पांच मुक्तक

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vikram

1. बसा है जो मेरे मन में वो अब कहने की बारी है

   कि मेरे दिल के आईने में बस सूरत तुम्हारी है
   जो पूछा मैंनें यारों से बताओ क्या हुआ है ये
   कोई कहता मोहब्बत है कोई कहता बीमारी है
2 नहीं आता समझ में ये कि क्यों ऐसा ही होता है
जो होना नापसंद दिल को क्यों वैसा ही होता है
अभी के दौर में इंसान की नहीं कद्र है कोई
इंसानों की कद्रों में तो बस पैसा ही होता है
3 किसी ने तन को अपनाया किसी ने धन को अपनाया
जिसे विश्वास ईश्वर पर भजन किर्तन को अपनाया
मगर एक मन मिला मुझको जो कोरे कागज के जैसा था
मैंनें छोड़कर सबकुछ बस उस मन को अपनाया
3. करो कुछ भी जमाने का ये दस्तूर है लेकिन
    किसी की याद आई थी वो मुझसे दूर है लेकिन
    कमी खलती है फिर भी परेशां नहीं हूं ये सोचकर
    जो मेरे पास मेरे यार हैं कोहीनूर हैं लेकिन
4. जो करता है एक फूल वो गुलदस्ता नहीं करता
    मंजिलें जो करती हैं वो रस्ता नहीं करता
    भले नाते इस संसार में बन जाएं कई गहरे
     तुलना मां के आंचल से कोई रिश्ता नहीं करता
5. बनो सरल कठोरता में रस नहीं आता
    कोई शौक से बन कर के बेबस नहीं आता
    चले गए अगर पैसे तो वे फिर आ भी सकते हैं
     चला जाए कोई इंसान तो वापस नहीं आता
विक्रम कुमार 
 वैशाली(बिहार)

matruadmin

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