साहित्यिक महाकुंभ :सरस्वती पुत्र पीछे, लक्ष्मी पुत्र आगे

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अठ्ठारह नवंबर से तीन दिन के लिए मेरठ के एक निजी विश्वविद्यालय में आयोजित क्रांतिधरा मेरठ साहित्यिक महाकुंभ में यूं तो देश विदेश के हिंदी एवं विभिन्न भाषाओं के साहित्यकारों ने भाग लिया।लेकिन चाहे पुस्तक प्रदर्शनी का उदघाटन हो या फिर साहित्यिक महाकुंभ का उदघाटन सरस्वती पुत्रो को पीछे धकेलकर लक्ष्मी पुत्र ही साहित्यकारों पर हावी रहे।साहित्यिक महाकुम्भ में आध्यात्मिक क्षेत्र से स्वामी अवधेशानंद भी सुरक्षा गार्डो के साथ बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे ,साथ ही जैनमुनि लोकेश जी महाराज ने भी अपनी उपस्थिति विशिष्ट अतिथि के रूप में दर्ज कराई।जाने माने साहित्यकार डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा अरुण,कनाडा से विश्व हिंदी संस्थान के प्रभारी सरन घई, नेपाल से प्रकाशित हिंदी पत्रिका हिमालिनी की संपादक स्वेता दीप्ति, संचालक राम गोपाल भारतीय,आयोजक विजय पंडित ,नेपाल के साहित्यकार सचिदानंद मिश्र,जाने माने कवि डॉ ईश्वर चन्द गम्भीर, सरोजनी तन्हा,केंद्रीय हिंदी संस्थान से जुड़े दिग्विजयसिंह,विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ के उपकुलसचिव डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट, सहारनपुर के विनोद भ्रंग,आगरा से प्रोफेसर सुषमा, रमा शर्मा जापान,कपिल कुमार बेल्जियम ब्रिटेन से जय वर्मा, मारीशस से रामदेव धुरंधर,कोलकाता से
डॉ वीर सिंह मार्तंड साहित्य त्रिवेणी ,अनिता आर्यन,ब्रह्मानन्द तिवारीआदि की उल्लेखनीय मौजूदगी में जब मंच मेजबान निजी विश्वविद्यालय ने साहित्यकारों के कार्यक्रम को बीच मे हाई जेक करके अंग्रेजी में संचालन शुरू करवा कर अपने विश्वविद्यालय के बच्चों को मंच पर बुलाकर पुरुस्कृत कराना शुरू किया तो मेरठ के कवि प्रियवर्त शर्मा नाराज हो गए और इसे हिंदी का अपमान बताकर कार्यक्रम बीच मे ही छोड़कर चले गये।
साहित्य महोत्सव के विशिष्ट अतिथि आचार्य डॉ लोकेश मुनि ने तो साहित्यिक महाकुंभ आयोजक विजय पण्डित को आयोजन का श्रेय देने के बजाय वैन्यू उपलब्ध कराने वाले निजी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति को ही कार्यक्रम का श्रेय दे दिया।उन्होंने कहा कि कटपेस्ट के चलन के कारण मुल लेखन की भावना दमतोड़ रही है।उन्होंने कहा कि आध्यात्म व भौतिकता में संतुलन बनाये रखना जरूरी है।गुरुकुल शिक्षा प्रणाली में संतुलन था, आज यह संतुलन टूट रहा है।व्यक्ति का एनिमल ब्रेन नकारात्मकता की ओर लेकर जा रहा जाए।मूल्यपरक शिक्षा का अभाव ही हमारे पिछड़ेपन का कारण है।यह कहते हुए डॉ लोकेश मुनि ने साहित्य में सकारात्मक सोच विकसित करने की सलाह दी।जूना अखाड़े के पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज ने कहा कि समाज मे एकता बड़ी आवश्यक है। तभी अपने भीतर के पशु को हम जीत सके।जिस देश मे साहित्यकारों का सम्मान होता है वह देश चिर जीवित रहता है।
उन्होंने ने वैदिक सभ्यता को आदिकाल से जीवित होना बताया।उन्होंने कहा कि साहित्य मे भी मूल्यों का होना जरूरी है।उन्होंने कहा कि जो खुद को अच्छा नही लगता वह दूसरों के लिए न करे।लोकमान्यताओं का भी ध्यान रखे,इस विद्या ने ही हमे जीवंत रखा है।
उन्होंने कहा कि दिनमान, लोट पोट,साप्ताहिक हिंदुस्तान, सन्डे मेल,धर्म युग जैसे अनेक प्रकाशन दम तोड़ चुके है।उन्होंने साहित्यकारों से कहा कि वे पुस्तको को पढ़ना शुरू करे,तकियों के नीचे पुस्तकें रखने व उन्हें पढ़ने की आदत खोने न पाए।पुस्तकों में एक बार झांककर तो देखिए।पुस्तके चलते फिरते सुरज के समान है।शब्द के पास पहुंचने से ही हम रचनाधर्म का पालन कर सकते है।
उन्होंने कहा कि लेखक हमेशा जीवित रहता है।व्यास जी आज भी जीवित है।पतंजलि आज भी जीवित है।समस्याओं की जड़ अज्ञानता है।हमारा शत्रु परमाद है।जिससे बचकर रहना होगा।इस अवसर पर अखिल भारतीय स्तर पर साहित्यिक योगदान के लिए
शेख अब्दुल बहाव (तमिलनाडु ) धरमजीत सरल,विजय तिवारी (गुजरात )को सम्मानित किया।
तीन दिनों तक चलने वाले इस साहित्यिक महाकुंभ में आधा दर्जन से अधिक देशो के करीब तीन सौ प्रतिनिधि भाग ले रहे है।जो साहित्यिक विमर्श के साथ ही कहानी,कविताओं, उपन्यास, नाटक,लघुकथा, व्यंग्य,हाईकु आदि विधाओं पर संवाद कर रहे है और विभिन्न भाषाई अनुवाद की भी रूप रेखा तैयार की जा रही है।इस साहित्यिक महाकुंभ में नेपाल, भूटान, कनाडा, बेल्जियम, जापान, ब्रिटेन, चीन, तिब्बत, मारीशस देशों से साहित्यकार लेखक और कवि पहुंचे हैं। तीन दिवसीय आयोजन में मुख्य रूप से पुस्तक प्रदर्शनी, साहित्यिक परिचर्चा, पुस्तक विमोचन, समीक्षा, साक्षात्कार, रंगमंच, शोध पत्र, कवि सम्मेलन और सम्मान समारोह विभिन्न सत्रों में आयोजित किया गया।

