स्वर्ग सिधारे पिताजी,
बेटा निभा रहा है फर्ज..
धीरे-धीरे उतार रहा है,
पिता का लिया–कर्ज।
कर्ज में वह पैदा हुआ,
कर्ज में ही मर जाएगा..
कर्ज चुकाने के लिए,
फिर कर्ज कर जाएगा।
कर्ज एक ऐसा रोग है,
जिसका न कोई इलाज..
घर-खेती सबकुछ बिके,
बिक जाती है–लाज।
बोल कर मीठी वाणी,
फेंके ऐसा–पाँसा..
कर्जदार को रहती है,
हर किसी से–आशा।
कर्जदार करे नौटंकी,
धरे तरह-तरह के स्वांग..
चाँद पर भी चला जाए,
वहाँ से भी लाए–माँग।
कर्जदार मत बनाना प्रभु,
भले बना देना तू ‘परिन्दा’..
कर्जदार को सहना पड़े,
सारे जग की–निंदा।
#रामशर्मा ‘परिन्दा’
परिचय : रामेश्वर शर्मा (रामशर्मा ‘परिन्दा’)का परिचय यही है कि,मूल रुप से शासकीय सेवा में सहायक अध्यापक हैं,यानी बच्चों का भविष्य बनाते हैं। आप योगाश्रम ग्राम करोली मनावर (धार, म.प्र.) में रहते हैं। आपने एम.कॉम.और बी.एड.भी किया है तथा लेखन में रुचि के चलते साहित्य