यादें बड़ी मसखरी हैं
बहुत सताती हैं.
कभी बोर देती हैं,
खुशियों की पोखरी में
कभी ढकेल देती हैं,
उदासियों के गड्डे में.
एकाकीपन के रेत पर
यूं पटकती हैं कभी
गोया,
समंदर की लहरें हैं मानो
सब कुछ लीलने को आतुर.
कभी दुश्मन बन जाती हैं
न जाने कब-कब के,
गड़े मुर्दें निकालती हैं.
हां,जब बचपन बन आती हैं,
बड़ी मासूमियत लाती हैं,
मां का आंचल लहराती हैं
पापा का दुलार बरसाती है.
भाई का लाड़ लगाती हैं
सखी बनकर जब आती हैं
खूब सुख-दुख बतियाती हैं,
गुड़ियों का ब्याह रचाती हैं.
सच, यादें बड़ी मसखरी हैं,
पूछो न पूछो, गाहे-बगाहे,
हंसाने,रूलाने,चिकोटी काटने
जिंदगी भर आती ही रहती हैं.
#पूनम (कतरियार),पटना
Read Time57 Second
Average Rating
5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%
पसंदीदा साहित्य
-
April 20, 2017
भगवान वही है….
-
August 4, 2019
आधुनिकता !
-
August 13, 2018
राखी बंधाई
-
January 18, 2019
बर्दाश्त हो जाएगा?