नदी सी स्त्री तुम निरंतर बहती रही हों औऱ सदा गतिशील रहना… क्यूकि ठहरना स्त्री धर्म नहीँ है स्वंतंत्र चेतना सजग जागरूक मगर कबीर की माया प्रसाद की श्रद्धा गुप्त की अबला तुलसी कहे ताडना की अधिकाराणि तुम दोयम दर्जे की ही नागरिक हों माँ हों बेटी हों पत्नी औऱ […]