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हो पिया जब परदेश में
सावन भी सूखा लगता है
सजनी का हर श्रृंगार भी
पी बिन अधूरा लगता है
बारिश की हरेक बूंद भी
तब आग ही बन जाती है
सावन की सुहानी रातों में
जब याद पिया की आती है
इंतज़ार होता है नैनों में
देखने को तरस जाता है
बिना साजन सारा सावन
आंखों से ही बरस जाता है
:- मनीषा कुमारी
फतेहपुर, बिहार
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