ज्ञान धन बाँट-बाँट कर

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geeta diwedi
ज्ञान धन बाँट-बाँट कर ,
खुद भिक्षुक बना रहे ।
अन्याय सहे चुप रहे,
वो सच्चा गुरु बना रहे ।
बदल गई गुरु की परिभाषा,
गुरु भी इसे समझता रहे ।
आज तो यही सच है ,
गुरु सबसे डरता रहे ।
जीवन का पाठ पढ़ाने वाला ,
जीवन क्या सोचता रहे ।
कलम चलाना सिखाने वाला ,
अंगुठा छाप बनता रहे ।
गुरु है या अजीब प्रणी ,
हर शक्स उसे घूरता रहे ।
आज तो यही सच है ,
गुरु सबसे डरता रहे ।
जो उससे ज्ञान लेता है ,
वही सर पर चढ़ता रहे ।
आदर करे न करे कोई,
चौकसी हरदम करता रहे ।
गुरु के सिर पर चाँद चमके,
फिर भी नसीहत लेता रहे ।
आज तो यही सच है ,
गुरु सबसे डरता रहे ।
वर्ष में एक दिन उसका,
वो भी उसका ना रहे ।
मान सम्मान किताबी बातें ,
राहत को तरसता रहे।
वो दिन अब हवा हुए ,
जब गुरु ईश्वर बना रहे ।
आज तो यही सच है ,
गुरु सबसे डरता रहे ।
श्रीमती गीता द्विवेदी 
सिंगचौरा(छत्तीसगढ़)

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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