होरी की खुमारी में मैं डूब रही सखी,
बोल न कैसे मनाऊँ अबके होरी….?
रंग ले आऊँ जाय के हाट से,चल मोरे संग..।लाल रंग लगवाऊँ के,पीरा… हरा रंग चपखीला..के गुलाबी नसीला!
ऐ सखी बोल न….कुछ तो बोल…??
प्रीत की ये पहरी होरी है रे!
मन बौराया है,सुध-बुध हार बैठी हूँ…।पर सुन न..लाल रंग जो उनसे लगवाऊँ तो दिखबे न करी..उनके प्रीत का लाल रंग बहुत चटख है रे। देख कैसे लाज से गाल गुलाबी हुए जाए मोरे….। उईईईईई माँ,गाल का गुलाबी रंग तो,गुलाल के मात दे रहा रे….,!!!!चल तो चटखीला हरा ही ले लूँ,पर सइय्या से यही रंग लगवाऊँ… पर सखी लागे है एहो रंग न चढ़ी हम पर…।
उनके प्रेम के सावन में भीगो मोरा मन बारहों मास हरा-भरा रहे हैं…अब तो जे होरी को हरो रंग भी आपन चटखपन न दिखा पावेगा।
पीरा ही ले लूँ फेर….? अरी कुछ तो बोल…अबके बंसत मोरे,सजन मोहे बसंती बना गए….ध्यान करते ही तन मन सब बसंती….रहे देती हूँ पीरा रंग फीका पड़ जाएगा…
सखी खीजकर कर बोली-तू हमका कछु न बोले देत है ना….बतावे देत है…ऐसी बाबरी हुई है..खुद ही सब पूछे..खुद ही बतलावे..तू रंग न खरीद…अपने सजन के हर रंग में तू रंगी है…मेरा बखत न बरबाद कर…मोहे जाने दे…माई के साथ गुझिया बनवावे का है हमें…बोलकर सखी भी भाग गई।
अरी सुन तो…..! अच्छा तू बतला दे….ऐसे मोहे बिपदा में अकेली छोड़ ना जा….अरी ओ….सुन ना….!!! येहो भाग गई,अब का से कहूँ अपने जिया की…? मैं रंग देख मतवारी हो रही…हर रंग मोहे पिया के याद दिराए…. बस मन में ही सपने संजोए हूँ… जो अबके होती संग तोहारे….रंग से ना भागती.. तोहारे रंग में रंग जाती….तोहारी प्रेम की फुहार मा तुम संग लिपट भीग जाती…तुम रंगरेज मोरे….सब रंग में रंग…सतरंगी चुनरिया-सी लहराती….इतराती… बल खाती….।
मोहे होरी के रंग अब ना भाए री….!
बस पिया रंग रंगी मैं तो बस उन्हीं के रंग रंगी….।
होरी कैसे खेरुं…कैसे बताऊँ जिया की तड़प…एक तो पिया परदेश..ना रंग लगे…ना अंग लगे…
तू जा अपनी माई के पास रे…। सच ही तो कह रही…मैं तोहरा बखत बरबाद कर रही…।
#लिली मित्रा
परिचय : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने वाली श्रीमती लिली मित्रा हिन्दी भाषा के प्रति स्वाभाविक आकर्षण रखती हैं। इसी वजह से इन्हें ब्लॉगिंग करने की प्रेरणा मिली है। इनके अनुसार भावनाओं की अभिव्यक्ति साहित्य एवं नृत्य के माध्यम से करने का यह आरंभिक सिलसिला है। इनकी रुचि नृत्य,लेखन बेकिंग और साहित्य पाठन विधा में भी है। कुछ माह पहले ही लेखन शुरू करने वाली श्रीमती मित्रा गृहिणि होकर बस शौक से लिखती हैं ,न कि पेशेवर लेखक हैं।