अक्सर आध्यात्मिक गलियारों में ये गीत गुनगुनाया जाता है । बड़े विश्वास और ईश्वरीय अनुराग की अनुभूति से जब मानव मन गुज़रता है ,तो ये पंक्तियां अपना अर्थ खोल देती हैं। गोपियों के प्रेम ,समर्पण की पराकाष्ठा को समेटे ये गीत उनकी मन: स्थिति की ,भावों को उजागर करता है। सचमुच प्रेम में, समर्पण में जब हमारा हृदय अपनी धडकनों को भूल जाए साँसों की आवाजाही भी एक क्षण के लिए शिथिल हो जाए ।जब केवल एक रह जाए दूसरा कोई नहीं। न मन,न चित् न बुद्धि सब कहीं खो जाएँ ।ऐसी अवस्था को ही प्रेम की सर्वोच्च स्थिति का सकते हैं।
जिसने भी इस मनोभाव का अनुभव किया वो डूब गया गहरे समंदर में।जैसे सीप स्वाति नक्षत्र की बूँद को लेकर समुद्र की अथाह गहराई में खो जाती है।किसी शायर ने कहा है - सागर को क्या जानें साहिल के तमाशाई
हमने डूब कर जानी है सागर तेरी गहराई
जब-जब मानव का मन खो गया है तब-तब उसके जीवन में ये घटना घटी है। और तब वो मानव महामानव बन गया है ।फिर कोई पास नहीं, कोई दूर नहीं, न कोई अपना, न पराया।
जब-जब मनुष्य ने अपने जीवन में ईश्वरीय प्रेम को अनुभव किया है,तो प्रत्येक रूप में उसे अपने प्रियतम का दर्शन हुआ है।
तब वो बात समझ में आती है-वसुघैव कुटुम्बकम पूरा विश्व ही हमारा परिवार है।जिसने भी इस अनुभव को पाया वो अपने इस समय का विवेकानंद बन गया। गौतम,महावीर बन गया।फिर पूरी सृष्टि ने उसे प्रणाम किया है।
बस ज़रूरत है कि हम भी इस गीत को गुनगुनाएँ,अपने जीवन के सितार पर बजाएं, जिसकी धुन से हमारा जीवन भी संगीतमय बने अौर सुनने वालों को भी आनंद की अनुभूति हो।
अलका रागिनी, मुम्बई
परिचय-
-अलका रागिनी जन्मतिथि-१२.०१.८१ शिक्षा-स्नातक(इतिहास) जन्म-स्थान-ग्राम नावडीह
प्रकाशित पुस्तक-जीवन के पड़ाव,मंज़िल से आगे,आत्मनिवेदनम,जियें तो जियें कैसें,मेरो मन आनंद।
सम्मान-
-वुमन आवाज़ सम्मान(जियें तो जियें कैसे)
-अन्तराशब्द शक्ति सम्मान-(मेरो मन आनंद)
-महिला साहित्य सृजन सम्मान(मंज़िल से आगे)
-आचार्य रामचंद्र शुक्ल सम्मान महाराष्ट्र साहित्य अकादमी (2019)आत्मनिवेदनम के लिए…..