गौरी जोहवे वाट, फागुन को ठाट.. हाट रंग-पिचकारी को, छुप गयो जाने कहाँ। देखें हम यहाँ, दो महतारी को। डारूँ उनपे रंग, करूं मैं तंग। और वो झुँझलाए, मन में मेरे बात.. पिचकारी साथ शायद ही बच पाए। गालन मलै गुलाल, बिगाड़ें हाल। आज दिन होरी को, करें हमें परेशान। […]