मूल्यपरक पत्रकारिता की स्थापना का निर्णय!

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भारत मे पत्रकारों का एक ऐसा भी संगठन है जिसके सभी सदस्य न सिर्फ सात्विक है अपितु मिशनरी भी।मुल्यानुगत मीडिया अभिक्रम समिति नाम से पंजीकृत एवं सक्रिय इस संगठन के राष्ट्रीय संयोजक का जिम्मा जाने माने पत्रकार प्रोफेसर कमल दीक्षित संभाल रहे है तो अध्यक्ष के पद पर भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक संजय द्विवेदी आसीन है जो माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के कुलपति भी रह चुके है।इस संगठन की 27 सितंबर को ऑन लाइन हुई राष्ट्रीय कार्यसमिति बैठक में मूल्यपरक पत्रकारिता के माध्यम से मूल्यनिष्ठ समाज की स्थापना का संकल्प लिया गया।संगठन से जुड़े देशभर के पत्रकार सदस्यों ने सात्विक आहार और सात्विक जीवन पर बल देते हुए आध्यात्मिक सोच के साथ पत्रकारिता की दशा व दिशा सुधारने की आवश्यकता व्यक्त की।
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की इंदौर जोन इंचार्ज राजयोगीनी बीके हेमलता के सानीदय व डॉ संजय द्विवेदी की अध्यक्षता में जयपुर से प्रोफेसर संजीव भानावत, खामगांव से दैनिक देशोन्नति के संपादक राजेश राजोरे, जलगांव से डॉ सोमनाथ, उत्तराखंड से श्रीगोपाल नारसन, भोपाल से बीके रीता बहन ने पत्रकारिता में आज की चुनौती को रेखांकित किया और कोरोना संकट के दौर में पत्रकार अवसाद के शिकार न हो इसके लिए राजयोग के अभ्यास पर बल दिया। पत्रकारिता से जुड़े मानदण्डो और मूल्यनिष्ठता की शब्द गंगाप्रोफेसर कमल दीक्षित के मुख से ऐसी बही जैसे वह मूल्यनिष्ठ पत्रकारिता के भागीरथ बनकर ब्रह्माकुमारीज रूपी शिव शीर्ष से सदाचार का प्रवाह लेकर देश दुनिया के सामने से निकले हो। मीडिया में सकारात्मक सोच को आगे बढ़ाकर चरित्रवान, सात्विक, सकारात्मक सोच के धनी पत्रकारों को एकजुट करके देश समाज मे आध्यात्मिक क्रांति का माध्यम बनाने की बात प्रोफेसर कमल दीक्षित द्वारा कही गई। वे चाहते है कि समाज में व्याप्त खामियां और समस्याओं को बदलने की शक्ति होनी चाहिए।
प्रो. कमल दीक्षित के शब्दों में, ‘मीडिया का मूल्यानुगत होना क्यों है जरूरी है?
पिछले कुछ वर्षों में पत्रकारिता सामाजिक सरोकारों और मूल्यों से क्यो दूर हो गई ?उनकी सोच है,पत्रकारिता देश और समाज के लिए नहीं होती ,बल्कि मनुष्यता के लिए होती है। इसलिए पत्रकारिता के केंद्र में मनुष्य होना चाहिए।उनका मानना है,एक पत्रकार के रूप में आज भी नारद जीवित हैं।उनकी नजर में,शब्दों और प्रतीकों का अपना उत्कर्ष और अपकर्ष होता है।
जब रचनाकार रचना करता है तो वह प्रतीकों में रच बस जाता है।
शब्द सिर्फ शब्द नहीं होता है। शब्द संस्कृति होता है, प्रतीक होता है।उनकी राय में,नारद हमेशा कमजोर और शोषित वर्ग के लिए खड़े रहे और संचार संवाद का काम किया।
समाज में असहमति जरूरी है। जहां असहमति नहीं होती है, वहां सत्य का विस्फोट नहीं होता है।’
राजेश राजोरे कहते है कि अच्छे कार्यों से दुनिया बदल सकती हैं।
किसी का जीवन सुधारने, निराश व्यक्तियों के मन में आशाओं का दीप जगाने, सभी के अधिकार दिलाना पत्रकार का कर्तव्य है। केवल संवेदनषील पत्रकार ही ऐसी अच्छी पत्रकारिता कर सकता है। संवेदनषीलता लाने के लिए आध्यात्मिकता का समावेष जीवन में जरूरी है। हालांकि जब भी आध्यात्म की ओर अपनी रूचि रखेंगे, कदम बढ़ायेंगे तो कोई न कोई व्यंग्य के साथ आपको ऐसा करने से रोकने का प्रयास कर सकता है। लेकिन आपकी दृढ़ता और आध्यात्म की शक्ति से आप एक अच्छे पत्रकार की श्रेणी में आ सकते हैं। उन्होंने अनेक उदाहरण देकर सकारात्मक पत्रकारिता को प्रेरित करने की बात समझाते हुए कहा कि आज सकारात्मक खबरें छपती भी हैं लेकिन अवसरात्मक तौर पर। यदि अवसरात्मक के बजाय अभिप्रायपूर्ण हो तो समाज में परिवर्तन जल्दी और निष्चित ही आयेगा। उन्होंने बतलाया कि आज बेइमानों की न्यूज का बखान तो किया जाता है लेकिन परोपकार का कार्य करने वालों को, ईमानदारी, मूल्य व निष्ठा से काम करने वालों को भी लोगों व शासन के सामने लाने का कार्य किया जाना चाहिए।
प्रोफेसर संजीव भानावत का मानना है कि पत्रकारिता एक विशिष्ट मानसिक कार्यशैली है, व्यवहारशैली है, कार्यकुशलता है, मानवीय मूल्यों को जाग्रत करने का एक व्यवहारिक ज्ञान व कला है, जोकि हमारे अपने अंदर हैं न कि व्यवस्था में। मीडिया किसी के आगे झुके नहीं, किसी के दबाव में आकर कार्य न करें। मीडिया स्वतंत्र रहे और स्वतंत्र लेखनी चलाये। बीके रीता बहन ने बताया कि मुल्यानुगत मीडिया अभिक्रम समिति में केवल सात्विक अभिरुचि के पत्रकारों को सदस्य बनाकर उन्हें मिशनरी पत्रकारिता के मार्ग पर चलने के लिए मुल्या नुगत मीडिया अभिक्रम समिति जैसा बडा संगठन उपलब्ध है।जो पत्रकारिता में आध्यात्मिक सोच विकसित को विकसित कर सकारात्मक उन्मुखता की ओर अग्रसर है। युवा पत्रकार सोहन के सफल संचालन व डॉ सोमनाथ के तकनीकी कौशल से राष्ट्रीय स्तर की मुल्यानुगत मीडिया अभिक्रम समिति की बैठक राह भटके मीडिया को सद्ऱाह पर लाने का एक प्रयास कही जा सकती है।
डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
रुड़की,उत्तराखंड

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