पर्यावरण चेतना

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dharmendra kumar 1
पृथ्वी को चारो तरफ से घेरे हुए हैं जो सुंदर आवरण।
उसे ही कहते हैं हम पर्यावरण।।
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प्रकृति में सीमित है सब संसाधन।
इसलिए सोच -समझकर करो इसका दोहन।।
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मानव प्रकृति से करके छेड़छाड़।
अपना ही कर रहा है बिगाड़।।
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जब से शुरू किये हैं वनो की अंधाधुंध कटाई।
जीवन में समस्याओं को और है बढ़ाई।।
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वनो के कटने से वन्यप्राणी हो रहे हैं बेघरबार।
कैसा है ये लोगों का प्रकृति पर वार।।
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कहीं सूखा,कहीं बाढ़ तो कहीं पर आ रही है सूनामी लहर।
जिससे धरती पर फैल रही है काल रुपी जहर।।
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धरती की तापमान लगातार बढ़ रही है।
जिससे ग्लेशियर की बर्फ पिघल रही है।।
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बर्फ के पिघलने से जलमग्न हो जायेगी धरा।
फिर आगे क्या होगा सोचो जरा।।
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पृथ्वी पर असहनीय हो जायेगा कष्ट।
जिससे समूल प्राणी हो जायेगा नष्ट।।
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प्रकृति से छेड़छाड़ का हो रहा है खतरनाक अंजाम।
सभी से है यही सवाल कैसे होगा इसका रोकथाम।।
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 #धर्मेंद्र कुमार
मुनगी (छत्तीसगढ़) 

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