
कुछ याद है ,कुछ याद नही
कुछ खो गए, कुछ गुमनाम सही
कुछ भुलाये गए कुछ भुलाये नही
ऐ जिंदगी ! थोड़ा रुक थमजा …
कहते थे यही सब दौड़ भाग में थोड़े कम ज़िंदा
मोहलत मांगी थी कुछ हमेशा से खुद के वक़्त के लिए
कि सुकून से महके अपना भी घरौंदा
मगर क्या मालूम था हालात ऐसे हो जाएंगे
खुदा के पट बंद
और हम सब घर हो जाएंगे
न सड़के रुकी ,न आसमान ,न इमारतें बिखरी
मगर अफसोस भर रहे शमशान
बसावट सारी सस्ती मेहेंगी
बस एक छत हो गयी
न सोना चांदी ,न दाना पानी
अब हवा पेश कीमती हो गयी
पल पल के खौफ में ये धड़कन थोड़ी तेज़ हो गयी
आंखें कुछ नम तो कुछ खो गयी
“सुने से शहर में ,आज लगता है हक़ीक़त में घर को इंसान मीले है “…..
वक़्त जो भी हो ,जैसा भी
आओ फिर से कुछ ख्वाब बुने
भूल ही जाये की क्या क्या गीले है
न डरे ,ना सोच कल की उलझन में पड़े
बस आज को आज का तोहफा दे
अपने साहिल पर ही विश्राम करे
आज लहरे डूबा ही देगी
थोड़ा अपने घर मे ही पनाह करे
“उम्मीद पे दुनियां कायम है”
हम भी एक मुस्कान जिये
आशा सी हो हर शक़्स की ज़ुबान
दर्द के हर बादल घटे
चाँद की शीतल बयार में
एक खुशनुमा सवेर की दुआ करे
न थमे ,न भागे
बस ये सांसो की रफ्तार सलामत रखे …………..
#सोमी खेमसरा,
खाचरोद (मध्य प्रदेश)