सज संवर कर दीदार करती है साजन से सजनी प्यार करती है रखती है कठिन उपवास करवाचौथ दिखे कब चाँद इंतजार करती है हर आहट पे लगता साजन चले आये खुद को कितना बेकरार करती है सहनशील होती है नारियां देखा है देती आवाज और पुकार करती है घर को […]
काव्यभाषा
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