
बचपन की यादों को,
मैं भूला सकती नहीं।
मां के आँचल की यादे,
कभी भूली ही नहीं।
दादा दादी और नाना नानी,
का लाड़ प्यार हमे याद है।
मौसी बुआ का दुलार,
दिल से निकला नही।
वो चाची की चुगली,
चाचा से करना।
भाभी की शिकायत
भैया से करना।
बदले में पैसे मिलना,
आज भी याद है।
और उस पैसे से,
चाट खाना याद है।
भाई बहिनों का प्यार,
और लड़ना भी याद है।
भैया की शादी का वो दृश्य,
आंखों के समाने बार बार आता है।
जिसमें भाभी की विदाई पर,
उनका जोर से रोना याद है।
खुद की शादी और विदाई का,
हर एक लम्हा याद आ रहा है।
मांबाप के द्वारा दी गई,
हिदायते और नासियते
दिल में रखें हूँ।
मानो अपनी दुनियां खो आई हूँ।
मांबाप का आंगन छोड़ आई हूं।
दिल में नई उमंगे लेकर,
पिया के साथ आई हूं।
जो मेरे जीवन का,
अब आधार स्तम्भ है।
मानो मेरी जिंदगी का
यही संसार है।
छोड़ा माता पिता और,
भाई बहिनों को तो।
नये माता पिता और नंद देवर,
भाई बहिनों जैसे पाये है।
छोटी सी दुनियां छोड़कर,
बड़ी दुनियां में आई हूँ।
अब जवाबदारियों का बोझ,
स्वंय उठाकर चल रही हूँ।
पिया से मिल रहा स्नेह प्यार,
जिससे नई दुनियां बसाई
हूँ ।
जो खुद कल बच्ची थी,
आज माँ बन के सामने आई हूँ।।
और मां का फर्ज मैं
खुद निभा रही हूं।
जिंदगी का चक्र,
ऐसे ही चलता रहेगा।
समय हमारे जीवन का
यूही निकलता रहेगा।।
जय जिनेन्द्र देव की
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।