ये तो प्रेम की बात है…

1 0
Read Time3 Minute, 8 Second

अक्सर आध्यात्मिक गलियारों में ये गीत गुनगुनाया जाता है । बड़े विश्वास और ईश्वरीय अनुराग की अनुभूति से जब मानव मन गुज़रता है ,तो ये पंक्तियां अपना अर्थ खोल देती हैं। गोपियों के प्रेम ,समर्पण की पराकाष्ठा को समेटे ये गीत उनकी मन: स्थिति की ,भावों को उजागर करता है। सचमुच प्रेम में, समर्पण में जब हमारा हृदय अपनी धडकनों को भूल जाए साँसों की आवाजाही भी एक क्षण के लिए शिथिल हो जाए ।जब केवल एक रह जाए दूसरा कोई नहीं। न मन,न चित् न बुद्धि सब कहीं खो जाएँ ।ऐसी अवस्था को ही प्रेम की सर्वोच्च स्थिति का सकते हैं।

जिसने भी इस मनोभाव का अनुभव किया वो डूब गया गहरे समंदर में।जैसे सीप स्वाति नक्षत्र की बूँद को लेकर समुद्र की अथाह गहराई में खो जाती है।किसी शायर ने कहा है -        सागर को क्या जानें साहिल के तमाशाई
        हमने डूब कर जानी है सागर तेरी गहराई

 जब-जब मानव का मन खो गया है तब-तब उसके जीवन में ये घटना घटी है। और तब वो मानव महामानव बन गया है ।फिर कोई पास नहीं, कोई दूर नहीं, न कोई अपना, न पराया।

 जब-जब मनुष्य ने अपने जीवन में ईश्वरीय प्रेम को अनुभव किया है,तो प्रत्येक रूप में उसे अपने प्रियतम का दर्शन हुआ है।

 तब वो बात समझ में आती है-वसुघैव कुटुम्बकम पूरा विश्व ही हमारा परिवार है।जिसने भी इस अनुभव को पाया वो अपने इस समय का विवेकानंद बन गया। गौतम,महावीर बन गया।फिर पूरी सृष्टि ने उसे प्रणाम किया है।

 बस ज़रूरत है कि हम भी इस गीत को गुनगुनाएँ,अपने जीवन के सितार पर बजाएं, जिसकी धुन से हमारा जीवन भी संगीतमय बने अौर सुनने वालों को भी आनंद की अनुभूति हो।

अलका रागिनी, मुम्बई

परिचय-
-अलका रागिनी जन्मतिथि-१२.०१.८१ शिक्षा-स्नातक(इतिहास) जन्म-स्थान-ग्राम नावडीह
प्रकाशित पुस्तक-जीवन के पड़ाव,मंज़िल से आगे,आत्मनिवेदनम,जियें तो जियें कैसें,मेरो मन आनंद।
सम्मान-
-वुमन आवाज़ सम्मान(जियें तो जियें कैसे)
-अन्तराशब्द शक्ति सम्मान-(मेरो मन आनंद)
-महिला साहित्य सृजन सम्मान(मंज़िल से आगे)
-आचार्य रामचंद्र शुक्ल सम्मान महाराष्ट्र साहित्य अकादमी (2019)आत्मनिवेदनम के लिए…..

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

महान कलाम तुम्हें सलाम।

Mon Oct 14 , 2019
भारत के इतिहास में सोने के अक्षरों में अंकित एक ऐसा व्यक्ति जन्म लेता है जोकि बेहद गरीब परिवार में अपनी आँखें खोलता है जिसे दो जून की रोटी भी खाने को नसीब नहीं होती। इस विक्राल परिस्थिति में जन्मे हुए बच्चे ने संघर्ष करना शुरू किया और कभी भी […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, ख़बर हलचल न्यूज़, मातृभाषा डॉट कॉम व साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। साथ ही लगभग दो दशकों से हिन्दी पत्रकारिता में सक्रिय डॉ. जैन के नेतृत्व में पत्रकारिता के उन्नयन के लिए भी कई अभियान चलाए गए। आप 29 अप्रैल को जन्में तथा कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएच.डी की उपाधि प्राप्त की। डॉ. अर्पण जैन ने 30 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण आपको विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन द्वारा वर्ष 2020 के अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से डॉ. अर्पण जैन पुरस्कृत हुए हैं। साथ ही, आपको वर्ष 2023 में जम्मू कश्मीर साहित्य एवं कला अकादमी व वादीज़ हिन्दी शिक्षा समिति ने अक्षर सम्मान व वर्ष 2024 में प्रभासाक्षी द्वारा हिन्दी सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं, साथ ही लगातार समाज सेवा कार्यों में भी सक्रिय सहभागिता रखते हैं। कई दैनिक, साप्ताहिक समाचार पत्रों व न्यूज़ चैनल में आपने सेवाएँ दी है। साथ ही, भारतभर में आपने हज़ारों पत्रकारों को संगठित कर पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग को लेकर आंदोलन भी चलाया है।