अचानक ही मेनका के पति ने उस पर हमेशा की तरह हाथ उठाया लेकिन ये क्या घ् आज चिन्टू ने उसके हाथ को जोर से पकड़ लिया, बोला अब नही बस बहुत हो लिया, आज के बाद मां को हाथ भी लगाया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा समझ लेना बस । मेनका बेटे के इस साहस या दुस्साहस पर कुछ भी नहीं बोल पाई । थोड़ी देर बाद वो बोली ये ठीक नहीं है वो तेरा बाप है और बा पके साथ ऐसा व्यवहार किसी भी तरह से ठीक नहीं । वो परेशान हो गई चिन्टू विद्रोही हो गया था अपने बाप से, लेकिन मन कर रहा था गलत भी तो नहीं है । बस इसी उधेड़बुन में वो कमरे में घूसने लगी । वो सोच रहीं थी जिस बेटे ने बाप की बीमारी में खूब सेवा की थी आज मां के लिए उसका ये प्रेम । समझ नहीं पा रही थी वो बस घूमती रही कमरे में । बेहर तपती दोपहर, कमरे का पंखा भी ठण्डी हवा देनले में नाकाम, बस यूंह ी वो टहलती सी, घर के बाहर लगे अशो के पेड़ के नीचे आ गई । सोचा शायद कुछ राहत मिलेगी, लेकिन नहीं बाहर लू के थपेड़ों से और भी बुरा हाल था सो वापस कमरे में चली गई । कूलर को ठीक करवाने के लिए उसने पति——— (हां कहने को पति ही है) से कहा था बड़ हिम्मत जुटा कर लेकिन उसे पता था कूलर ठीक नहीं होगा सो नहीं हुआ । मेनका —- हां मेनका ही है वो । नाम की ही नहीं सचमुच की भी । वो सोचने लगी जाने क्या सोचकर मां बापू ने मेरा नाम मेनका रखा था । —– कुछ सोचकर वो थोड़ा सा मुस्कुराई । कुछ ख्यालों में खे सी गई थी । ख्यालों में खोने के कारण उसे अब गरमी का अहसास ही नहीं हो रहा । हो अब उसका बदन ज़रूर तपने लगा था भीतर की ज्वाला से । वो ज्वाला जो अग्नि कुण्ड के इर्द गिर्द लिए सात फेरों के समय से ही साथ चल रही है । शादी के समय बड़े अरमानों से वो विदा हुई थी अपने मां बापू के घर से । कुछ दिन तो ठीक चला लेकिन फिर उस अग्नि की तपन उसे महसूस होने लगी थी । पति के लिए वो पत्नी ना होकर बस एक देल मात्र थी । जिसमें उचित, अनुचित, प्राकृतिक, अप्राकृतिक, जायज, नाजायज कुछ नहीं था । बस वो पति के लिए एक देल थी जो वो अग्नि के समक्ष फेरों के बदले लेकर आया था । वो उसकी मिल्कियत थी जैसे चाले इश्तेमाल करे, लेकिन उस देल, उस नारी की कोई भावना, कोई इच्छा, कोई ख्वाहिश नहीं हो सकती है उसकी नज़र में और अगर गलती से कोई इच्छा सामने आ गई तो उस मेनका की अच्छी खासी धुलाई होती थी —– जी हां पिटाई । पिटाई केवल इसलिए कि उनके खानदान में औरत को अपनी इच्छा ज़ाहिर करने का हक़ नहीं होता उनके घर में औरत झाडू पोछा करने वाली बाई, खाना बनाने वाली मेहरी, पति को संतुष्ट करने वाली देह और घर के सारे कपड़े धोने वाली धोबन से ज्यादा कुछ नहीं होती । मेनका का भी यही हाल होने लगा था । उसके अरमान कुचले जाने लगे थे । फिर भी उसने हिम्मत करके असगे पढ़ने की इच्छा जता ही दी । उसे याद आया कि किस तरह से लात घूंसो से उसकी पिटाई हुई थी उसकी पढ़ाई की बात पर । लेकिन इस बार तो वो भी ढीठ बन गई थी कितना भी मार लो, पीटलो, कुछ भी करलो लेकिन मैं पढूंगी तो सही । पति पीटते-पीटते जब थक गया तो वो घर से बाहर चला गया थ सास ससुर और देवर कोई उसके पक्ष में नहीं जिससे वो अपने मन की बात कह पाती । उसने बड़ी हिम्मत करके एसटीडी बूथ से अपने पीहर महाबलेश्वर फोन किया और अपने बापू को बुला भेजा । तीसरे ही दिन मेनका के बापू ने मेनका के घर के दरवाजे पर दस्तक दी तो दरवाजा मेनका की सास ने खोला । मेनका के बापू को आया देख वो बोखला गई थी । शादि के बाद पूरा डेड बरस हो गया था पहली बार बेटी के घर आया था लेकिन उसके स्वागत के बजाय वहीं पर खड़े खड़े ही उसे खरी खोटी सुनाने लगी थी मेनका की सास । और मेनका के बापूजी बेचारे अनजान हर बात से, बेटी की बिना की हुई गलती की क्षमा मांगते रहे । खैर वो उन्हे भीतर ले आई लेकिन मेनका से मिलने की बात पर वा बिगड़ गई —- क्यों हम क्या उसे मार रहे हैं अरे हमारी भी बहु है वो । तो क्या आपको ही ज्यादा प्रेम आती है उस पर लेकिन समधीजी सुनलो आपने उसकी जबान गज भर की लम्बी करके भेजी है थोड़ा समय लगेगा उसकी जबान कतरने में ।
मेनका अपने कमरे में खड़ी सब सुन रही थी आपने बाप का अपमान देखकर भी वो कुछ नहीं कर पाई । शाम को मेनका का पति हमेशा की तरह पीकर आया वो भी रात बारह बजे बाद अपने ससुर को बैठक में बैठा देख वा चिल्लाया —- इस कमीनी ने बुला लिया अपने बाप को भी —- तो सुनलो ये आगे नहीं पढ़ेगी और ना ही अपने पीरक कभी जाएगी । अगर मंजूर है तो इसे छोड़ जाओ नही ंतो भी ले जाओ अपनी लाडली को । बेचारा बाप कुछ भी नहीं बोल पाया लेकिन तभी मेनका आ गई बोली पीहर नहीं जाने की बात है तो मैं नहीं जाऊंगी लेकिन पढूंगी तो सही । उसका इतना बोलना था कि वो फिर एक थप्पड़ उसके गाल पर रसीद कर चुका लेकिन मेनका अपनी ज़िद पर अड़ी रही थी बापू बेचारा चला गया था वापस । बेटी की तकलीफ सुनकर मां को सदमा लगा और दिल का दौरा पड़ा —– वा ेचल बसी बेटी की याद में ही । मों की मौत की ख़बर आई लेकिन मेनका को महाबलेश्वर नहीं भेजा गया । वो महीनों तक रोती रही और गहरे सदमें में चली गई । उसे कुछ होश नहीं था । वो यूंही बदहवासी में घर के बाहर निकली और सड़क पर चलती गयी । और ये बदहवासी चली कोठ डेड साल भर तथी उसके लड़का हो गया जो उसके बदहवासी के दिनों की ही उपज था । धीरे-धीरे उसके अपने आपको संभाला और बच्चे को ही सहारा मानकर जीने लगी ।
सास ससुर ने अलग कर दिया सो उसका पति उसे लेकर गांव से शहर आ गया था लेकिन प्रताड़ना पूर्ववत थी । हां मेनका को एक सुकून ज़रूर हो गया था अब चार के बजाय केवल पति की ही प्रताड़ना झेलनी थी उसे ।
घर के दरवाज पर किसी की ज़ोर ज़ोर से खटखटाने की आवाज़ ने अचानक ही मेनका की तन्द्रा तोड़ी वो जैसे नींद से जागी हो । उठी दरवाजा खोला तो उसकी बड़ी बहन आयी थी । बहन को देख वो उसके सीने से लग रोने लगी थी ज़ोर ज़ोर से । बरसों पहले ही वो अपवनी लाड दुलार बहिन बापू मां सब खो आई थी अग्नि के सात फेरों के बवण्डर में । दीदी भी खूब रोई थी, तभी दीदी ने एक और विस्फोट किया – मेनी – बापू नहीं रहे । मेनका से सुना और वा सन्न रह गयी लेकिन अब रोई नहीं कितना समय हो गया ? तीन महिने – दीदी ने बताया मुझे मालुम है तेरे को कोई नहीं बताएगा वैसे मैने कुअरसाब (मेनका का पति) को बताया था फोन करके लेकिन यह भी जानती थी कि वो तुझे नहीं बताएंगे ।
