पितरपख लगा है कौव्वे कहीं हेरे नहीं मिल रहे। इन पंद्रह दिनों में कौव्वे हमारे पितरों के साँस्कृतिक दूत बनके आते थे। अपने हिस्से का भोग लगाते थे। कौव्वे पितर बनके तर गए या फिर पितरों ने ही कौव्वों को आने से मना कर दिया। मैंने मित्र से पूछा–आखिर क्या […]
धर्मदर्शन
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