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कड़कड़ाती सर्दियों में
गुनगुनी धुप हो तुम,
मैं थकाहारा दिन
शांत रात हो तुम l .
हर रोज तरसे
जिस स्वाद को,
मिलन का वो
मधुमास हो तुम l
बनते-बिगड़ते रिश्तें
उलझन का उन्माद,
तुम्हारे हाथ का साथ
मेरी हर बात हो तुम l
साथ बना रहे
ऐसे ही हमारा,
ना बुझने वाली“हर्ष” की प्यास हो तुम l
#प्रमोद कुमार हर्ष
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