#श्रीगोपाल नारसन

परिचय: गोपाल नारसन की जन्मतिथि-२८ मई १९६४ हैl आपका निवास जनपद हरिद्वार(उत्तराखंड राज्य) स्थित गणेशपुर रुड़की के गीतांजलि विहार में हैl आपने कला व विधि में स्नातक के साथ ही पत्रकारिता की शिक्षा भी ली है,तो डिप्लोमा,विद्या वाचस्पति मानद सहित विद्यासागर मानद भी हासिल है। वकालत आपका व्यवसाय है और राज्य उपभोक्ता आयोग से जुड़े हुए हैंl लेखन के चलते आपकी हिन्दी में प्रकाशित पुस्तकें १२-नया विकास,चैक पोस्ट, मीडिया को फांसी दो,प्रवास और तिनका-तिनका संघर्ष आदि हैंl कुछ किताबें प्रकाशन की प्रक्रिया में हैंl सेवाकार्य में ख़ास तौर से उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए २५ वर्ष से उपभोक्ता जागरूकता अभियान जारी है,जिसके तहत विभिन्न शिक्षण संस्थाओं व विधिक सेवा प्राधिकरण के शिविरों में निःशुल्क रूप से उपभोक्ता कानून की जानकारी देते हैंl आपने चरित्र निर्माण शिविरों का वर्षों तक संचालन किया है तो,पत्रकारिता के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों व अंधविश्वास के विरूद्ध लेखन के साथ-साथ साक्षरता,शिक्षा व समग्र विकास का चिंतन लेखन भी जारी हैl राज्य स्तर पर मास्टर खिलाड़ी के रुप में पैदल चाल में २००३ में स्वर्ण पदक विजेता,दौड़ में कांस्य पदक तथा नेशनल मास्टर एथलीट चैम्पियनशिप सहित नेशनल स्वीमिंग चैम्पियनशिप में भी भागीदारी रही है। श्री नारसन को सम्मान के रूप में राष्ट्रीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा डॉ.आम्बेडकर नेशनल फैलोशिप,प्रेरक व्यक्तित्व सम्मान के साथ भी विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ भागलपुर(बिहार) द्वारा भारत गौरव

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।