
सारे नर बनें आत्मनिर्भर, और नारी बनें आत्मनिर्भर
पशु पक्षी बनें आत्मनिर्भर, हर प्राणी बनें आत्मनिर्भर
कुछ तो सीखो उन पौधों से, तूफान धूप जल सहते हैं
फिर भी न तनिक विचलित होते, अस्तित्व बनाये रहते हैं
और मधुर फलों से लदे हुए , वो खुद की हानि कराते हैं
पर कर्म वो अपना करते हैं, और कर्म को मान बताते हैं
हो लाभ तो अच्छे कर्म कर, हो हानी बनें आत्मनिर्भर
पशु पक्षी बनें आत्मनिर्भर, हर प्राणी बनें आत्मनिर्भर
कुछ तो सीखो उन पशुओं से, जो विचरण करते रहते हैं
मंजिल को पहुंचने की खातिर वो रस्ता ढूंढा करते हैं
मस्तिष्क भले कम विकसित हो पर लक्ष्य निगाहों में रहता
असफल हो जाते हैं फिर भी वो लक्ष्य तो ह्रृदयों में रहता
बस लक्ष्य पर अपने रख नजर असफल भी बनें आत्मनिर्भर
पशु पक्षी बनें आत्मनिर्भर, हर प्राणी बनें आत्मनिर्भर
रेंगते हुए वो सूक्ष्मजीव जो हमसे बहुत कुछ कह जाते
जीवन जीने की कला सदा ये कीट भी हमको सिखलाते
छोटी पिपीलिका को देखो, जो पर्वत पर चढ़ जाती है
चट्टानें बड़ी हों या राहें फिर भी आगे बढ़ जाती है
गिरने का जो भी छोड़े डर बढ़ आगे बनें आत्मनिर्भर
पशु पक्षी बनें आत्मनिर्भर, हर प्राणी बनें आत्मनिर्भर
उड़ते पक्षी को ही देखो पर से आकाश नापता है
हो चाहे जितनी दूर स्वयं धरती पर लक्ष्य ढूंढता है
राहों में कंटक कंकर हो पर इनसे नहीं घबराना है
कष्टों को हंसकर सह लेना जीवन में चलते जाना है
बन जाते पुष्प पथ के कंकर स्वसिद्ध कर बनें आत्मनिर्भर
पशु पक्षी बनें आत्मनिर्भर, हर प्राणी बनें आत्मनिर्भर
कोई छोटा बड़ा नहीं होता सबमें कुछ ना कुछ कौशल है
मस्तिष्क किसी का है विकसित कुछ में सक्रिय बाहूबल है
कोई दौड़ दौड़ के भागता है कोई बैठे बैठे सब कर लें
खुद पर इतना विश्वास करें खुद की झोली खुद ही भर लें
बस आत्मकेंद्रित हो स्व पर संघर्ष कर बनें आत्मनिर्भर
पशु पक्षी बनें आत्मनिर्भर, हर प्राणी बनें आत्मनिर्भर
ऐ मनुज!स्वच्छ कर निर्मल मन कर लें थोड़ा सा आत्मज्ञान
तुझमें है अपरम्पार शक्ति बिल्कुल नहीं जो सबके समान
तू सफल नहीं तब तक होगा जब तक ना खुद को समझेगा
और व्यर्थ की बाते सोच सोच बस व्यर्थ में ही यूं उलझेगा
खुद के कर्मों का दिखे असर सत्कर्म कर बनें आत्मनिर्भर
पशु पक्षी बनें आत्मनिर्भर, हर प्राणी बनें आत्मनिर्भर।।
अजय एहसास
अम्बेडकर नगर ( उ०प्र०)