परम्पराएं

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paras nath

परम्पराएं तो हैं अपनी पहचान सखी,
जब तक करे ये अपना सम्मान सखी,
जब करे ये आत्मसम्मान पर  प्रहार सखी,
तो मिल करना है इसमें सुधार सखी।

कोई भी कितना नकेल लगाये हम पर,
पर इसका परिष्कार जरुरी है,
नर- नारी सब रहे खुशहाल हरदम,
हर प्रथाओं में सामान अधिकार जरुरी है।

जब जब प्रथाएं रूढ़  हुईं,
नारी ही इसकी भेट चढ़ी,
सती प्रथा हो या दहेज़ प्रथा ,
नारी  की ही  व्यथा  कथा ।

क्यों न हो ऐसा ?
ऐसा तो होना ही था,
पग-पग परअंकुश होता है,
जहाँ पुरुष इसके नियंता है ।

गलत प्रथा का वो विरोथ करे,
तो परंपरा तोड़ने की दोषी हो,
वो परम्परा व्यर्थ हुआ,
जिसमें नारी ही पिसी जाती है ।

नारी ही अग्नि परीक्षा दे,
पुरुषों को स्वच्छन्दता का अधिकार मिला ,
ऐसी परम्पराएं घातक हैं,
जिसमें नारियों को अपमान मिला।

नाम-पारस नाथ जायसवाल

साहित्यिक उपनाम – सरल

पिता-स्व0 श्री चंदेले
माता -स्व0 श्रीमती सरस्वती
वर्तमान व स्थाई पता-
 ग्राम – सोहाँस
राज्य – उत्तर प्रदेश
शिक्षा – कला स्नातक , बीटीसी  ,बीएड।
कार्यक्षेत्र – शिक्षक (बेसिक शिक्षा)
विधा -गद्य, गीत, छंदमुक्त,कविता ।
 अन्य उपलब्धियां –  समाचारपत्र ‘दैनिक वर्तमान अंकुर ‘  में कुछ कविताएं प्रकाशित ।
लेखन उद्देश्य – स्वानुभव को कविता के माध्यम से जन जन तक पहुचाना , हिंदी साहित्य में अपना अंशदान करना एवं आत्म संतुष्टि हेतु लेखन ।

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