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आते हो रोज़ ख़्वाबों में मेरे,
नींदें भी ग़ुस्ताख़ हुईं हैं ।
मेरी ज़िन्दगी की शामें भी,
तुमसे ही गुलज़ार हुईं हैं ।।
हर नज़र मेरी हर घड़ी,
तेरा इंतज़ार कर रही है ।
दुनिया कह रही है मुझे,
तुमसे प्यार नहीं है ।।
रोशन था चांद आसमां में,
तारों की बारात सजी थी ।
मेरी रूह, मेरी धड़कन में,
जानें जां तब से तू बसी थी ।।
तुम हो नाम ए वफ़ा मेरी,
क्या ग़लत क्या सही है ।
दुनिया कह रही है मुझे,
तुमसे प्यार नहीं है ।।
मत पूछो मज़हब हवाओं से,
दस्तूर है उनका चलना ।
बिछा दूंगा क़दमों में तारे,
हर मोड़ मुझे तुम मिलना ।।
ख़ो गया है सुकून दिल का,
पहलू में तेरे यहीं है ।
दुनिया कह रही है मुझे,
तुमसे प्यार नहीं है ।।।।
#डॉ.वासीफ काजी
परिचय : इंदौर में इकबाल कालोनी में निवासरत डॉ. वासीफ पिता स्व.बदरुद्दीन काजी ने हिन्दी में स्नातकोत्तर किया है,साथ ही आपकी हिंदी काव्य एवं कहानी की वर्त्तमान सिनेमा में प्रासंगिकता विषय में शोध कार्य (पी.एच.डी.) पूर्ण किया है | और अँग्रेजी साहित्य में भी एमए कियाहुआ है। आप वर्तमान में कालेज में बतौर व्याख्याता कार्यरत हैं। आप स्वतंत्र लेखन के ज़रिए निरंतर सक्रिय हैं।
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Fri Sep 7 , 2018
है यह लेते देते है यौतक दानव है कौतुक है दानवता है मरता भी है मारता भी है कोई जीता है कोई हारता है कोई जीतता है लेने से डरता है देते भी डरता है जाते अखरता है आते निखरता है कोई उजड़ता है कोई सँवरता है रोज बढ़ता है […]