अपनी दीदी को बिठाया खाना बनाया खिलाया, खुद भी खाया फिर बोली दीदी अब आप जाओ वो आते ही होगे नही ंतो फिर घर दंगल बनेगा । अरे तू घबरा मत मैने तेरे ही कालोनी के होटल में कमरा लिया हुआ है । कल तू वहीं आ जाना होटल कमल रूम नम्बर 301 ठी है ना अब चलती हॅूं । हां देख चिन्टू और बन्टी के लिए कुछ लाई हूं ये रख ले । दीदी अपने होटल चली गई । दीदी चिन्टू, बन्टी दोनों बच्चों के लिए कपड़े, मेनका के लिए दसियों सूट लेकर आयी थी । वो ख्यालों में खो गयी । किस तरह से वो दोना बहिने खेला करती और कहती थी बाबू जी मेरे है । इसी बात में लड़ाई भी हो जाती थी और अब बापूजी की अन्तिम घड़ी आई तो भी उनकी लाडली उनके पास नहीं थी । बरसों से देख नहीं पाए थे उसे । वो रोती रही । तभी उसे ख्याल आया कि क्यों ना चिन्टू को एमबीए के लिए दीदी के पास भेज दूं लेकिन उसके लिए तो पति से बात करनी पड़ेगी । जानती थी कि ना होगी लेकिन फिर भी बात तो करने पड़गी । पिछले कोई आठ साल से अब मसावीट कम होती थी । मेनका खुद स्कूल में टीचर थी कमाती थी और बच्चों को भी पढ़ा रही थी । उसको पति बच्चों की पढ़ाई के लिए भी एक रूप्या नहीं देता था । हमेशा कहता था तुम ये घर छोड़कर निकल जाओं घर मेरा है लेकिन अब मेनका पहले जै दब्बू नहीं थी जो पिट लेती अब वो बराबर बोलती थी, जवाब देती थी । शाम को पति देर से आया था हमेशा की तरह ही लेकिन अब दारू नही पीता था । उसने चिन्टू के लिए बात की खूब झगड़ा हुआ उसने साफ कह दिया तेरी औलादों के लिए एक पैसा भी नहीं दूंगा । वो जानती थी पैसा नहीं मिले । आठ बरस से केवल नाम का पति है वो । ना एक रूपया घर में देता है ना वो साथ ही सोते हैं । अलग-अलग कमरे, वो अपने दोनों बच्चों के साथ और वो अपने कमरे में अपने कम्प्यूटर के साथ । मेनका ने ठान लिया था कि चिन्टू को एमबीए करवाकर ही रहॅूंगी पहले उसने अगले ही दिन दीदी से बात की फिर बैंकसे एजूकेशन लोन की बात की । चिन्टू पहले ही मेट एक्जाम क्लीयर कर चुका था सो काम हो गया । बैंक से पांच लाख का एजूकेशन लोन पास करवा लिया ।
आज बहुत उदास है, चिन्टू आज बीस साल में उससे पहली बार अलग हो रहा था । चिन्टू भी जानता था उसे जाना होगा । वो जानता था मां खूब रोयगी लेकिन पढ़ाई जरूरी थी । मां का सपना पूरा कना था सो वो भी भारीमन से मौसी के साथ मुम्बई चला गया । औरा मेनका —— हां वो रोई थी लेकिन आज के आंसू कुछ और थे अपनी जिद के आंसू, अपनी जीत के आंसू । आज पहली बार पूरी तरह से वो मुखर हो पाई थी । मुकाबला कर पाई थी खुद के लिए नहीं बेट के लिए और पहली जीत, पहली बार अहसास कर पाई थी कि वो केवल एक देह नही है ।
#योगेश कानवा
जयपुर(राजस्थान)