इंतजार

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मेरा दिल खाली खाली है
किसी दिल वाली के लिए।
लवो पर जिसके रहता हो
सदा ही संजय संजय।
बना कर रखूँगा उसको
अपने दिल की रानी।
तो आ जाओ मेरे दिलमें
खुला है मेरे दिल का द्वार।।

अभी तक न जाने
कितनो ने पुकारा है।
तभी तो हिचकियाँ मुझे
आ रही है बार बार ।
जो भी हो तुम दिलरुबा
सामने तो आ जाओं।
और झलक अपनी तुम
मुझे जरा दिखा जाओं।।

मेरे दिल की धड़कने
नहीं है अब मेरे बस में।
न जाने कौन है वो जो
इन्हें तेजी से धड़का रहा।
और अपनी धड़कनो को
मेरे दिलसे मिला रहा।
न खुद सो रहा है और
न मुझे सोने दे रहा।।

बीस की उम्र से लेकर
बहुत मुझे वो सता रहा।
पर अपने चेहरे को वो
अभी तक छुपा रहा है।
कसम से पता नहीं मुझको
क्यों वो इतना सता रहा।
शायद कोई पूर्व जन्म का
बंधन हमसे निभा रहा है।
इसलिए मैं भी उसका
इंतजार कर रहा हूँ।।

जय जिनेंद्र देव
संजय जैन (मुंबई)

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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