देश को एक सूत्र में बांधती है हिन्दी, हमारी अभिव्यक्ति का प्राण है हिन्दी

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बहत्तर साल की स्वतंत्र राजनीतिक एवं आर्थिक व्यवस्था के बाद भी देश में कई मुद्दे आज तक उलझे हुए हैं, जिनका समाधान केन्द्र सरकार नहीं कर पा रही है। जनता की मांग दो तरफा होने से सरकार ने भी आधे अधूरे निर्णयों को ही निरंतर बनाए रखा हैं। जिनमें से एक मुद्दा है हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का, हालांकि हिंदी को संविधान के भाग 17 में अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा का दर्जा तो दे दिया गया लेकिन राष्ट्रभाषा के रूप में अधिकारिक मान्यता के लिए हिंदी आज भी प्रतिक्षारत्त हैं।

हिंदी भाषा भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। यह हम भारतीयों की पहचान है। भारत में अनेक भाषाएं हैं मगर फिर भी हिंदी का प्रभाव सर्वत्र देखा जा सकता है। विश्वभर में करोड़ों लोग हिंदी भाषा का प्रयोग करते हैं। हिंदी भाषा एक ऐसी भाषा है,जिसमें जो हम लिखते हैं,वही हम बोलते हैं उसमें कोई बदलाव नहीं होता है। हिंदी भाषा की सहयोगी लिपि देवनागरी इसे पूरी तरह वैज्ञानिक आधार प्रदान करती है। हिंदी को समृद्ध करने में सबसे बड़ा योगदान संस्कृत का है। संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा मानी गई है और हिंदी का जन्म संस्कृत की कोख से ही हुआ है। कई संस्कृत शब्दों का प्रयोग हिंदी में बिना किसी परिवर्तन के किया जाता है,उन शब्दों का उच्चारण और ध्वनि भी संस्कृत के समान ही है। इस कारण हिंदी को एक विशाल शब्द कोष जन्म के साथ ही संस्कृत से मिला है,जो उसके अस्तित्व को विराट बनाता है।

भारत के सांस्कृतिक मूल्यों पर जब भी हमले हुए तो हिंदी भी इससे अछूती नहीं रही। हिंदी भाषा पर अनेक जुल्म हुए हैं और अनेक आक्रांता तथा अंततः अंग्रेज हमारी भाषा को खत्म करने की कोशिश कर चुके हैं,मगर फिर भी हिंदी में कुछ बात है कि वे इस जन-जन की भाषा को मार नहीं पाए। वस्तुतः हिंदी वह भाषा है जो भारत में लोगों की अभिव्यक्ति का प्राण है। हिंदी एक ऐसी भाषा है जो आसानी से लोगों की जुबान पर चढ़ जाती है। हिंदी भाषा तमाम झंझावातों के बावजूद अब तक जीवित है तो उसका एक और कारण यह है कि हिंदी भाषा ने अपने अंदर अनेक भाषाओं के शब्द समाहित कर लिए हैं।

हिंदी यूँ तो हमें परम्परा से मिली भाषा है,इस कारण से इसे पैत्रृक सम्पत्ति ही माना जाना चाहिए । जब हम छोटे बच्चे थे और बोलना सीख रहे थे,उस समय हमारे परिवेश की जो भाषा थी वह उम्र के किसी भी पड़ाव पर जाने के बाद भी सहज और सरल ही लगती है।मगर अब लगता है कि अंग्रेजी का प्रभुत्व हिंदी पर प्रभाव डाल रहा है। हिंदी का अस्तित्व तभी रहेगा जब हम उसे दिल में बैठा कर ही रखेंगे । हमें अगली पीढ़ी तक हिंदी को प्रभावी स्वरुप में पहुंचाना होगा। याद रहे बोलने वालों की, समझने वालों की संख्या में जब वृद्धि होती है, तो भाषा का विस्तार होता चला जाता है। भाषा मानव संरचित एक माध्यम है,कोई भी भाषा उतनी ही विस्तृत हो पाती है जितने उसके प्रयोग करने वाले हों,एक विस्तृत भाषा अगर हमारी मातृभाषा है तो हमारे सोचने,समझने और अलग-अलग आयामों को धारण करने की क्षमता बढ़ जाती है। हिंदी के साथ यही होना चाहिए।

