मरने के बाद श्मशान नहीं

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यह कैसा बुरा वक़्त आया है।

जिंदा थे जब अस्तपताल नहीं,
मरने के बाद अब श्मशान नहीं।
यह कैसा बुरा वक़्त आया है,
मरने के बाद भी आराम नहीं।।

जब काम था आराम नहीं,
अब आराम है काम नहीं।
यह कैसा बुरा वक़्त आया है
हर हाथ को अब काम नहीं।।

शव को जलाने को स्थान नहीं,
दफनाने को अब कब्रिस्तान नहीं
यह कैसा बुरा वक़्त आया है,
मुर्दे के लिए कोई स्थान नहीं।।

सरकार के पास इंतजाम नहीं,
जनता को कोई आराम नहीं।
यह कैसा बुरा वक़्त आया है,
दोनों में अब कोई विश्वास नहीं।।

जब दांत थे तो चने नहीं
अब चने है तो दांत नहीं।
यह वक़्त वक़्त की बात है
कभी चने नहीं कभी दांत नहीं।।

आर के रस्तोगी
गुरुग्राम

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