रिश्वत का देवता

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रेल अपनी पूर्ण रफ्तार में थी | कढाके की ठंड में पाखाने के नजदीक ठीक दरवाजे के सामने जमीन पर फटे-पुराने चीथड़ों में एक निर्धन किसान बैठा हुआ था | वह ठंड से कांप रहा था और बार-बार अपनी जेब को टटोल रहा था | वह यह प्रयास निरन्तर पिछले दस-पन्द्रह मिनट से कर रहा था |

दस – पन्द्रह मिनट पहले सब ठीक-ठाक था | एक कालेकोट वाला रिश्वत का देवता आया और उसने उस निर्धन किसान का टिकट चेक किया | टिकट सामान्य श्रेणी का था और बेचारा निर्धन किसान आरक्षित श्रेणी में घुस गया था | बस रिश्वत के देवता को मिल गया लूट का मंत्र… पूरे दो सौ रुपये लूटकर ले गया और ऊपर से तमाम भद्दी-भद्दी गालियाँ उपहार में दे गया |

उस निर्धन किसान की आँखों से एक प्रलयकारी ज्वालामुखी फूट रहा था | पता नहीं उस ज्वालामुखी की महाअग्नि से वो रिश्वत का देवता भस्म होगा कि बच जायेगा… यह तो परमेश्वर ही जाने |

  • मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
    फतेहाबाद, आगरा

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