नीरू की शादी एक खाते – पीते परिवार में हुई थी । पर कहते हैं न सभी का समय एक समान नहीं रहता । कुछ पति की बुरी संगत तो कुछ ससुर की बीमारी की वजह से नीरू को अपने सारे गहने, मकान सभी बेचना पड़े । एक समय ऐसा आया जब नीरू के पास पैसा नहीं बचा , उसकी आर्थिक स्थिति बहुत कमज़ोर हो गई । नीरू पास के ही बाज़ार में जाकर मनिहारी का समान बेचने लगी । जैसे तैसे अपना घर चला ही लेती । नीरू ने कभी अपने मायक़े वालों के सामने भी कभी हाथ नहीं पसारा जो मिला उतने में ही संतुष्ट रहती । नीरू के बच्चे छोटे थे अतः पढ़ाई का ख़र्च भी था । नीरू ने अपने बच्चों का दाख़िला एक सरकारी स्कूल में करवा दिया । दो बेटे और एक बेटी थी । आठवीं कक्षा के बाद बड़े बेटे ने अपनी पढ़ाई छोड़ माँ और पिता का हाथ बटाना शुरू कर दिया ।
राहुल के साथ नीरू बाज़ार में दुकान लगाती और रमेश गाँव गाँव जाकर मनोहारी का सामान बेचने लगे । पैसा नहीं था तो नीरू मायक़े जाना भी अच्छा नहीं लगता था । उसे दूसरी बहनों की तरह मान सम्मान भी नहीं मिलता था। राहुल कदी मेहनत करता । उसने ख़ुद तो पढ़ाई छोड़ दी थी पर अपने भाई बहनों को पढ़ाना चाहता था । राहुल ख़ूब मेहनत कर्रता उसकी मेहनत रंग लाने लगी । धीरे धीरे पैसे जोड़कर राहुल ने एक ठेला ख़रीदा , फिर दुकान किराए पर उठाई ।राहुल की दुकान ख़ूब चलने लगी । भाई ने भी कालेज़ की पढ़ाई पूरी कर भाई का साथ दिया ।
आज राहुल का बाज़ार में नामी लोगों में नाम आने लगा । उसके पास अपना ख़ुद का घर , गाड़ी , दुकान सब कुछ है । राहुल और रिया के लिए भी एक से बड़ कर एक रिश्ते आ रहे हैं वो मान सम्मान सब कुछ मिल रहा है जो नीरू को मिलना चाहिए था । सभी खाने की मेज़ पर बैठे थे कि फ़ोन की घंटी बज उठी ! रिया ने कहा माँ किसका फ़ोन है ? मामा का है नया घर बनाया है ग्रहप्रवेश में बुलाया है कहते हुए नीरू ने गहरी साँस ली
राहुल ने कहा माँ देखा ! *मौसम की तरह रिश्ते भी बदलते है*
यहाँ जिसके पास पैसा है उसी के आगे पीछे दुनियाँ डोलती है ।।
अदिति रूसिया
वारासिवनी