नयनाभिराम—गुरूदक्षिणा

0 0
Read Time3 Minute, 47 Second

आज काॅलेज से आकर अचानक मेरे शिक्षक पति ने मुझसे कहा—जल्दी से तैयार हो जाओ आज हमें गुरूदक्षिणा देखने जाना है।गुरू दक्षिणा देखने? गुरूदक्षिणा ली जाती है दी जाती है –देखी कैसे जाती है? मैं सोच में पड़ गयी।
खैर तैयार हो ही रहे थे कि एक शानदार कार घर के दरवाजे पर रूकी।ड़्राईवर ने दरवाजा खोलकर बैठने का आग्रह किया।एक नामी सम्भ्रांत काॅलोनी के एक बड़े से बंगले में कार ने प्रवेश किया।एक सज्जन और महिला स्वागत के लिये खड़े दिखे, जैसे ही कार से उतरे दोनों पास आकर पैरों में झुक गये।मैड़म प्रणाम!सज्जन के बोलते ही मैं आश्चर्यचकित रह गई।इनका स्टूड़ेंट सामने खड़ा था—विनय। 15साल पहले विनय मेरे पति से ट्यूशन पढने आता था। दुबला पतला , गंभीर विनय। बेहद गरीब परिवार से था। पिता नहीं थे और मां पापड़ बनाकर बेचती थी और बड़े ही संघर्ष में दो बच्चों को पढा रही थी।मन उस स्त्री के लिये सम्मान से भर गया। मेरे कहने पर शिक्षक पति ने उसे तीन साल तक बिना फीस के पढाया।
आखिरी साल में विनय फीस देने का आग्रह करने लगा ,पति के मना करने पर वो स्वाभिमानी बालक मुझसे आग्रह करने लगा –मैड़म आप बोलिये सर को गुरूदक्षिणा तो लेनी चाहिये। तब मैंने उसे अचानक ही कह दिया- ठीक है गुरूदक्षिणा हम लेंगे। तुम होशियार हो, काबिल हो , एक दिन जरूर कुछ बन जाओगे, बड़े आदमी हो जाओगे। धन, दौलत , नाम सब कमाओगे पर एक बात कभी मत भूलना-अपनी मां का संघर्ष।बड़े ही तकलिफ और संघर्ष से वो तुम्हारा जीवन संवार रही है। बड़ा आदमी बनने के बाद भी उसका सम्मान बरकरार रखना।उसके सुख की पहले सोचना।उसे किसी बात से कभी तकलिफ ना हो। बस यही हमारी गुरूदक्षिणा है।उस वक्त हमें प्रणाम करके विनय हामी भरकर चला गया।
आज वही विनय हमारे सामने खड़ा था।विनय बड़े आदर के साथ हमें बंगले के अंदर ले गया।उसका वैभवपूर्ण संसार हम बड़े ही आश्चर्य और प्रसन्नता से देख रहे थे।
तभी एक गरिमामयी महिला बाहर निकलकर आई।विनय ने हमें उनसे मिलवाया।सर! मैड़म! मेरी मां, मेरी भगवान।देख लिजिये आज मैंने आपकी गुरूदक्षिणा पूरी कर दी।मैं आज बहुत बड़ा बिजनैसमैन हूं।सारा व्यवसाय, सारी सम्पत्ति मां के नाम है, मैं बस कर्मचारी हूं। मां से पूछे बगैर घर का पत्ता भी नहीं हिलता। विनय की मां की आंखों में बेटे के प्रति प्यार और गर्व दिखाई दे रहा था और मैं और मेरे पति उस नयनाभिराम गुरूदक्षिणा को पाकर निहाल हुऐ जा रहे थे।

    #सुषमा व्यास

परिचय : श्रीमती सुषमा व्यास( सुष ‘राजनिधि’) ने हिन्दी साहित्य में एमए किया हुआ है और मौलिक रचनाकार हैं।आप इंदौर में ही रहती हैं तथा इंदौर लेखिका संघ की सदस्य भी हैं। 

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

हिन्दी हमारी जीवनशैली एवं हमें हमारी मां की तरह प्यारी है

Fri Sep 13 , 2019
हिन्दी सिर्फ भाषा नहीं,बल्कि यह हमारे अल्फाजों को समेट,हमारी बातों को सरलता एवं सुगमता से कहने का विशेष माध्यम हैं। हिन्दी बिल्कुल हमारी की तरह ही हमसे जुड़ाव रखती है और हम भी मां हिन्दी के बिना अपने अस्तित्व की कभी कल्पना नहीं कर सकते। क्योंकि मां के बिना बेटे […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।