हल्दीघाटी समर

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babulal sharma
हल्दीघाटी समरांगण में,
सेना थी दोनो तैयार।
मुगलों का भारी लश्कर था,
इत राणा,रजपूत सवार।

भारी सेना थी अकबर की,
.        सेनापती मुगलिया मान।
भीलों की सेना राणा की,
.      अरु केसरिया वीर जवान।

आसफ खाँन बदाँयूनी भी,
.     लड़ते समर मुगलिया शान।
शक्ति सिंह भी बागी होकर,
.     थाम चुका था मुगल मचान।

राणा अपनी आन बान की,
.        रखते आए ऊँची शान।
मुगलों की सेना से उसने,
.      कीन्हा युद्ध बड़ा घमसान।

मुगल सैन्य विचलित जब होती,
.         धीरज दे कछवाहा मान।
हाथी के हौदे पर बैठा,
बीच समर जैसे शैतान।

राणा कीका लड़े समर में,
.        होकर चेतक पीठ सवार।
भारी भरकम कर ले भाला,
.       एक हाथ थामें तलवार।

पूँजा संगत भील लड़ाके,
.      बरछे तीर संग तलवार।
अजब शौर्य था भीलों का,
.     कटने लगे मुगल सरदार।

भीलों के तीरों की वर्षा,
.        जैसे मेघ मूसलाधार।
भगदड़ मचती मुगल सैन्य में
.      भील लड़ाके छापामार।

सूरी हाकिम खान दागता,
.           तोपें गोले बारम्बार।
तोप सामने जो भी आते,
.        मुगलों की होती बरछार।

तोप धमाके भील लड़ाके,
.       मुगल अश्व हाथी बदकार।
मानसिंह बेचैन हो गया,
.       उत काँपे अकबर दरबार।

अफगानी वो वीर तोपची,
.        राणा का था बाँया हाथ।
उसने अपना धर्म निभाया,
.         मरते दम राणा के साथ।

जोश भरा जाता वीरों में,
.     सुन सुन राणा की ललकार।
चेतक की टापों से होते,
.        घोड़े मुगल हीन बदकार।

भारी मार मची समरांगण,
.          जूझे योद्धा वीर तमाम।
मुगलों ने तब युक्ति निकाली,
.       बचे मुगल योद्धा इस्लाम।

उभय पक्ष रजपूते मरते,
.     देख चकित मुगलिया चाल।
रक्त उबल आया राणा का,
.       आँखें हुई क्रोध से लाल।

किया इशारा तब चेतक को,
.      चेतक ने भर लई उछाल।
धरी टाप मान गज मस्तक,
.      राणा ने फेंका तब भाल।

गज हौदे में छुपा मान यों,
.        खाली गया वीर का वार।
हस्तिदंत असि लगकर घायल,
.       हुआ अश्व चेतक लाचार।

भाला दूर गिरा था जाकर,
.        मर गए मुगल वहीं बाईस।
थर थर काँपे मान कछावा,
.   अब की प्राण बचे अवनीश।

इकला राणा मुगल घनेरे,
.       खूब लड़ा रण में रणधीर।
जित तलवार चले राणा की,
.     गिरती वहीं मुगल शमशीर।

टिड्डी दल सी मुगल सैन्य थी,
.       कटे बीस आते पच्चीस।
काट काट कर राणा थकते,
.    सहस्त्र मुगल हुए बिन शीश।

राणा घायल थकित समर में,
.         चेतक होता लहूलुहान।
झाला मान वंश बलिदानी,
.        आया बीच समर में मान।

राणै का सिरछत्र सँभाला,
.         बचै वीर मेवाड़ प्रताप।
अमर हुआ राणा के बदले,
.     निज कुरबानी देकर आप।

मुगलों की भारी सेना अरु,
.       मक्कारी की चलते चाल।
हल्दीघाटी रक्तिम हो गई,
.       रजपूती सेना थी काल।

दशा देख राणा चेतक की,
.         करें पलायन ईश सहाय।
नाला आया फाँदाँ चेतक,
.        शान बचाये प्राण गवाँय।

आन बान को खूब निभाया,
.     चेतक स्वामिभक्त बलवान।
राणै नैन मेघ से झरते,
.    चेतक सखा वीर वरदान।

राणा चेतक गर्दन लिपटे,
.       वा  रे  एकलिंग दीवान।
जब तक धरती सूरज चंदा,
.      राणा-चेतक अमर निशान।

पीछा करते आए सैनिक,
.    शक्ति सिंह की पड़ी निगाह।
मार गिराये उनको शक्ता,
.       राणा हुए शक्ति आगाह।

शक्तिसिंह भ्राता से मिलते,
.        राणा मिले भुजा फैलाय।
चारों आँखें झर झर बहती,
.      आँसू जल चेतक नहलाय।

शक्ति बंधु प्रताप पाए थे,
.       राणा पाय शक्ति बलवान।
दो दो बेटे मातृभूमि के,
.        मेवाड़ी धरती धनवान।

राम-भरत सा मिलन अनोखा,
.     *जनम भोम* के हैं अरमान।
शक्ती ने घोड़ा निज देकर,
रखी धरा की आन गुमान।

युद्ध विजेता किसको कह दूँ,
.       धर्म विजेता शक्ति प्रताप।
ऐसे वीर हुए जिस भू पर,
.       हरते मातृभूमि संताप।

वन वन भटका था वो राणा,
.          मेवाड़ी  रजपूती  भान।
हरे घास की रोटी खाकर,
.      रखता मातृभूमि की आन।

धन्य धन्य मेवाड़ी धरती,
.        राणा  एकलिंग  दीवान।
गढ़ चित्तौड़ उदयपुर वंदन,
.          हल्दीघाटी  धरा महान।

नमन करूँ उन सब वीरों को,
.         राजस्थानी  छोड़ी  छाप।
नमन करूँ मँगरा चट्टानें,
.       चेतक की पड़ती थी टाप।

वीर छंद वीरों को अर्पित,
.      और समर्पित शारद माय।
भारत माता वंदन करता,
.        ऐसे वीर सदा निपजाय।

मन के भाव शब्द बन जाते,
.        लिखता शर्मा बाबू लाल।
चंदन माटी हल्दीघाटी,
.        उन्नत सिर मेवाड़ी भाल।

नाम– बाबू लाल शर्मा 
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।