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आहिस्ता चल जिंदगी
थोड़ा पीछे तो भी झांक लूं,
पीपल के छांव नीचे भुला हूं
उसे तांक लूं।
घनी अमरईया की ठाँव में
सुन्दर मेरा गांव था,
चौपालों के ठहाकों से गूंजता
गली का हर मकान था।
दादा दादी काका काकी संग
गुजरा बचपन कहता है
लौट के आना इस पगडंडी पर
सुना पनघट कहता है।
मन्दिर की घण्टी शाम ढले
जीवन राग सीखाती थी
कोलाहल बच्चों के खेल का
नव स्फूर्ति दे जाती थी।
इन्ही यादों की खुसबू समेटे
मन यही बस कहता है
जी ले फिर हम कल को
समय का पहिया चलता है।
#अविनाश तिवारी
अमोरा जांजगीर चाम्पा
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