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अपने पड़ोस के एक वैवाहिक समारोह में शामिल अंजू अपनी सहेलियों संग बातें करने में मगन थी , तभी सामने से आती सरिता चाची ने उसे टोका । ” अरे अंजू ! तुम यहाँ ? तुम्हें तो बीमार माँ के पास होना चाहिए , बेचारी कभी चल भी नहीं सकतीं । ये आज – कल की लड़कियाँ भी न ।” कहते हुए सरिता चाची आगे बढ़ गईं , पर उनकी बातें अंजू को तमाचे की तरह लगीं । अपनी आँखों को छलकने से बचाने का असफल प्रयास करती हुई वो अपने घर की ओर भागती चली गई । क्या दोष था उसका ? …… यही न , कि वह भी दूसरे बच्चों की तरह हँसना , बोलना और खुश रहना चाहती थी । पर जहाँ भी जाती , उसे एक ही प्रश्न से दागा जाता …….. तुम्हारी माँ की तबीयत अब कैसी है ? धीरे – धीरे उसका लोगों से मिलना – जुलना , कहीं आना – जाना कम होने लगा । अब अंजू किताबों के शब्दों में अपनी खुशी ढूंढने लगी । ये रास्ता उसे ज्यादा सुखद और सार्थक लगा । और एक फूल मुरझाने के बजाय दोगुने उत्साह से खिलकर अपनी सुंगध फैलाने लगा .. समाज में …..देश में ……।
श्रीमती गीता द्विवेदी
सिंगचौरा(छत्तीसगढ़)
मैं गीता द्विवेदी प्रथमिक शाला की शिक्षिका हूँ । स्व अनुभूति से अंतःकरण में अंकुरित साहित्यिक भाव पल्वित और पुष्पीत होकर कविता के रुप में आपके समक्ष प्रस्तुत है । मैं इस विषय में अज्ञानी हूँ रचना लेखक हिन्दी साहित्यिक के माध्यम से राष्ट्र सेवा का काम करना मेरा पसंदीदा कार्य है । मै तीन सौ से अधिक रचना कविता , लगभग 20 कहानियां , 100 मुक्तक ,हाईकु आदि लिख चुकी हूं । स्थानीय समाचार पत्र और कुछ ई-पत्रिका में भी रचना प्रकाशित हुआ है ।
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Fri Nov 30 , 2018
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