भारत में कई समितियां, कई योजनाएं हिंदी के नाम पर बनी लेकिन वे अंग्रेजी के सामने बोनी ही साबित हो रही है। सरकारी कार्यालयों में चाहे यह लिखा हो कि हम हिंदी में कार्य करना पसंद करते हैं या हिंदी में आपके द्वारा भरे गए आवेदन पत्रों का स्वागत हैं। लेकिन उनकी आंतरिक व्यवस्था आज भी अंग्रेजी पर ही निर्भर करती है। आखिर क्या वजह है कि हमारी सरकार हिंदी को चाहते हुए भी अधिकारिक राष्ट्रभाषा घोषित नहीं कर पा रही हैं। हिंदी की वर्तमान व्यवस्था को जानने और समझने से पहले हिंदी के जन्म से लेकर आज तक के सफर पर यदि दृष्टि डाली जाए तो पता लगेगा हिंदी ही एक भाषा रही है जिसके कारण बहु संस्कृति और बहु सभ्यता वाला भारत जुड़ा रहा वरना आज भारत टुकड़ों-टुकड़ों में बंटा होता। आज जो भारत के प्रदेश दिख रहें है वे सब स्वतंत्र देश के रूप में होते अगर हिंदी न होती तो।

हालाकिं गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी का विरोध जम कर किया जा रहा है । वहॉ के लोग अपनी बोली, अपनी लिपि को बचने के लिए आंदोलन कर रहे है, इस पर जमकर राजनीति हो रही है। ऐसी खबरें अखबारों और इलेक्ट्रानिक मिडिया में मसाले के साथ आ रही है। पर हिंदी भाषी लोग गहरी नींद में है उनके कानों पर जूं भी रेंगी हो ऐसा नहीं लग रहा है। क्योंकि सालों से हिंदी के नाम पर केवल साहित्य और अख़बार जगत के लोग ही कागज़ी घोड़े दौड़ाते आ है। आम आदमी को हिंदी के लिए हो रहे आंदोलनों में कोई रूचि नहीं हैं । कुछ संस्थाएँ बंद कमरों में और कुछ छोटे -मोटे आयोजन कर हिंदी दिवस आने पर हिंदी के संघर्ष की कहानी अख़बारों में छपवा कर लोगों को जागृत करने की कोशिश कर भी रही है लेकिन उनकी स्थिती नक्कारखानें में तूती की आवाज़ की तरह है जो पड़ोस में बैठे व्यक्ति को भी सुनाई नहीं देती है।

यह निश्चित रूप से वैश्विक आश्चर्य की बात है कि भारत की 72 साल की आजादी के बाद भी देश की अपनी कोई अधिकारिक भाषा नहीं है। हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है लेकिन अंग्रेजी और श्रेत्रिय भाषा के समान अधिकारिक नहीं माना जाता है। देश में तमिल, तेलगू, मलयालम, कन्नड़ ,गुजराती, मराठी, बांग्ला के साथ अंग्रेजी को सहर्ष स्वीकार किया जा रहा है लेकिन हिंदी को पसंद नहीं किया जा रहा हैं। भारत में हिंदी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा होने के बावजूद अपने वर्चस्व के लिए सालों से संघर्ष कर रहीं है । वजह है राजनैतिक इच्छा शक्ति का अभाव। भारत की विविधताओं का सबसे ज्यादा लाभ उठाया है राजनैतिक दलों ने और अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए गलत को भी सहीं ठहराते रहते है । दक्षिण भारत में हिंदी का जितना हो रहा है वह आमजन के बजाए राजनैतिक स्तर पर अधिक हो रहा है । अपने लाभ के लिए श्रेत्रिय दल हिंदी को अधिकारिक भाषा नहीं बनने देना चाहते है । क्योंकि हिंदी पुरे देश को एक सूत्र में बांधें रख सकती है और देश एक सूत्र में बंधा तो श्रेत्रिय दलों की दाल गलना बंद हो जाएगी। राजनैतिक स्वार्थ के चलते हिंदी को संघर्ष करना पड़़ रहा है, हिंदी भाषी लोग कभी अन्य भाषाओं के विरोधी नहीं रहे है,और न ही कभी अपनी भाषा अन्य भाषा बोलने वालों पर थोपी है ।

वर्तमान सरकार पूरे बहुमत के साथ संसद में आरुढ़ हुई, जनता ने भी पूर्व में सरकार द्वारा किए गये कार्यों पर विश्वास जताया है । तो अब सरकार का दायित्व बनता है कि देश को एक सूत्र में बांधे । एक सूत्र में देश को बांधने का काम आसानी से यदी कोई कर सकता है तो वह है हिंदी भाषा ।
संसद मे बैठे माननीय जनों का चाहिए कि वे यह बात सदन में रखें कि अब समय आ गया हिंदी राजभाषा के साथ राष्ट्रभाषा घोषित किया जाना चाहिए।

#संदीप सृजन

matruadmin

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।