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तकिए के नीचे धरे हुए हैं रुपए कई हजार
वैद्य कौन बुलाएगा जब पास ना हो परिवार
कंधे पर लेकर घूमता था तुझको तेरा बाप
घोड़ा बनकर पीठ दी यह कैसे भूले आप
बूढ़े बीमार मां बाप का तू दे आज संवार
बिन मांगे प्रभु देंगे कल तेरे काज सुधार
परिवार सब बिखर रहे करे न कोई सब्र
स्वच्छंदता की चाह में अपनी खोद रहे कब्र
धीरे धीरे आंख की शर्म हो रही है दूर
जवानी में बेपरवाह बुढ़ापा है मजबूर
#विभा जैन
धार (मध्य प्रदेश)
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