Read Time1 Minute, 53 Second
——————-
देखो नये जमाने की शान
डिजिटल के ही नाम
अंगूलियाँ दौड रही
स्क्रीन है जान
तार लटके है कान ।
—————————
जमाने का संगत पाकर
बच्चो में अक्ल की अकड़
स्क्रीन टच के संग
आँखो पर चश्मा की पकड़।
——————————–
किताब कापी नहीं अच्छी
सब डिजिटल के नाम पर
खूद से बाते करते और हँसते भी
अपने आप पर।
————————
खुद से वेवफाई का मारा
तुझे वफादारी न आया।
रास्ते पर गिरे कितनी बार
पर तुझे गिरकर सम्भलना न आया।
———————————
चाँद को छूने की तमन्ना थी
लेकिन डिजिटल मोबाईल आया
पूछता हूँ एक शब्द भी
शर्मिंदा खूब मगर चिडचिड़ाना आया
दखो नया जमाना आया।
—————————-
बदलते मौसम की तरह
बदल रहा है परिवेश
अब तो हर मौसम का
मोबाईल दे रहा संदेश
बच्चो को भी तो अब
लुफ्त उठाना आ गया।
————————
मंजिले न मिल सकी
तो क्या हुआ
अब तो अंधेरों में भी
गेम चलाना आ गया।
————————-
चलते फिरते बने मशीन
खास नही हैं फिर भी रंगीन
आजू-बाजू सामने क्या
बस सारा दिन मोबाईल की सीन।
—————————————-
“आशुतोष”
नाम। – आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम – आशुतोष
जन्मतिथि – 30/101973
वर्तमान पता – 113/77बी
शास्त्रीनगर
पटना 23 बिहार
कार्यक्षेत्र – जाॅब
शिक्षा – ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन – नगण्य
सम्मान। – नगण्य
अन्य उलब्धि – कभ्प्यूटर आपरेटर
टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य – सामाजिक जागृति
Post Views:
13
Thu May 23 , 2019
“वाक्यम रसात्मकम काव्यम” अर्थात आचार्य विश्वनाथ ने रसात्मक वाक्य को ही “काव्य”कहा है। कविता ही रसानुभूति कराती है। चाहे दुख का क्षण हो, चाहे सुख का। प्रत्येक क्षण में स्वत: ही कविता का जन्म हो जाता है, जब भाव, लय, छन्द,ताल आदि के द्वारा सुरमय हो जाता है, तभी कविता […]