वे पनघट अब,सूने प्यासे हैं

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babulal sharma
नीर धीर दोनो के मिलन थे,
राधा संग कान्हा परिहासे।
था समय एक,ये कथा बने,
लगते ज्यों कोरे गप्पे झाँसे।
मन की प्यास शमन करते,
वे पनघट अब सूने प्यासे हैं।
मन की आशा, चुहल वार्ता,
के सब ठीये  स्वयं उदासे हैं।

वे नारी वार्ता स्थल थे जहाँ,
रमणी को तकते  मतवाले।
पथिकों का श्रम हरने वाले,
प्रेम प्रीत बतरस  मन वाले।
पंछी जल की बूंद आश के
अब थोथे से हुए दिलासे हैं
मन की प्यास शमन करते,
वे पनघट सब सूने प्यासे हैं।

जहाँ बनिताएँ सरिताएँ हो,
प्यासों को नीर पिलाती थी।
वे निश्छल वाणी ममता की,
पथ भटके धीर दिलाती थी।
कान्हा राधे की उन राहों में,
भर गये अब घोर कुहासे है,
मन की प्यास शमन करते,
वे पनघट अब सूने प्यासे हैं।

पनघट संग पनिहारिन भी,
वृद्धाश्रम की  राह  ढूँढ़ती।
नीरभरी प्यासी अँखियाँ वे
अपनेपन की बात पूछती।
जरापने सब  दुख ही पाते,
शेष सभी तो जग झाँसे है,
मन की प्यास शमन करते,
वे पनघट अब सूने प्यासे है।

रीते सरवर  ताल  तलैया,
बापी कूप सूख गये सारे।
घट गागर भी लुप्त हुए हैं,
रस्सी इण्डी  सुप्त बिचारे।
दादी नानी की बात कहानी,
पनघट तरसे कथ परिहासे।
मन की प्यास शमन करते,
वे पनघट अब सूने प्यासे।।

रीत प्रीत से लोटा डोरी थे,
गले बंधे फिर भी बंधन थे।
ललनाओं से चुहल कहानी,
अपनेपन के अनुबन्धन थे।
रिश्तों संग  मर्याद ठिठोली,
देवर भाभी जो दूध बतासे,
मन की प्यास शमन करते,
वे पनघट अब सूने प्यासे।।

सास ससुर की बाते करती,
जो रमणी भोली भाली सी।
करे शिकायत कभी प्रशंसा,
वे पनिहारिन  मतवाली सी।
याद कहानी होकर रह गई,
प्रीत रीत वह पाएँ कहाँ से।
मन की प्यास शमन करते,
वे पनघट अब सूने प्यासे।।

प्रेम कहानी घर के झगड़े,
सबका मौन साक्षी बनता।
कभी चुहल देवर भौजाई,
कभी  ईश  भजन सुनता।
जल घट डोर डोल बाल्टी,
दर्शन उनके करूँ कहाँ से।
मन की प्यास शमन करते,
वे पनघट अब सूने प्यासे।।

पंछी,पथिक पाहुने प्रियजन,
गायें भी तब जल पा लेती।
वृद्धपीढ़ी भी अवसर पाके,
पनिहारी को आशीष देती।
सबको अपना हक मिलता,
कोई न रीता लौटा वहाँ से।
मन की प्यास शमन करते,
वे पनघट अब सूने प्यासे।।

वर्तमान  की  अंध दौड़ में,
भूल गये संस्कार संस्कृति।
आभूषण पहने पनिहारिन,
परिधानों संग छाई विकृति।
याद रहे बस याद कहानी,
संस्कार गुण सभी हतासे।
मन की प्यास शमन करते,
वे पनघट अब सूने प्यासे।।

दंत खिलकती,नैन छलकती,
दो गागर ले कभी फिसलती।
देख दृष्य  बाकी पनिहारिन,
मूक स्वरों में  खूब विहँसती।
खूब साक्षी  देता था पनघट,
लुप्त  हूए  वे  खेल  तमाशे।
मन की प्यास  शमन करते,
वे  पनघट अब सूने प्यासे।।

नाम– बाबू लाल शर्मा 
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः

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