भारत मां को आजाद कराने,
निकला था एक अलबेला।
सिर पर बांध कफ़न केसरिया ,
पहना था भगत ने बसंती चोला।
भारत मां की आजादी ही,
था भगत की आंखों का सपना।
वार दिया मां की आजादी पर,
जिसने सारा जीवन अपना।
जलियांवाला बाग़ कांड ने,
भगत को ऐसा झिंझोड़ा था ।
अंग्रेजों को मार भागने खातिर,
घर बार भी अपना छोड़ा था।
चन्द्रशेखर ,सुखदेव, राजगुरु संग,
आजादी का बिगुल बजाया था,
लाजपतराय की मौत का बदला लेने को,
सांडर्स को मार गिराया था।
मजदूर विरोधी नीतियों के विरोध में,
केंद्रीय असेम्बली में बम फोड़ा था।
स्वतंत्रता सेनानियों संग मिलकर,
भारत में आजादी का राग छेड़ा था।
पीठ दिखा कर कभी भागे ,
थे आजादी के ऐसे मतवाले।
कर दिया फिर खुद को भगत ने,
अंग्रेजी हुकूमत के हवाले।
भगत सिंह,सुखदेव, राजगुरु को,
अदालत ने फांसी की सजा सुनाई।
मौत भी जिनको डरा सकी ना,
मां के शेरों ने भी दहाड़ लगाई।
अाई घड़ी जब फांसी चढ़ने की,
वीर सपूतों को जरा सिकन ना अाई।
तीनों क्रांतिकारियों ने मिलकर,
फिर ‘ इन्कलाब ‘ की बोली लगाई।
हंसते हंसते चढ़कर सूली,
वीरों ने अपना धर्म निभाया।
हर हिन्दुस्तानी को वीरों ने,
राष्ट्रधर्म का पाठ पढ़ाया।
तेईस वर्ष की उम्र में भगत ने,
अंग्रेजी हुकूमत को हिला दिया।
मैं भारत माता का बेटा हूं,
सारे जग को बतला दिया।
धन्य हो तुम भगत ,सुखदेव ,राजगुरु,
धन्य है तुम सबकी कुर्बानी,
जब याद करेगी दुनियां तुमको,
आएगा उनकी आंखों में पानी।
जब तक सूरज में प्रकाश रहेगा,
तेरा ' इन्कलाब जिंदाबाद ' रहेगा।
रचना –
सपना
जनपद – औरैया