे डरता रहे ।
श्रीमती गीता द्विवेदी
सिंगचौरा(छत्तीसगढ़)
मैं गीता द्विवेदी प्रथमिक शाला की शिक्षिका हूँ । स्व अनुभूति से अंतःकरण में अंकुरित साहित्यिक भाव पल्वित और पुष्पीत होकर कविता के रुप में आपके समक्ष प्रस्तुत है । मैं इस विषय में अज्ञानी हूँ रचना लेखक हिन्दी साहित्यिक के माध्यम से राष्ट्र सेवा का काम करना मेरा पसंदीदा कार्य है । मै तीन सौ से अधिक रचना कविता , लगभग 20 कहानियां , 100 मुक्तक ,हाईकु आदि लिख चुकी हूं । स्थानीय समाचार पत्र और कुछ ई-पत्रिका में भी रचना प्रकाशित हुआ है ।
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Tue Nov 20 , 2018
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