चपला चम-चम चमकी जावे, बरखा रिमझिम बरसी जावे.. बदरा उर में आन समावे। बदरा घोर-घोर जावे, बदरा घोर-घोर जावे॥ पुरवैया के शीतल झोंके, तन मोरे से लिपटे जावे.. चपल हठीली बिजुरी ताने, मन मोरे सिमटे जावे। बैरन चमक-चमक चपलावे, जियरा मोरा हा! डर पावे। बदरा घोर-घोर जावे, बदरा घोर-घोर जावे॥ […]
वह आदिवासी लड़की जिसे समझते हैं लोग असभ्य और समझते हैं कि उसके सर में भूसा भरा होता है, जो लीपती है रोज़ गोबर से सने हाथों से घर-आंगन। जिसे अधिकार नहीं है चूल्हे-चौके से आगे कुछ करने का न ही देहरी लांघ लंबी घुमावदार सड़कों पर अल्हड़-सा बचपन जीने काl, जो सूरज की तपिश निगल जलाती है अपना बदन। अथक काम करते खेतों में जिसे मजबूरी में कभी रखना पड़ता है गिरवी अपना कुंवारापन, शहरी बाबुओं की भूखी लपलपाती निगाहों के आगे सच मानिए, छूना चाहती है वह भी चमकते चाँद-सितारे, दौड़ना चाहती है वह भी खुले विस्तृत आकाश में अपने रंग-बिरंगे सपनों के पीछे। चाहती है वह भी, चमत्कृत कर देना पूरी दुनिया को अपने हाथों से रचकर एक प्रेम कविता परंतु,क्या इस सभ्य सुसज्जित समाज में `हासिल` कर पाएगी वह ऐसी दुनिया…l दुख-दर्द,शर्म-मायूसी से उठकर, क्या एक करनैल का फूल शोभा पा सकेगा, एक स्वस्थ सम्मानित माहौल में… या फिर दम तोड़ देगी वह भी घुटकर अपने मृत होते सपनों के साथ …ll #डॉ. आरती कुमारी परिचय : […]