#महेश रौतेला
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यह भी प्यार है
काठगोदाम से नैनीताल जाना
सड़क के मोड़ों को देखना
नदी के पानी में तैरना
झील के किनारे बातचीत करना
फिर अचानक पहाड़ों में खो जाना।
नैनीताल से भवाली आना
ढलान को पकड़ना
पेड़ों के बीच लुकाछिपी होना
फिर अचानक जंगलों में लुप्त हो जाना।
यह भी प्यार है
भवाली से अल्मोड़ा तक चलना
गरमपानी में चाय नाश्ता करना
नदी के किनारों को तितर बितर देखना
नन्दा के मंदिर में होना
अपने विद्यालय को निहारना
अपने बचपन को कुरेदना
फिर अचानक गलियों को भूल जाना।
अल्मोड़ा से जागेश्वर जाना
सड़क का उतार -चढ़ाव नापना
वृक्षों को टटोलना
मंदिरों को गिनना
धूप की तलाश करना
फिर अचानक सदियों में घुस जाना।
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