क्या भारत के लिए 545 प्रधान मंत्री हैं ?

0 0
Read Time5 Minute, 36 Second

(वे तमाम हिंदी क्षेत्र के लोग जो अपने स्वार्थों के लिए संविधान की अष्टम अनसूची के माध्यम से हिंदी को बोलियों में टुकड़े-टुकड़े करने पर आमादा हैं। वे तमाम लोग जो अज्ञानवश, क्षेत्रीयतावादी सोच वोटबैंक की राजनीति या अन्य किसी कारण से भारत के लिए राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रभाषा या राजभाषा के विरुद्ध किसी भी रूप में खड़े होते हैं। वे तमाम लोग जो भारतीय भाषाओं को आपस में लड़वा कर अथवा वैश्विकता की आड़ में हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं के स्थान पर अंग्रेजी को आगे बढ़ा कर भारतीय भाषाओं को पीछे धकेलने के कुत्सित प्रयास करते हैं। उन सबको हिंदीतरभाषी भाषा-चिंतक व भारत चिंतक डॉ. देविदास प्रभु का यह लेख अवश्य पढ़ना चाहिए।) – डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’

आठवीं अनुसूची की भाषाओं को लेकर जो तर्क सामने रखा जा रहा है, उसी तर्क को सामने रखते हुए मैंने देश के लिए 545 प्रधान मंत्री होने का प्रश्न उठाया है। आठवीं अनुसूची में हिंदी भी है। इसलिए आठवीं अनुसूची की सभी भाषाएँ राजभाषाएँ हैं और हिंदी 22 राजभाषाओं में एक है, कह कर मैकॉले पुत्र देश की जनता को गुमराह कर रहे हैं ! देश के 545 लोकसभा सदस्यों में प्रधान मंत्री भी शामिल हैं, इसलिए इस तरह तो देश के लिए 545 प्रधान मंत्री भी होने चाहिए !

संविधान का अनुच्छेद 343 हिंदी को भारत सरकार का राज भाषा कह रहा है और किस तरह से अंग्रेजी हटाकर उस स्थान पर हिंदी लाने का जिक्र कर रहा है, कहीं पर भी और किसी भाषा का जिक्र नहीं है ! अनुच्छेद 351 आठवीं अनुसूची की भाषाओं से शब्दों को लेकर राजभाषा हिंदी का विकास करने को कह रहा है ! अनुच्छेद 351 के अलावा आठवीं अनुसूची का जिक्र और कहीं पर भी नहीं है ! राजभाषा के विकास के लिए बनी पार्लियामेंटरी की समिति में आठवीं अनुसूची की भाषाओं का प्रतिनिधि भी इसलिए है कि वह राजभाषा हिंदी में अपनी भाषा के शब्दों को मिलाने के बारे में अपने सुझाव दे सकें !

राज भाषा (Official Language) का मतलब एक ही भाषा राजभाषा है, यह बात तो छोटे बच्चे भी समझते हैं मगर बड़े लोग जान बूझकर नहीं समाझ रहे है ! यह एक सोची समझी साजिश है! अंग्रेजी को बरकरार रखने के उद्देश्य से आठवीं अनुसूची के भाषावो को हिंदी के विरुद्ध इस्तेमाल किया जा रहा है ! आठवीं अनुसूची की हिंदी वो है जो संविधान बनने से पहले अस्तिव में रही, हिंदी है और राजभाषा हिंदी वो है जो धारा 351 के अनुसार विकसित करनेवाली हिंदी है !

केंद्र सरकार की राजभाषा ही राष्ट्रभाषा है, संविधान बनानेवालों ने संविधान सभा में कुल 38 बार हिंदी को राष्ट्रभाषा कहा है ! अगर संविधान बनाने वाले कहते के हमने किसी भाषा को राष्ट्र भाषा नहीं बनाया है तो संविधान कभी भी स्वीकृत नहीं होता ! संविधान सभा के सदस्यों ने संविधान को पारित इसलिए किया था कि उनको ये समझाया गया था कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाया गया है ! राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी और हिन्दुस्तानी को लेकर चर्चा हुई थी और किसी भी भाषा के बारे में कोई चर्चा नहीं हुई थी ! हिंदी को 22 राजभाषाओं में एक कहकर जनता को गुमराह करना, अन्य भाषा के लोगो को हिंदी के विरुद्ध भड़काना संविधान का बहुत बड़ा अपमान है, यह अपमान बड़े-बड़े लोग कर रहे हैं। और पूरी अंग्रेजी मीडिया करती आई है !

राज्यों को अपनी राजभाषा चुनने का अधिकार दिया गया है। अनुच्छेद 346 और 347 ने और उसे संविधान ने प्रादेशिक भाषा कहा है। मगर राज्य द्वारा चुननेवाली भाषा भी आठवीं अनुसूची की भाषा होने का जिक्र नहीं है। मतलब आठवीं अनुसूची की भाषाएँ प्रादेशिक भाषाए भी नहीं है वे केवल राज भाषा हिंदी के विकास केलिए सहयोग देनेवाली भाषाए है ! राज्यों ने आठवीं अनुसूची में केवल 14 भाषाओं को ही अपनी राजाभाषा चुना है और 8 भाषाओं को किसी भी राज्य ने अपनी राजभाषा नहीं बनाया है !

डॉ. देविदास प्रभु

matruadmin

Next Post

एकतरफा प्यार

Tue Mar 3 , 2020
दिलसे जिसे याद करते है, वो हमें याद करती नहीं। हम जिस पर मरते है, वो और पर मरती है। बड़ी विचित्र स्थिति है, मोहब्बत करने वालो की। जो एक दूसरे लिए, बिल्कुल अजनबी है।। दिल में मोहब्बत के, दीये तो जल रहे है। और उस अजनबी को, एकतरफा दिल […]

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।