विरहा सोच बसंत

0 0
Read Time4 Minute, 51 Second

babulal sharma

सूरज उत्तर पथ चले,शीत कोप हो अंत।
पात पके पीले पड़े, आया  मान  बसंत।।
.                👀👀
फसल सुनहरी हो रही, उपजे कीट अनंत।
नव पल्लव सौगात से,स्वागत प्रीत बसंत।।
.                 👀👀
बाट निहारे  नित्य ही, अब तो  आवै  कंत।
कोयल सी कूजे निशा,ज्यों ऋतुराज बसंत।।
.                👀👀
वस्त्र हीन तरुवर खड़े,जैसे तपसी संत।
कामदेव सर बींधते,मन मदमस्त बसंत।।
.                👀👀
मौसम ले अंगड़ाइयाँ,दामिनि गूँजि दिगंत।
मेघा तो बरसे कहीं, विरहा  सोच  बसंत।।
.               👀👀
नव कलियाँ खिलने लगे,आवे भ्रमर तुरंत।
विरहन मन बेचैन है, आओ पिया  बसंत।।
.                  👀👀
सिया सलौने गात है, मारे चोंच  जयंत।
राम बनो रक्षा करो,प्रीतम काल बसंत।।
.                👀👀
प्रीतम पाती प्रेमरस, अक्षर  जोड़ अजंत।
विरहा लिखती लेखनी,आओ कंत बसंत।।
.                 👀👀
प्रेम पत्रिका लिख रही, पढ़ लेना श्रीमंत।
भाव समझ आना पिया,चाहूँ मेल बसंत।।
.                👀👀
जैसी उपजे सो लिखी, प्रत्यय संधि सुबन्त।
पिया मिलन की आस में,भटके भाव बसंत।।
.                 👀👀
परदेशी  पंछी  यहाँ, करे  केलि  हेमंत।
मन मेरा भी बावरा, चाहे मिलन बसंत।।
.                 👀👀
कुरजाँ ,सारस, देखती, कोयल पीव रटन्त।
मन मेरा बिलखे पिया, चुभते तीर बसन्त।।
.                👀👀
बौराए   वन   बाग  है, अमराई   जीवंत।
सूनी सेज निहारती ,बैरिन   रात  बसंत।।
.                👀👀
मादकता चहूँ ओर है, कैसे  बनू  सुमंत।
पिया  बिना बेचैन मन, कैसे कटे बसंत।।
.                👀👀
काम देव  बिन सैन्य  ही, करे  करोड़ो  हंत।
फिर भी मन माने नहीं, स्वागत करे  बसंत।।
.                👀👀
मैना   कोयल  बावरे, मोर   हुए  सामंत।
तितली भँवरे मद भरे, गाते राग  बसंत।।
..               👀👀
कविमन लिखता बावरा,शारद सुमिर पदंत।
प्राकृत में जो देखते,लिखती कलम बसन्त।।
.               👀👀
शारद सुत कविता गढ़े, लिखते गीत गढंत।
मन विचलित ठहरे नहीं, रमता फाग बसंत।।
.             👀👀
गरल सने सर काम के,व्यापे संत असंत।
दोहे लिख ऋतु राज के,कैसे  बचूँ बसंत।।
.            👀👀
कामदेव का  राज है, भले  बुद्धि  गजदंत।
पलकों में पिय छवि बसे,नैन न चैन बसंत।।
.              👀👀
ऋतु राजा की शान में,मदन भटकते पंत।
फाग राग ढप चंग से, सजते गीत बसंत।।
.              👀👀
मन मृग तृष्णा रोकती,अक्षर लगा हलन्त्।
आँसू रोकूँ नयन के, आजा  पिया  बसंत।।
.              👀👀
चाहूँ प्रीतम कुशलता,अर्ज करूँ भगवंत।
भादौ से दर्शन नहीं, अब तो मिले बसंत।।
.               👀👀
ईश्वर से  अरदास  है, प्रीतम  हो  यशवंत।
नित उठ मैं पूजा करूँ, देखूँ   बाट बसंत।।
.             👀👀
फागुन में साजन मिले,खुशियाँ हो अत्यंत।
होली  मने  गुलाल  से, गाऊँ  फाग बसंत।।
.            👀👀
मैं परछाई आपकी,आप पिया कुलवंत।
विरहा मन माने नहीं, करता याद बसंत।।
.               👀👀
शकुन्तला को याद कर,याद करूँ दुश्यंत।
भूल कहीं जाना नहीं, उमड़े  प्रेम  बसंत।।
.               👀👀
रामायण गीता पढ़ी,और पढ़े सद् ग्रन्थ।
ढाई अक्षर प्रेम के, मिलते  माह  बसंत।।
.                👀👀
प्रीतम हो परदेश में, आवे कौन सुपंथ।
पथ पूजन कर आरती,मै तैयार बसंत।।
.               👀👀
नारी  के सम्मान  के, मुद्दे उठे  ज्वलंत।
कंत बिना क्या मान हो,दे संदेश बसंत।।
.                👀👀
प्रीतम चाहूँ प्रीत मै, सात जनम पर्यन्त।
नेह सने दोहे लिखूँ ,साजन चाह बसंत।।

नाम– बाबू लाल शर्मा 
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

अंधविश्वास का मकडजाल

Wed Jan 23 , 2019
चंदू बडा दुविधा में था उसे समझ में नही आ रहा था कि आखिर वो क्या करे उसकी पत्नी की हालत दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही थी।गाँव में अंधविश्वास का माहौल और झाड़-फूक तंत्र-मंत्र का सहारा उसके पत्नी के इलाज के लिए पर्याप्त नहीं थे। हलांकि गाँव के चँद […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।